Posts

Showing posts from August, 2013

स्टेशन

Image
थी खबर कहा की आज कज़ा की रात है धड़कने फिर भी सांसो का लिहाज़ करती रही देता सहारा कोई कि बाहों मे टूटकर रो लिया होता तम्म्ना इस ख़याल में रात भर मरती रही जानते थे तेरे मिलने की कोई सूरत नही न जाने क्यों नज़रे हर चेहरो मे तुझे ढूंडती रही टूट के गिर गये वो पत्ते ही जिनसे थी कभी छाव मेरे साथ ये पत्तियाँ भी अलाव मे जलती रही धीरे धीरे तुम गये और उम्मीद भी गुम हुई एक शाम रह गयी अकेले जो साथ मे बुझती रही खामोश नासाद मैं बैठा रहा लॅंपोस्ट के नीचे बल्ब था तेज़ बहुत रोशनी आँखो मे चुभती रही कैसे भी चला आया उस रात तेरे शहर से मैं  रूह आज भी वही स्टेशन पे बैठी रोती रही Like

कुल्फत

दिल की जो कसक है वो कहता नही साथ रहता हूँ सबके पर मैं रहता नही दर्द को मिल गया हो मुक्कमल आशियाँ जैसे लौट के आ जाता है दिल मे कही ठहरता नही इंतज़ार मे भीगी नज़र भी है नफ़रत है दिल को फिकर भी है एक ही आतिश मे फ़ना है दोनो दर्द इधर भी है और उधर भी है ख्याल तेरे, धड़कनो को यू बढ़ा देते है आतिश भरे दिल को जैसे हवा देते है कुछ अधजले रिश्तो से निकलते धुएँ जाते जाते आँखो से अश्क़ बहा देते है कोशिश करके देखा सब जलता नही कुछ बदल भी जाए पर सब बदलता नही हो भी जाए नाहरम  तेरे ख़याल से हम तो भी आँखो मे लहू जिगर का रुकता नही जब भी तेरा जिकर हुआ है दिल शिकस्ता चाक फिर फिर हुआ है है ये अजीब कुलफत सांसो का चलना भी आधा अभी अंजाम-ए-मर्गे सफ़र हुआ है