कुल्फत


दिल की जो कसक है वो कहता नही
साथ रहता हूँ सबके पर मैं रहता नही
दर्द को मिल गया हो मुक्कमल आशियाँ जैसे
लौट के आ जाता है दिल मे कही ठहरता नही

इंतज़ार मे भीगी नज़र भी है
नफ़रत है दिल को फिकर भी है
एक ही आतिश मे फ़ना है दोनो
दर्द इधर भी है और उधर भी है

ख्याल तेरे, धड़कनो को यू बढ़ा देते है
आतिश भरे दिल को जैसे हवा देते है
कुछ अधजले रिश्तो से निकलते धुएँ
जाते जाते आँखो से अश्क़ बहा देते है

कोशिश करके देखा सब जलता नही
कुछ बदल भी जाए पर सब बदलता नही
हो भी जाए नाहरम  तेरे ख़याल से हम
तो भी आँखो मे लहू जिगर का रुकता नही

जब भी तेरा जिकर हुआ है
दिल शिकस्ता चाक फिर फिर हुआ है
है ये अजीब कुलफत सांसो का चलना भी
आधा अभी अंजाम-ए-मर्गे सफ़र हुआ है

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