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उलझा वक़्त

कैसे उलझा वक़्त किसमें गया खुद का हुआ ना तुझमें गया मैं अधूरे ख्याल सा ही रहा आया भी पल में पल में गया तुम क्यूँ  नहीं जान पाते कभी क्या तुमसे मिलने में गया हम बना के रखते कहा तक बिगड़ना था बिगड़ने में गया छोड़ के आगे बढ़े क्या करें जितना ही सोचा दलदल मे गया अपनी तपिश से था बेचैन सूरज विशाल ए कमर को शब में गया तुम कभी ये जान पाओ शायद वक़्त कितना मुश्किल में  गया हम थे खुश जब तक अंजान रहे रिश्ता तो  सब समझने में गया खुद को देखा कितना बदल गये माने की अर्सा चलने में गया कितना निभाते कि निभ जाता अब तक जो था कोशिश में गया

राहे वफ़ा मे नवाब खिर्द

राहे वफ़ा मे नवाब खिर्द ओ अक्ल का और क्या काम था लोग पूछते है क्या तो बताए हम क्या की क्या हमारा नाम था खामोशिया रुसवाइयां बेताबियाँ बर्बादियाँ थी तेरे नाम ये जिंदगी तो ये जिंदगी का अंजाम था कुछ और होनी थी जिंदगी कुछ और का ही काम था मैं सस्ता ही था बिक रहा कुछ और ही मेरा दाम था ये कैसे कैसे हो गया ये जाने किसका  काम था किसी और का मैं था गुनाह किसी और का इल्ज़ाम था जो देखता है वो देखता हू मैं ये ख्याले खाम था कह गये हज़रत जिसे तुम सुन लिए क्या जाने वो पैगाम था खूनी सड़के दहशतगर्दी वहसी आलम और तू कहता है ये  मजहबे इस्लाम था