मात्रिक बहर


एक बहर जिसे मात्रिक बहर भी कहते हैं ,हिन्दी गजलकारों ने ज्यादा प्रयोग किया है।
 २२ २२ २२ २२
२२२ २२२ २२२ २२२
२२२२ २२२२ २२२२ २२
इत्यादि।

विशेष-१)
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जिन बहरों का अन्तिम रुक्न 22 हो उनमें 22 को 112 करने की छूट हासिल है।
२) सभी बहरों के अन्तिम रुक्न में एक 1(लघु) की इज़ाफ़त (बढ़ोत्तरी)  करने की छूट है। किन्तु यदि सानी मिसरे में इज़ाफ़त की गयी है तो गज़ल के हर सानी मिसरे में इज़ाफ़त करनी होगी.जबकि उला मिसरे के लिए कोई प्रतिबन्ध नहीं है. जिसमें चाहे करें और जिसमें चाहें न करें।
३) दो बहरें
१-२१२२-११२२-२२ और
२-२१२२-१२१२-२२ के पहले रुक्न २१२२ को ११२२ किसी भी मिसरे मे करने की छूट हासिल है।

४) मात्रिक बहरों २२ २२ २२ २२ इत्यादि  जिसमें सभी गुरु हैं ,में -
(क- ). किसी भी (२)गुरु को दो लघु (११) करने की छूट इस शर्त के साथ हासिल  है कि यदि सम के गुरु (२) को ११किया गया है तो सिर्फ सम को ही करें और यदि विषम को तो सिर्फ विषम को। मतलब यह कि या तो विषम- पहले,तीसरे,पाचवें,सातवें,नौवे आदि में सभी को या जितने को मर्जी हो २ को ११ कर सकते हैं। या फिर सिर्फ सम -दूसरे,चौथे,छठवें,आठवें.आदि के २ को ११ कर सकते हैं।
(ख-). २२२ को १२१२,२१२१ ,२११२ भी कर सकते हैं।



 गजल के कुछ नियम-
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१-अलिफ़ वस्ल का नियम -
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एक साथ के दो शब्दों में जब अगला शब्द स्वर से शुरु हो तभी ये सन्धि होती है। जैसे- हम उसको=हमुसको,
आखिर इस= आखिरिश,अब आओ=अबाओ।
ध्यान यह देना है कि नया बना शब्द नया अर्थ न देने लगे।
जैसे- हमनवा जिसके=हम नवाजिस के

२-मात्रा गिराने का नियम-
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१) संज्ञा शब्द और मूल शब्द के अतिरिक्त सभी शब्दों के शुरु और आखिर के दीर्घ को  आवश्यकतनुसार गिराकर लघु किया जा सकता है।  इसका कोई विशेष नियम नहीं है,उच्चारण के अनुसार गिरा लेते हैं।
२) जिन अक्षरों पर ं लगा हो उसे नहीं गिरा सकते। पंप, बंधन आदि।
३) यदि अर्द्धाक्षरों से बना कोई शब्द की मात्रा दो है तो उसे नहीं गिरा सकते।जैसे क्यों ,ख्वाब,ज्यादा आदि।
३-
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मैं के साथ मेरा
तूँ के साथ तेरा
हम के साथ हमारा
तुम के साथ तुम्हारा
मैं के साथ तूँ
मेरा के साथ तेरा
हम के साथ तुम
हमारा के साथ तुम्हारा
का प्रयोग ही उचित है ।

 ४-
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एकबचन और बहुबचन एक ही मिसरे में न हो ,और अगर होता है तो शेर के कथन में फर्क न हो।
५-
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ना की जगह न या मत का प्रयोग उचित है।
६-
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अक्षरों का टकराव न हो
 जैसे- तुम-मत-तन्हा-हाजिर-रहना-नाखुश में म,त,हा,र का टकराव हो रहा है। इनसे बचना चाहिए।
७-
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मतले के अलावा किसी उला मिसरे के आखिर में रदीफ के आखिर का शब्द या अक्षर होना दोषपूर्ण है।
८-
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किसी मिसरे में वजन पूरा करने के लिए कोई शब्द डाला गया हो जिसके होने या न होने से कथन पर फर्क नहीं पड़ता ऐसे शब्दों को भर्ती के शब्द कहा जाता है। ऐसा करने से बचना चाहिए।

गज़ल की ख़ासियत-
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अच्छी गजल वह है-
१) जो बहर से ख़ारिज़ न हो।
२) क़ाफ़िया रदीफ़ दुरुस्त हों।
३) शेर सरल हों।
४) शायर जो कहना चाहता है वही सबकी समझ में आसानी से आए।
५) नयापन हो।
६) बुलन्द खयाली हो।
७) अच्छी रवानी हो।
८) शालीन शब्दों का प्रयोग

Comments

मात्रिक बहर मे सम विषम वाली बात समझ मे न आई। क्या ये सम विषम का नियम पूरे ग़ज़ल को लागू होता है या हर मिसरे मे बदल सकते है। जैसे एक मिसरे मे सम एक मे विषम।

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