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Showing posts from April, 2017

कर रहे हैं

जो कर रहे हैं  वो कर रहे हैं  ना करते ये तो करते जो कहां कर रहे हैं

मकान ही मेरा घर था

प्यार तेरा सरकारी मकान जैसा ही था ,ज़िंदगी लगभग गुजर ही गयी, किराया तो नाम का था कीमत कहां थी उसकी. कीमत का अहसास उस दिन हुआ जब मकान छोडने का वक्त आया, ईट गारे से एक घर तो खड़ा लिया मैने पर जेहन से पीले रंग की दीवारे और हरे स्लेटी रंग का दरवाजा नहीं गया. कुछ देर के लिये ही सही पर वो मकान ही मेरा घर था 

इश्क

मैं दूबारा इश्क ज़रूर कर लेता  पर पहला खत्म ही नहीं होता 

ऐसा ज़हर तो नही

इश्क़ था वो मेरा, कोई फ़तेह-ओ-ज़फर तो नही नमी है फिर आज क्यूँ, कहीं सरमिंदा तुम्हारी नज़र तो नही रखा करो राज छुपा के अपने चेहरे की तरह करे गुफ्तगू तुमसे और ना तुमसे छुप के, ऐसा शहर तो नही इंतज़ार मे कटती सब को उमीद थी तुमसे बहुत तुम्हारे धोखों से बेहतर सुना हो मैने , ऐसा ज़हर तो नही