ऐसा ज़हर तो नही
इश्क़ था वो मेरा, कोई फ़तेह-ओ-ज़फर तो नही
नमी है फिर आज क्यूँ, कहीं सरमिंदा तुम्हारी नज़र तो नही
रखा करो राज छुपा के अपने चेहरे की तरह
करे गुफ्तगू तुमसे और ना तुमसे छुप के, ऐसा शहर तो नही
इंतज़ार मे कटती सब को उमीद थी तुमसे बहुत
तुम्हारे धोखों से बेहतर सुना हो मैने , ऐसा ज़हर तो नही
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