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Showing posts from May, 2017

ख़्याल

ये ख़्याल लाज़िम है वो बारे में सोचता क्या है वो देखता है तो हम देखते है की वो देखता क्या है बेशक अभी मैं जीता नही अभी तक तो नही देखेंगे लस्कर जो हारा नही घुटने टेकता क्या है चला जाता है हुज़ूम सड़को पे जाने कहाँ मुआंमला हो साफ भीड़ मे चलता क्या है आज लगा के बैठा है ज़ाहिद अल्लाह से मिलेगा मयपरस्ती भी चीज़ है तू समझता क्या है सब कुछ ही शायद ,शायद कुछ भी नही जो कभी हारा  नही वो हारता क्या है दुनियादारी भी क्या शय है देखिए नवाब मैं सोचा था कुछ दिल माँगता क्या है अब जो चली है उसने चाल तो सोचना होगा मरवा के वो वज़ीर आखिर मारता क्या है वो रहा इतना सामने की सामने कुछ ना रहा तुझे जानने वाला भी तुझको जानता क्या है   मैं कह भी देता हू दोस्तों से वो थी ही बदचलन फिर ये रातों  को  सीने में कही कुछ चुभता क्या है

क्या में हूँ मैं

कुछ  नही  तो   क्या   में   हूँ  मैं और  जो  हूँ  तो   क्या  में  हूँ  मैं तगाफुल  तुझसे   मुझसे  भी  मैं किया   जानू   क्या    में   हूँ    मैं साथ   तेरे,  कितने  नही  में हूँ मैं मत  ढूढो  कहीं, कहीं  में  हूँ   मैं था   जहाँ   रहा  वहीं   में  हूँ   मैं ग़लत  भी,  कितने  सही में हूँ  मैं पता  उसका  क्या  पता, में  हूँ   मैं जाने कबसे उसकी खता में हूँ  मैं कबा दौलत सोहरत कुछ तो नही नही गर जो अपनी  क़ता में हूँ मैं

कहता है

काफ़िर ही काफ़िर को काफ़िर कहता है काफ़िर भी काफ़िर को काफ़िर कहता है एक ही ना सारे मज़हब तो एक रहता छोड़िए किससे कोई फिर क्या कहता है जिंदगी रोशनी ज़रिया नाखुदा कोई उसे कुछ तो कोई कुछ कहता है या नबी दे मक़ा उस दिल में या मर्ग गुजरा है जो कुचे से हर शक्स कहता है सितम यही की मैं उसका वफ़ादार नही दे देगा वो मेरे लिए जाँ कहता है दोस्त ने कहा चल जहा जाना है ये नही होगा जब जहाँ कहता है कह जाता है वो बहुत कुछ मुझसे जब वो कुछ और नही कहता है

किरदार

ना रहो अगर मगर में रहो जो तुम सफ़र में जो न मिल सका वो काश है यूँ तो सभी को कुछ तलाश है बेख़बर नही होशियार है लोग पहले से तैयार हैं औरों  को  क्यूँ देखें हम तुम भी तो किरदार है

नजम

जो ना हो बात तो बात बनाना नही आता हमे बातों के पीछे बात छूपाना नही आता वो कल भी नीदं  में था वो आज भी  है क्या पता थी जो उल्फत वो आज भी है क्यू बन  गया मेरा  मुंसीफ  ही  कातिल वो बाहिरे-अक्ल  था कल वो आज भी है