ख़्याल

ये ख़्याल लाज़िम है वो बारे में सोचता क्या है
वो देखता है तो हम देखते है की वो देखता क्या है

बेशक अभी मैं जीता नही अभी तक तो नही
देखेंगे लस्कर जो हारा नही घुटने टेकता क्या है

चला जाता है हुज़ूम सड़को पे जाने कहाँ
मुआंमला हो साफ भीड़ मे चलता क्या है

आज लगा के बैठा है ज़ाहिद अल्लाह से मिलेगा
मयपरस्ती भी चीज़ है तू समझता क्या है

सब कुछ ही शायद ,शायद कुछ भी नही
जो कभी हारा  नही वो हारता क्या है

दुनियादारी भी क्या शय है देखिए नवाब
मैं सोचा था कुछ दिल माँगता क्या है

अब जो चली है उसने चाल तो सोचना होगा
मरवा के वो वज़ीर आखिर मारता क्या है

वो रहा इतना सामने की सामने कुछ ना रहा
तुझे जानने वाला भी तुझको जानता क्या है
 
मैं कह भी देता हू दोस्तों से वो थी ही बदचलन
फिर ये रातों  को  सीने में कही कुछ चुभता क्या है

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