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Showing posts from August, 2017

क्या ही पूछो की ये क्यूँकर हुआ

क्या ही पूछो की  ये क्यूँकर  हुआ तुमसे हुआ  न हम से  सर  हुआ गिर गयी या है गिरायी इस बात पर न्यूज़ चैनलों में हल्ला रात भर हुआ तुमही  पंडित मुल्ला तुमसे ज्ञान बस करो  यार  बहुत  ज़हर  हुआ मर ही न जाए क्यूँ कोई हो  खुदा सुना की तू संग ए मर मर   हुआ नोक ए सीना पे  है  गर्दन अपनी कहा मेरा ग़लत कुछ  अगर हुआ चली आती  है मिलने  जब - तब याद ना हुई  खुदा का कहर  हुआ वो हो रहा हुक्कमरान ए शरीअत हर मौलवी  ही नया पैगंबर  हुआ खून खून लिखके पानी पढ़ता  है उसके भी लिये पागल  शहर हुआ पैकर ए फानी को खुदा कर दिया माने कत्ल अपना अपने सर हुआ बात सीने  मे क्यूँ ना लगे  नवाब तू जितना जला और बेहतर हुआ

देश जल रहा है

देश जल रहा है सड़के जल रही हैं  न्यूज़ चल रही है  बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ  लोग सड़को पर हैं  हथियार हाथों में  गुस्सा बातों में  हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं  डेरा उठ चूका है  डेरे वाले बैठे हैं  फिर से माचिस पेट्रोल लेकर  माहौल  खटरनाक है 

नामाबार हो जाये निग़ाहें

नामाबार  हो   जाये   निग़ाहें बात छुपे  छुपाई  ना   बने क्या  दू  तुम्हे  मर्ज़-इ-इश्क़ हकीम  कहे  दवाई  ना  बने सोचता  हूँ   दे आऊं  बधाई देते भी अब  बधाई ना  बने अपना शौक है अपनी जलन लगाई आग  बुझाई ना  बने कितना भी कर लूँ गुड़ा भाग इकाई हमसे दहाई ना  बने जो  हो रहे खुदाया  जिंदगी कह दो हमसे इलाही ना बने कुछ  ऐसी   देखी है दुनिया रिश्तो  की  गवाही ना  बने  करीबी रहे कितनी नहीं कितनी  इस सोच  की  गहराई ना बने  और जो रहे तो रहे मुख़्तलिफ़   करीबी  जून रहे जुलाई ना बने

की है सर-ता-बा-पा जलवाफरोश

की है सर-ता-बा-पा जलवाफरोश वो गर्मी-ए -ख़ून जुनूँ-ओ -ज़ोश  आदमो की बिसात मजाल क्या  खुदा बांधे कफ़न खुद सरफ़रोश 

बना रखे कोई हौसला कहाँ तक

बना रखे  कोई हौसला कहाँ   तक की टूट जाता है आदमी सना तक रखे  मुहब्बत और उसका दर्द भी क्या- क्या झेले इन्सां कहाँ   तक हमें सच पता है  तुम्हारे झूठ  का मिला रहा  हूँ तेरी  हाँ-में-हाँ   तक पानी  ने  दोस्ती  की  है  आग  से उसे  कई  बार मरना है फ़ना  तक क्यूँ  बेचैन हों  उनकी तोहमतों से उनकी भी नहीं है उनकी जबाँ तक ये सहरा में बवंडर यूँ  ही तो  नहीं सिवा तेरे  हैं परीशाँ रेगे- रवाँ तक ज़मीर में बुलंदी कैसे आये नवाब कर रखें है छेद तुमने आत्मा तक गुरूर रख के भी क्या हासिल हुआ मसला जमीं का गया आसमाँ तक

अपना ही है और तस्सवुर नहीं यूँ

अपना ही है और तस्सवुर नहीं यूँ रहे रात भर और सहर नहीं यूँ मैं ढूढ़ता  हूँ गलतियां खुद में वो होके  भी करता फ़िकर  नहीं यूँ जो बनना है साहिब ए  मसनद हो रहिये सादिक  मगर नहीं यूँ तुझे जानने वाला भी क्या जाना जानता तो था इस कदर नहीं यूँ क्या हुआ दिल क्यूँ डर गया याद  उसे करता था अक्सर नहीं यूँ