अपना ही है और तस्सवुर नहीं यूँ

अपना ही है और तस्सवुर नहीं यूँ
रहे रात भर और सहर नहीं यूँ
मैं ढूढ़ता  हूँ गलतियां खुद में
वो होके  भी करता फ़िकर  नहीं यूँ
जो बनना है साहिब ए  मसनद
हो रहिये सादिक  मगर नहीं यूँ
तुझे जानने वाला भी क्या जाना
जानता तो था इस कदर नहीं यूँ
क्या हुआ दिल क्यूँ डर गया
याद  उसे करता था अक्सर नहीं यूँ

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