बना रखे कोई हौसला कहाँ तक

बना रखे  कोई हौसला कहाँ   तक
की टूट जाता है आदमी सना तक

रखे  मुहब्बत और उसका दर्द भी
क्या- क्या झेले इन्सां कहाँ   तक

हमें सच पता है  तुम्हारे झूठ  का
मिला रहा  हूँ तेरी  हाँ-में-हाँ   तक

पानी  ने  दोस्ती  की  है  आग  से
उसे  कई  बार मरना है फ़ना  तक

क्यूँ  बेचैन हों  उनकी तोहमतों से
उनकी भी नहीं है उनकी जबाँ तक

ये सहरा में बवंडर यूँ  ही तो  नहीं
सिवा तेरे  हैं परीशाँ रेगे- रवाँ तक

ज़मीर में बुलंदी कैसे आये नवाब
कर रखें है छेद तुमने आत्मा तक

गुरूर रख के भी क्या हासिल हुआ
मसला जमीं का गया आसमाँ तक

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