नामाबार हो जाये निग़ाहें
नामाबार हो जाये निग़ाहें
बात छुपे छुपाई ना बने
क्या दू तुम्हे मर्ज़-इ-इश्क़
हकीम कहे दवाई ना बने
सोचता हूँ दे आऊं बधाई
देते भी अब बधाई ना बने
अपना शौक है अपनी जलन
लगाई आग बुझाई ना बने
कितना भी कर लूँ गुड़ा भाग
इकाई हमसे दहाई ना बने
जो हो रहे खुदाया जिंदगी
कह दो हमसे इलाही ना बने
कुछ ऐसी देखी है दुनिया
रिश्तो की गवाही ना बने
करीबी रहे कितनी नहीं कितनी
इस सोच की गहराई ना बने
इस सोच की गहराई ना बने
और जो रहे तो रहे मुख़्तलिफ़
करीबी जून रहे जुलाई ना बने
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