पानी
पानी
पानी जीने के लिए बहुत जरूरी है। इस बात को हम सभी समझते हैं। पर ये बात सिर्फ हमी नही समझते पानी भी समझता है। इसलिए पानी ने वहाँ भी जीवन की संभावनाएं बनाई हैं, जहाँ जीवन के होने की कल्पना नही की जा सकती।
पृथ्वी के ध्रुवों पर तापमान अत्यधिक कम होने के कारण वहां बर्फ जमी रहती है। बर्फ ऊपर की तरफ से जमना शुरू होती है लेकिन नीचे तली तक बर्फ नही जमती। नीचे वाटर लिक्विड स्टेट में रहता है। इसलिए पानी के अंदर रहने वाले जीव जमकर नही मरते । अब ऐसा होता क्यों है। ऐसा होता है पानी की एक अनोमली कि वजह से। वैसे तो पानी की 70 अनोमली हैं, पर जिस अनोमली की बात यहाँ की जा रही है वो है पानी की डेन्सिटी में तापमान के कारण होने वाला चेंज। जब पानी का टेम्परेचर कम किया जाता है तो पानी की डेंसिटी बढ़ती है। पानी की अपर सरफेस जैसे ही ठंडी होती है ,उसकी डेंसिटी भी हाई हो जाती है।हाई डेंसिटी वाटर नीचे की तरफ चला जाता है। पानी का टेम्परेचर कम होते होते जब 4℃ तक पहुंचता है, तो पानी की डेंसिटी मैक्सिमम हो जाती है।
मान लिया जाए कि पानी से भरी एक लेक है तो पानी की मैक्सिम डेंसिटी 4℃ पर होगी। अब टेम्परेचर को अगर 4℃ से कम किया जाए तो , पानी अपनी प्रॉपर्टी चेंज कर देता है। टेम्परेचर को और कम करने पर पानी की डेंसिटी घटने लगती है जो पहले बढ़ रही थी । मतलब 4℃से पहले का वाटर 4℃ के बाद वाले वाटर से भारी होगा और लेक के बॉटम में चला जाएगा ।0℃ पर बर्फ जमने लगती है।
बर्फ की डेंसिटी पानी की डेंसिटी से कम होती है,इसलिए बर्फ पानी के ऊपर ही रहती है।बर्फ हीट का बैड कंडक्टर है इसलिए लेक की तली में पानी का तापमान भी 4℃ बना रहता है और उसमें रहने वाले जीव भी जिंदा रहते हैं।
मछली अगर बोल पाती तो शायद यही कहती कि जल ही जीवन है। जिसको हम इंसान बोल तो सकते हैं ।पर समझते बिलकुल भी नही।
पानी की ये कहानी इसलिए बताई ताकि हम समझ सकें कि नेचर अपने आप मे परफेक्ट है। नेचर परफेक्ट है और संतुलित है इसलिए हम जिंदा हैं। पर ये संतुलन बिगड़ रहा है। वैसे तो पृथ्वी का 70 % भाग पानी है। पर पीने योग्य पानी सिर्फ 1% है। अब तो शायद 1% भी नही है। क्योंकि ये डेटा तब का है जब हम पढ़ना लिखना शुरू भी नही किये थे।
जहाँ पानी है लोग उसकी अहमियत नही समझते। पर वो दिन दूर नही जब हम पानी की कीमत समझेंगे। यूनाइटेड नेशन की वाटर एजेंसी के मुताबिक अगले 9 साल के बाद वाटर स्ट्रेस कंडीशन आने वाली है। मतलब की दो तिहाई (2/3) वर्ल्ड पापुलेशन के पास पीने के पानी की समस्या होगी।
जिस हिसाब से पानी का दोहन हो रहा है, उस हिसाब से पानी के अंडरग्राउंड वाटर को रिचार्ज नही मिल रहा। सरफेस वाटर सूखता जा रहा है। हमारी नदियाँ सूखती जा रही हैं। क्लाइमेट चेंज का प्रेशर अलग है। बारिश कम होती जा रही है। धरती का तापमान बढ़ रहा है। पानी का एवपोरेशन बढ़ता जा रहा है। पानी की रीसाइक्लिंग लांग टर्म सलूशन नही है। और हममें से हर कोई बेयर ग्रिल्स भी नही बन सकता जो खुद के यूरिन को पीने की हिम्मत कर सके । हालाँकि वो दिन भी नजदीक ही है।
आज की तारीख में भी विश्व के 15% लोगो के पास पीने का साफ पानी मुहैया नही है।अफ्रीका में बहुत सारे देश ऐसे है जहाँ के लोगो को पानी इकठ्ठा करने के लिए हर दिन 5 से 6 घंटे का वक़्त लगता है। बच्चे सुबह घर से पैदल ही निकल जाते हैं। 3 से 4 घंटे का वक़्त उनको पानी के स्रोत तक पहुचने में लग जाता है। फिर उनको पानी का बोझ उठा के वापस भी लौटना होता है। रास्ता भी सेफ नही होता। जो पानी आता भी है, वो बिलकुल पीने लायक नही होता। हजारों लाखों की संख्या में उस पानी को पी कर लोग मर भी जाते हैं। पर उस पानी को पीने के अलावा उनके पास कोई चारा नही। जो वक़्त उन बच्चों के पढ़ने लिखने का होना चाहिए था। उसमें वो पानी की लड़ाई लड़ते हैं।
हम शायद कभी पानी को उस नज़र से न देख पाएं जैसे वो बच्चे देखते होंगे। हम सोच सकते हैं पर महसूस करना अलग बात होती है।
हम कितना गैलन पानी रोज बर्बाद कर देते हैं , कोई एक बूंद के लिए मर जाता है। और ये सच है।
पृथ्वी के ध्रुवों पर तापमान अत्यधिक कम होने के कारण वहां बर्फ जमी रहती है। बर्फ ऊपर की तरफ से जमना शुरू होती है लेकिन नीचे तली तक बर्फ नही जमती। नीचे वाटर लिक्विड स्टेट में रहता है। इसलिए पानी के अंदर रहने वाले जीव जमकर नही मरते । अब ऐसा होता क्यों है। ऐसा होता है पानी की एक अनोमली कि वजह से। वैसे तो पानी की 70 अनोमली हैं, पर जिस अनोमली की बात यहाँ की जा रही है वो है पानी की डेन्सिटी में तापमान के कारण होने वाला चेंज। जब पानी का टेम्परेचर कम किया जाता है तो पानी की डेंसिटी बढ़ती है। पानी की अपर सरफेस जैसे ही ठंडी होती है ,उसकी डेंसिटी भी हाई हो जाती है।हाई डेंसिटी वाटर नीचे की तरफ चला जाता है। पानी का टेम्परेचर कम होते होते जब 4℃ तक पहुंचता है, तो पानी की डेंसिटी मैक्सिमम हो जाती है।
मान लिया जाए कि पानी से भरी एक लेक है तो पानी की मैक्सिम डेंसिटी 4℃ पर होगी। अब टेम्परेचर को अगर 4℃ से कम किया जाए तो , पानी अपनी प्रॉपर्टी चेंज कर देता है। टेम्परेचर को और कम करने पर पानी की डेंसिटी घटने लगती है जो पहले बढ़ रही थी । मतलब 4℃से पहले का वाटर 4℃ के बाद वाले वाटर से भारी होगा और लेक के बॉटम में चला जाएगा ।0℃ पर बर्फ जमने लगती है।
बर्फ की डेंसिटी पानी की डेंसिटी से कम होती है,इसलिए बर्फ पानी के ऊपर ही रहती है।बर्फ हीट का बैड कंडक्टर है इसलिए लेक की तली में पानी का तापमान भी 4℃ बना रहता है और उसमें रहने वाले जीव भी जिंदा रहते हैं।
मछली अगर बोल पाती तो शायद यही कहती कि जल ही जीवन है। जिसको हम इंसान बोल तो सकते हैं ।पर समझते बिलकुल भी नही।
पानी की ये कहानी इसलिए बताई ताकि हम समझ सकें कि नेचर अपने आप मे परफेक्ट है। नेचर परफेक्ट है और संतुलित है इसलिए हम जिंदा हैं। पर ये संतुलन बिगड़ रहा है। वैसे तो पृथ्वी का 70 % भाग पानी है। पर पीने योग्य पानी सिर्फ 1% है। अब तो शायद 1% भी नही है। क्योंकि ये डेटा तब का है जब हम पढ़ना लिखना शुरू भी नही किये थे।
जहाँ पानी है लोग उसकी अहमियत नही समझते। पर वो दिन दूर नही जब हम पानी की कीमत समझेंगे। यूनाइटेड नेशन की वाटर एजेंसी के मुताबिक अगले 9 साल के बाद वाटर स्ट्रेस कंडीशन आने वाली है। मतलब की दो तिहाई (2/3) वर्ल्ड पापुलेशन के पास पीने के पानी की समस्या होगी।
जिस हिसाब से पानी का दोहन हो रहा है, उस हिसाब से पानी के अंडरग्राउंड वाटर को रिचार्ज नही मिल रहा। सरफेस वाटर सूखता जा रहा है। हमारी नदियाँ सूखती जा रही हैं। क्लाइमेट चेंज का प्रेशर अलग है। बारिश कम होती जा रही है। धरती का तापमान बढ़ रहा है। पानी का एवपोरेशन बढ़ता जा रहा है। पानी की रीसाइक्लिंग लांग टर्म सलूशन नही है। और हममें से हर कोई बेयर ग्रिल्स भी नही बन सकता जो खुद के यूरिन को पीने की हिम्मत कर सके । हालाँकि वो दिन भी नजदीक ही है।
आज की तारीख में भी विश्व के 15% लोगो के पास पीने का साफ पानी मुहैया नही है।अफ्रीका में बहुत सारे देश ऐसे है जहाँ के लोगो को पानी इकठ्ठा करने के लिए हर दिन 5 से 6 घंटे का वक़्त लगता है। बच्चे सुबह घर से पैदल ही निकल जाते हैं। 3 से 4 घंटे का वक़्त उनको पानी के स्रोत तक पहुचने में लग जाता है। फिर उनको पानी का बोझ उठा के वापस भी लौटना होता है। रास्ता भी सेफ नही होता। जो पानी आता भी है, वो बिलकुल पीने लायक नही होता। हजारों लाखों की संख्या में उस पानी को पी कर लोग मर भी जाते हैं। पर उस पानी को पीने के अलावा उनके पास कोई चारा नही। जो वक़्त उन बच्चों के पढ़ने लिखने का होना चाहिए था। उसमें वो पानी की लड़ाई लड़ते हैं।
हम शायद कभी पानी को उस नज़र से न देख पाएं जैसे वो बच्चे देखते होंगे। हम सोच सकते हैं पर महसूस करना अलग बात होती है।
हम कितना गैलन पानी रोज बर्बाद कर देते हैं , कोई एक बूंद के लिए मर जाता है। और ये सच है।
नवाब
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