हिन्दू कोड बिल v/s डॉ अम्बेडकर
हिन्दू कोड बिल v/s डॉ अम्बेडकर
आज के दिन उन प्रेमी युगलों को डॉ आंबेडकर का धन्यवाद जरूर करना चाहिए, जो प्रेम विवाह या फिर इंटरकास्ट मैरिज करना चाहते हैं। यही नही वो लोग भी आभारी हो सकते हैं , जिनको तलाक का अधिकार प्राप्त हुआ।मृतक की विधवा, पुत्री को उसकी संपत्ति में बराबर का अधिकार , इसके अतिरिक्त, पुत्रियों को उनके पिता की संपत्ति में अपने भाईयों से आधा हिस्सा मिलना । ये सारे अधिकार प्राप्त हुए।
पर जितनी आसानी से इन अधिकारों का प्रयोग आज होता है, उससे कही ज्यादा कठिनाई हुई इसको लागू करने में। अगर बाबा साहब और पंडित नेहरू ने जिजीविषा न दिखाई होती तो ये बिल कभी लागू ही नही किया जा सकता था। इस बिल का विरोध अपने उच्चतम स्तर पे किया गया। पूरे देश मे आंदोलन किये गए। इस बिल को लेकर बाबा साहब के साथ सिर्फ पंडित नेहरू ही खड़े दिखाई दिए। यहाँ तक कि खुद उनकी कांग्रेस पार्टी के मेंबर भी उनका पुरजोर विरोध कर रहे थे। जिसमें तत्कालीन राष्ट्रपति महोदय डॉ राजेन्द्र प्रसाद बिल विरोधियों के अगुआ थे। उन्होंने यह तक कह दिया कि ये बिल आया तो वो इस्तीफा भी दे देंगे।
पहली बार ये बिल 1947 में पेश किया गया, जिसका मसौदा बाबा साहब ने तैयार किया था।
यह बिल ऐसी तमाम कुरीतियों को हिंदू धर्म से दूर कर रहा था जिन्हें परंपरा के नाम पर कुछ कट्टरपंथी जिंदा रखना चाहते थे।आंबेडकर के तमाम तर्क और नेहरू का समर्थन भी बेअसर साबित हुआ।इस बिल को 9 अप्रैल 1948 को सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया गया।बाद में 1951 को आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल को संसद में पेश किया। इसे लेकर संसद के अंदर और बाहर वैसे ही विद्रोह मच गया जैसे तीन तलाक़ में बदलाव की मांग को कट्टरपंथी धड़ा इस्लाम में दख़ल बताता है। सनातनी धर्मावलम्बी , हिन्दू महासभा , आरएसएस से लेकर आर्य समाजी तक आंबेडकर के विरोधी हो गए ।संसद में जहां जनसंघ समेत कांग्रेस का हिंदूवादी धड़ा भी इसका विरोध कर रहा था तो वहीं संसद के बाहर हरिहरानन्द सरस्वती उर्फ करपात्री महाराज के नेतृत्व में बड़ा प्रदर्शन चल रहा था।जो इस बिल को शास्त्रों के विरुद्ध और सनातनी संस्कृति पर हमला मान रहे थे।
इन्ही सब के बीच में पंडित नेहरू ने हिन्दू कोड बिल वापस ले लिया, क्यों कि आम चुनाव नजदीक थे। पर बाबा साहब ने संसद से इस्तीफा दे दिया। ये कहते हुए की अगर ये बिल पास नही हुआ तो उनके मंत्री होने का कोई फायदा नही । उन्होंने ये भी लिखा कि नेहरू की इंटेंशन में उन्हें संदेह नही पर इस बिल को लाने के लिए जिस नैतिक बल और ईमानदारी की आवश्यकता है, उसकी कमी है नेहरू में।
ये बिल उस समय इसलिए भी अस्वीकार कर दिए गए क्यो की कहीं कल इतिहास एक शुद्र को एक महान धर्म सुधारक मानने पर मजबूर न हो जाये। और बाद में ऐसा हुआ नेहरू चुनाव जीते , फिर इस बिल को ले आये 1955 -56 में ।
नेहरू ने हिंदू कोड बिल को कई हिस्सों में तोड़ दिया। जिसके बाद 1955 में हिंदू मैरिज एक्ट बनाया गया। जिसके तहत तलाक को कानूनी दर्जा, अलग-अलग जातियों के स्त्री-पुरूष को एक-दूसरे से विवाह का अधिकार और एक बार में एक से ज्यादा शादी को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया।इसके अलावा 1956 में ही हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू दत्तक ग्रहण और पोषण अधिनियम और हिंदू अवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम लागू हुए. ये सभी कानून महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा देने के लिए लाए गये थे.
अम्बेडकर सिर्फ रिजर्वेशन ही लेकर नही आये थे उन्होंने समाज सुधार के लिए बहुत सारे कानूनों में बदलाव किया। पर वर्तमान की राजनीति उनके नाम का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक के लिए करती है। इस देश मे बहुत सारे लोग अम्बेडकर की पूजा करते हैं , बहुत सारे लोग घृणा करते हैं। पर उन्हें समझने की कोशिश कोई नही करता। जीवन पर्यंत उनके साथ बहुत भेदभावपूर्ण व्यहवार हुआ, परन्तु उनके मन में घृणा या बदला लेने की भावना नही थी।
उनका प्रयास समाज मे समानता लाना ही था।
आज उनकी वर्षगांठ पे लोगो से यही अपील करता हूँ कि जाति, धर्म, समाज ,लिंग और पार्टी समहूओ के नाम पर भेदभाव और घृणा बंद करें।
पर जितनी आसानी से इन अधिकारों का प्रयोग आज होता है, उससे कही ज्यादा कठिनाई हुई इसको लागू करने में। अगर बाबा साहब और पंडित नेहरू ने जिजीविषा न दिखाई होती तो ये बिल कभी लागू ही नही किया जा सकता था। इस बिल का विरोध अपने उच्चतम स्तर पे किया गया। पूरे देश मे आंदोलन किये गए। इस बिल को लेकर बाबा साहब के साथ सिर्फ पंडित नेहरू ही खड़े दिखाई दिए। यहाँ तक कि खुद उनकी कांग्रेस पार्टी के मेंबर भी उनका पुरजोर विरोध कर रहे थे। जिसमें तत्कालीन राष्ट्रपति महोदय डॉ राजेन्द्र प्रसाद बिल विरोधियों के अगुआ थे। उन्होंने यह तक कह दिया कि ये बिल आया तो वो इस्तीफा भी दे देंगे।
पहली बार ये बिल 1947 में पेश किया गया, जिसका मसौदा बाबा साहब ने तैयार किया था।
यह बिल ऐसी तमाम कुरीतियों को हिंदू धर्म से दूर कर रहा था जिन्हें परंपरा के नाम पर कुछ कट्टरपंथी जिंदा रखना चाहते थे।आंबेडकर के तमाम तर्क और नेहरू का समर्थन भी बेअसर साबित हुआ।इस बिल को 9 अप्रैल 1948 को सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया गया।बाद में 1951 को आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल को संसद में पेश किया। इसे लेकर संसद के अंदर और बाहर वैसे ही विद्रोह मच गया जैसे तीन तलाक़ में बदलाव की मांग को कट्टरपंथी धड़ा इस्लाम में दख़ल बताता है। सनातनी धर्मावलम्बी , हिन्दू महासभा , आरएसएस से लेकर आर्य समाजी तक आंबेडकर के विरोधी हो गए ।संसद में जहां जनसंघ समेत कांग्रेस का हिंदूवादी धड़ा भी इसका विरोध कर रहा था तो वहीं संसद के बाहर हरिहरानन्द सरस्वती उर्फ करपात्री महाराज के नेतृत्व में बड़ा प्रदर्शन चल रहा था।जो इस बिल को शास्त्रों के विरुद्ध और सनातनी संस्कृति पर हमला मान रहे थे।
इन्ही सब के बीच में पंडित नेहरू ने हिन्दू कोड बिल वापस ले लिया, क्यों कि आम चुनाव नजदीक थे। पर बाबा साहब ने संसद से इस्तीफा दे दिया। ये कहते हुए की अगर ये बिल पास नही हुआ तो उनके मंत्री होने का कोई फायदा नही । उन्होंने ये भी लिखा कि नेहरू की इंटेंशन में उन्हें संदेह नही पर इस बिल को लाने के लिए जिस नैतिक बल और ईमानदारी की आवश्यकता है, उसकी कमी है नेहरू में।
ये बिल उस समय इसलिए भी अस्वीकार कर दिए गए क्यो की कहीं कल इतिहास एक शुद्र को एक महान धर्म सुधारक मानने पर मजबूर न हो जाये। और बाद में ऐसा हुआ नेहरू चुनाव जीते , फिर इस बिल को ले आये 1955 -56 में ।
नेहरू ने हिंदू कोड बिल को कई हिस्सों में तोड़ दिया। जिसके बाद 1955 में हिंदू मैरिज एक्ट बनाया गया। जिसके तहत तलाक को कानूनी दर्जा, अलग-अलग जातियों के स्त्री-पुरूष को एक-दूसरे से विवाह का अधिकार और एक बार में एक से ज्यादा शादी को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया।इसके अलावा 1956 में ही हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू दत्तक ग्रहण और पोषण अधिनियम और हिंदू अवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम लागू हुए. ये सभी कानून महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा देने के लिए लाए गये थे.
अम्बेडकर सिर्फ रिजर्वेशन ही लेकर नही आये थे उन्होंने समाज सुधार के लिए बहुत सारे कानूनों में बदलाव किया। पर वर्तमान की राजनीति उनके नाम का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक के लिए करती है। इस देश मे बहुत सारे लोग अम्बेडकर की पूजा करते हैं , बहुत सारे लोग घृणा करते हैं। पर उन्हें समझने की कोशिश कोई नही करता। जीवन पर्यंत उनके साथ बहुत भेदभावपूर्ण व्यहवार हुआ, परन्तु उनके मन में घृणा या बदला लेने की भावना नही थी।
उनका प्रयास समाज मे समानता लाना ही था।
आज उनकी वर्षगांठ पे लोगो से यही अपील करता हूँ कि जाति, धर्म, समाज ,लिंग और पार्टी समहूओ के नाम पर भेदभाव और घृणा बंद करें।
नवाब
Comments