आर्टिकल 110 की हत्या और अपना शक्तिमान

कहानी की शुरुवात होती है 23 अगस्त 1954 से जब पहली बार राज्य सभा अस्तित्व में आयी।  इसके आने से पहले constituent assembly में बहुत मारा मारी भी हुई । तर्क ये था कि फेडरल सिस्टम को बचाना है तो राज्य सभा जरूरी है।
राज्य सभा को बनाया गया ताकि संसद में किसी भी  बिल को बिना पच्छपात के सूझ बूझ एवं  तर्क विमर्श के साथ  पारित किया जा सके । राज्य सभा का कांसेप्ट बेहतरीन था जो की लोक सभा पर चेक और बैलेंस के लिए बनाया गया था, जिससे लोक सभा के गलत कामो पर लगाम लगायी जा सके,  परन्तु  श्रीकृष्ण जो ज्ञान गीता के उपदेश में देना भूल गए वो ये था कि भविष्य में राज्य सभा की सभी  विपछी पार्टियां राज्य सभा की शक्तियों का प्रयोग राज्य हितों के लिये कम(या बिल्कुल नही) और पैसा लगा के इलेक्शन हारे हुए दबंग नेताओं , बिसनेस मैन जिन्होंने पार्टी को फंडिंग दी है , उनकी संसद के अंदर बैक डोर से एंट्री कराने के उद्देश्य से ज्यादा की जायेंगी।
 गलत कामो पे लगाम लगाने की बजाय ये विपछी पार्टियां लोक सभा की रूलिंग पार्टी  पर सिर्फ लगाम ही लगाती हैं,  वो भी  सही और गलत की चिंता का  परित्याग करते हुए।
राज्य सभा की  अपोजिशन  पार्टीज  को ये बात बर्दाश्त नही  कि रूलिंग पार्टी कैसे किसी अच्छे बिल का क्रेडिट ले जाये । "ना" बिलकुल ना।  विपछी पार्टी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की  देश या जनता  का कितना नुक्सान हो रहा है(इसका मतलब ये भी नहीं की सत्तारूढ़ पार्टी निस्वार्थ भाव से काम करती है). विरोधी पार्टी  ने  विरोध करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार ही बना डाला है । 
अब रूलिंग पार्टी  क्या करे , कैसे बिल पास कराए , वो कहाँ जाए ,ऐसे में रास्ता दिखाते हैं, हमारे महान संविधान बाबा   । बाबा उसको एक बूटी देते हैं । अब ये बाबा जी की बूटी है क्या? क्या है ये "बूटी"?....... नही भाई!  जैकलीन वाली नही(but I like that) ये है मनी बिल । मनी बिल के बारे में विस्तार से जानने के लिए आप गूगल देव से संपर्क कर सकते हैं, पर अभी के लिये मोटा मोटा इतना समझिये की ये वो बिल होता है जो CFI या भारत के सरकारी खजाने से संबंधित हो । अब जो ये मनी बिल वाली बूटी है इसको ब्रह्मा से दो शक्तियां मिली है । पहला ये  की  ये बिल लोक सभा मे ही अवतरित हो सकता है। दूसरा ये की लोक सभा से पास भी हो जाता है। राज्य सभा इस बिल को पास होने से  रोक नहीं  सकता। अमेंडमेंट के लिए सुझाव दे सकता है, पर मैंने सुना है राज्य  सभा के कुछ रंगबाज़ लौंडे शिकायत कर रहे हैं  की लोक सभा वाले रामाधीर सिंह का डॉयलाग मार  रहे थे ,कह रहे थे  "तुमसे न हो पायेगा बेटा" और फिर हस  भी रहे थे। मनी  बिल के केस में  राज्य सभा की स्थिति, ट्रेन में यात्रा करने वाले उस पैसेंजर की तरह होती है जो ट्रेन में यात्रा करने वाले को-पैसेंजर के बच्चों की चिल्ल पों से परेशान और इरिटेट होता रहता  है लेकिन उसे कुछ बोल नही पाता बेचारा ।
अब यही से  शुरू होता है कहानी  में ड्रामा और थ्रील ।मान लीजीए की सरकार को कोई जरुरी  बिल पास कराना  है तो साधारण बिल की तरह ला नही सकती,साधारण बिल पे राज्य सभा वाले रोक  लगा सकते हैं।  लगा सकते हैं क्या ,लगाएंगे ही , सत्ता के वियोग में  कई मंत्री  फैज़ल बन जाते है.हमेशा मौके की तलाश में , जहाँ मिले मौका कट्टा से दागने को तैैैयार। वो तो ये कहो मोबाइल का ज़माना है तो संसद में पोर्न वॉर्न देख के माइंड  कूल  रहता है ।
फिर इस समस्या का हल क्या  है , कैसे साधारण बिल को मनी बिल बनाया जाये , बस यही पर एंट्री होती है शक्तिमान की। शक्तिमान  की शक्तियां आती हैं  आर्टिकल 110 से और ये  शक्तिमान  है लोक सभा का स्पीकर।  आर्टिकल कहता है कि  शक्तिमान  को पूरा पूरा  अधिकार है अंतिम निर्णय लेने का की कोई बिल मनी बिल होगा  कि नही, अब  चाहे उस  बिल का  मनी बिल से कोषो दूर तक कोई रिश्ता(मनी  बिल   का यूज़  करके बीजेपी ने "फॉरेन इलेक्शन फंडिंग" को लीगलाइज किया  जबकि  फंडिंग का एक पैसा भारत सरकार  के खाते में नहीं जाना है, सब पार्टी के फण्ड में जाता है  ) नहीं है 
इस  फैसले को कोर्ट भी पूछ ताछ नहीं कर सकती  और  शक्तिमान  के इस शक्ति का पुंज निहित है संविधान के आर्टिकल 122  और 212  में।
अब ये शक्तिमान गंगाधर भी है। गंगाधर बाइ कन्वेंशन सत्तारूढ़ पार्टी का ही मेंबर होता है। जैसे इस समय सुमित्रा महाजन लोक सभा की स्पीकर भी और बीजेपी की सदस्या भी। अब अगर किसी बिल को राज्य सभा वाले मनी बिल मानने से इनकार कर दें तो शक्तिमान को वहां बुला लिया जाता है  और फिर वो अपनी दिव्य  शक्तियों के प्रोयग से  साधारण बिल को मनी बिल बना देता है।
अभी जो ये  आधार(जिसको  upa 2 में  लाया  गया था   और bjp ने विरोध किया , अब bjp ला रही है upa वाले विरोध कर रहे हैं ) बिल लाया गया , उसे मनी बिल के  तहत ही लाया गया था और ऐसे 55  नॉन फाइनेंसियल  बिल को मनी बिल के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया था। चाहे इंदिरा गांधी रही हो जिसने 1975 में  संविधान के आर्टिकल 352 का मिसयूज किया हो या अन्य पार्टियां सबने अपने मतलब से संविधान साथ खेला,  और इस बार हत्या हुई आर्टिकल 110 की।







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