शायद हो दूर अपनी गलतफहमियां

शायद हो दूर अपनी गलतफहमियां
चलो किरदार अपने बदल देखते हैं

कहीं देख न ले वो हमें देखते हुए
हम ऐतिहातन उसे सम्भल देखते हैं

तिलिस्मो के जाल है क़िरदारों में
टूटे तिलिस्म क्या हो असल देखते हैं

मेरे लफ़्ज हैं कपड़े तिरी रूह से लिपटे
हटाते हैं कपड़ा ना हो खलल देखते हैं

शीरीं को है उमीद ए वफ़ा फरहाद से
वफ़ा ए शीरीं में हम  कतल देखते हैं

वो सच बोलता है सच की खातिर नही
क्यूँ ना सच से आगे निकल देखते हैं

हम समझते हैं कि समझते है खुद को
क्या पता थोड़ा नजरिया बदल देखते हैं

तुझपे जां निसारी का दावा करते सब
भागने की करता कौन पहल देखते हैं

कैद कर ली हवा तुझे जो छू के गुजरी
सुना पी के हवा जन्नत अहल देखते हैं

हो रहे ताज मुहब्बत की एक निशानी
याँ तो कटे दस्त रूह ए महल देखते हैं

क्या है मुनाफ़िक़त पूछते हैं क्या बात
क्यूँ नही आप आईने में शक्ल देखते हैं

मेरी चाहत में हाँ थी और मजबूरी में ना
लेके वही भरम माल रोड टहल देखते हैं

गुस्सा बातों का है जज्बातो का नही
खफा होके तुझसे तुझमे दखल देखते हैं

इल्म ए राज ए वफ़ा है दोनों को अपनी
आज कर लें फ़िराक़ क्या कल देखतें हैं

सब काम कर लिए संभू को खुश कर लिया
वक़्त भी हुआ खत्म अब अजल देखते हैं

शायद लौट ही आये गुजरा हुआ बचपन
क्यूँ ना फिर सीढ़ियों से फिसल देखते हैं



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