जो लेने आये थे खबर

जो लेने आये थे खबर
खबर बन गए
थे हरे कभी
अब सूखे शजर बन गए
हमे दोस्ती के उसूल
न सीखा मूनिस
हैं अमृत भी
जहर को जहर बन गए
न कर भूल
आब को आब कहने की
हँसे  तो शबनम
रूठे कहर बन गए
जिंदगी समेटी  है
तेरी खातिर ग़ज़ल
लिख  दिया खुद को
बहर  बन  गए
कताला  रहजन
दगे बाज़  मक्कार
गांव थे हम कभी
अब शहर बन  गए
लगता है देख रहे
दुनिया फिर से वही
देखें हैं फिर- फिर
चक्का ए दहर बन गए
किसी को हासिल
कहीं आरजू  हुए
खुदा ना हुए
ख़ुदा की महर बन गए
इंतज़ार करने की
ये सूरत ए हाल है
बूंद थे सीपी  में कबसे
गुहर बन गए
जज्बा ए मोहब्बत
हमसे है लाजिम
उसने दिल तोड़ा
हम असर बन गए
तर्के ताल्लुक रहा
दिल का आरजू से
बाद मर्ग ए आरजू
क्यूँ मगर बन गए
हमी हम हो ऊपर
 ये कोई बात  नही
जो चढ़ न बन पाए
हम उतर बन गये
था मंजिलो का ऐतबार
ले जाएं कहाँ
सो मंजिलो से चले आगे
सफर बन गए
सोचते हो लिखने से पहले
सोचेंगे लोग
नवाब कमजोर
 कब इस कदर बन गए









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