आसमान को भी ज़मी की

आसमान को भी ज़मी की
ये खबर कर दें
कहो तो ज़मीनो आसमा
इधर उधर कर दें
बात दिल मे आती है
और डर भी साथ
क्या जाने की लोग
मुझको किधर कर दें
मोहब्बत में मकाम आये
जरूरी तो नही
क्यूँ न मोहब्बत को
रास्ते का सफर कर दें
है नफरत का सबब वो
तो क्या करें
लगायें आग दुनिया को
सिफर कर दें
बैठा है महफ़िल में
डरा जाता है दिल
कहीं न लोग पहचानों का
जिकर कर दें
हम क्यूँ न रोएं जार जार
सर को फोड़े
है सब को ही
नही उनको
ये खबर कर दें
हम ये भी कहाँ कहते
कि इक हमी हैं
कतार में हों और
तो हमे मुंतज़र कर दें
करना है
साहिब ए मसनद को फैसला
कर दें साहिब
सजा ए फाँसी
अगर कर दें
दुआ का असर
ना लाना है कि ऐसा
हमीं हो जाये खुदा
राख दैरो दहर कर दें
रखनी है एक याद
यादों के मोहल्ले में
डर है ना छेड़ के
लोग उसे बेघर कर दें

नवाब यकीं करे
तो कोई एक बार

कसम अहद ए यकीं पर
उमर कर दें



मुंतज़र- इंतज़ार में
दैरो दहर -मंदिर मस्जिद
अहद -भरोसा








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