अनकही
कुछ अनकही शर्ते ही हैं मुहब्बत किधर है तो ये धागे टूट जाने हैं गफलत किधर है यूँ तो अच्छा था बचपना जिसे मार डाला बड़े होने में भी मुसर्रत किधर है चला जाऊँ कही भी ठहरा वही हूँ जुदा हुआ तुमसे अब भी वक़्त मुंतज़िर है अभी जागा कोई अभी कोई मर गया महीना जून का और वक़्त दोपहर है तेरे नाम पर कत्त्ल कर रहा वो खुदा तेरा नमाज़ी सख्त बेख़बर है दरख़्ते काटी सौदा - ए - ज़मीं को ऐसी भी लोगो ...