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Showing posts from March, 2017

अनकही

कुछ  अनकही  शर्ते  ही  हैं मुहब्बत   किधर है तो  ये  धागे  टूट  जाने  हैं  गफलत   किधर  है यूँ   तो  अच्छा  था  बचपना   जिसे  मार   डाला बड़े     होने     में     भी    मुसर्रत   किधर   है चला    जाऊँ    कही    भी   ठहरा   वही   हूँ जुदा  हुआ  तुमसे  अब  भी  वक़्त  मुंतज़िर है अभी    जागा   कोई   अभी   कोई   मर   गया महीना    जून    का   और    वक़्त   दोपहर है तेरे     नाम     पर    कत्त्ल    कर     रहा   वो खुदा    तेरा    नमाज़ी     सख्त    बेख़बर   है दरख़्ते       काटी      सौदा - ए - ज़मीं      को ऐसी   भी  लोगो  ...

ईश्वर अल्लाह एक है ?

कई सालो से एक ग़लत विचार समाज मे प्रसारित किया जा रहा है. विचार ये की "ईश्वर अल्लाह एक है". प्रमाण के तौर पर वर्तमान परिपेछ्य और भूतकाल मे घटित घटनाओ के परिणाम देखे जा सकते है. ये विचार एक सुंदर कलाकृति के भाँति ही है,जिसमे लाल रंग भी है हरा भी है तथा और भी विभिन्न प्रकार के सूछ्म रंग है. जिस किसी ने भी इस चित्र की रचना की,अत्यंत ही सुंदर,मनमोहक चित्रण प्रस्तुत किया,परंतु इसकी विश्वनीयता पर प्रश्‍न हैं. प्रश्न जो चित्र की प्रचंड आभा मे छिप गये, पर समय के साथ रंग फीके पड़ रहे हैं. प्रश्न फिर से बाहर आ गये हैं. प्रश्न की भाषा कुछ भी हो सकती है पर उसके मूल में अस्तित्व की ललकार है.

Might Have Been

Reminiscenes are the trap not what we ween let them go and you will know what i mean That truth we hold so far could be a decoy beauty is a myth what virtuous may be sheen Far time was dark but truth shall glean what hide inside the souls if pure & clean For once and all let consience be redeemd else won’t be a place beyond us & between We all keep a dream nobody ever have seen where life goes wild and desires go green There's always a past not going to change & a journey you would wish might have been

मिलती नही

कह गये जो इश्क़ की आग मे जलने का मज़ा है क्या  बताउ उन्हे  इधर  चिंगारी भी  जलती  नही और   जलाने   की  चीज़    भी    मिलती    नही दोस्त  मैने   तुमसे  एहसान  लिया की क्या लिया अब   आँखे    नीदो   से   कभी    मिलती   नही और    नीदे   आँखों    से   कभी   मिलती   नही एक  रोज़  वो  भी  मिली  चौराहे  पर, क्या  कहे बाते    भी   उनसे   बनाए   कोई   बनती    नही और    नज़रे    हमसे    मिलाए    मिलती    नही  जितनी  भी  दुनिया  देखी  है इतना ही समझा है घर     से   अच्छी    रोटी    कही    बनती    नही और  माँ  से  पहले   कोई  दुनिया  मिलती   नही

इंतज़ार

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दो पल की जिंदगी उधर चाहता हू हा मरने से पहले एक बार चाहता हू चाहता हू खाक बनने से पहले और राख अपनी उड़ने से पहले ये कहना  .............. ये कहना की तेरा हाथ नही मागा था तेरा साथ नही मागा था माँगा था तो बस तेरा इंतज़ार......... इंतज़ार की जिसमे दिन महीने साल गुज़र जाए और वक़्त का साहिल तोड़ के हम उस पर निकल आए जहाँ पर फिर तेरा इंतज़ार हो........ और इस इंतज़्ज़ार की उम्र हज़ार हो........... क्योंकि इस इंतज़ार में वॅहम था तुझे पाने का वजह थी एक झूठी ख़ुसी की और मौका था मुस्कुराने का......................

परेसान

ऐसा नही की फ़िकरों से मैं तुम्हारी अन्जान हूँ, कुछ है कारे-जहाँ बाकी अभी जिनसे परेसान हूँ. शिकायत-ए-इख्तिलात वज़ा तुमाहरी दरम्यान हमारे, है अभी हर साँस उधार अभी इन उधारो से परेसान हूँ. मुर्सद मिला भी तो मुझे ऐसा मिला ज़माने में, चलके रास्ते उसके अब मैं मंज़िलो से परेसान हूँ. ना जाने क्यूँ रोशनी चुभने लगी है इन आखों को, तुम अंधेरो से परेसान हो मैं उजालों से परेसान हूँ. मुस्करा के जो भी मिला राहों में, मैने उसे अपना समझ लिया दुश्मन लगने लगे है बेहतर की मैं दोस्तो से परेसान हूँ. हसाता रहा जिन को मैं ता-उम्र,परवाह नही अस्को की मेरे उनको हस्ते हैं मेरे पीछे वो, निभा के रिस्ते मैं रिस्तो से परेसान हूँ. हक़ीकत यही की सब कुछ बदलता नही , बस लगता है तुम जिस कल से परेसन थे , मैं उस आज से परेसान हूँ. इख्तिलात- separation, मुर्सद-pioneer

नवाब

हुए हम भी जवां तो देखा करते आए ज़माने को करके इश्क़ लोग राहे-फ़ना में जलने से डरा  करते हैं एक हम थे तैयार बैठे रहे फ़ना होने को कबसे जो याद ही ना आई किसी को कि ज़माने मे हम भी रहा करते है मुझे प्यास भी मिली और दरिया भी, पर दर्द का सबब ये जब गैर प्यास बुझाते हैं हम तमाशा देखा करते हैं तबीयत से रो ही लें हालातों पर तो बोले अश्क अंदर ही पी लो इन्हे कह दे ना ज़माना झूठा इतनी शर्म हम भी किया करते हैं तलाशते रहे मौके नवाब उम्र भर कि सारे हसी कारवाँ गुज़र गये हम कल भी रहे ख्याल में आज भी उन्ही मे जिया करते हैं गुजरती रही जमीले-ए-जवानी और एक दिन गुजर ही गयी अब तो कोई सीखा दे इस उम्र में उल्फ़त-ओ-गुनाह कैसे किया करते हैं दे खुदा तू कज़ा या की दे बता मुझे,निकालने को  दुश्मनी  जॅहा भर के दुश्मन मेरे...... तुझे क्या रिश्वत दिया करते है

व्याकुलता

मक्का गये मौलवी काशी गये संत दुविधा कैसी उपराई गयी सोचूँ मिले ना अंत लाल हुई मैं जाइ रही और घबराऊ संग गिरधर बरसे नाही पर भिझ गयो है अंग कासे काहु मैं पीर हिया की दशा विपत की आई बड़ी हिय ही जाने पीर है उसकी व्याकुल कर दे गति जो मन की विचर रही है करुन वेदना लहूलुहान हुआ सब जाता है साची बता दे सखी तू मोहे क्या तोहे भी ये दिन आता है दिन मास बरस सब बीत गये गति ना तन की बदली है सावन आए घिर बरस गये इसकी तो हर मास मे बदली है

तल्ख़ी

वसल-  ए - गम   हुए    अहबाब   यूँ     मिले बेगुनाही   में   भी   गुनाहे   हिसाब  यूँ   मिले अब   ये   आलम    है   तल्ख़ी-ए-जीस्त    में सर  फोड़  लू  महबूब  से  जवाब  यूँ    मिले मिले   फ़ना  ना   उल्फते   शराब  यूँ    मिले आबे   जम-जम   के   सौदे  तेज़ाब  यूँ  मिले जिंदगी इस  कदर  मक़सूद  हो  चली   मेरी जैसे फेक दी पढ़ के कूड़े में किताब यूँ मिले

ना समझना

आज की रात कतल की रात  है                           जो   मुस्कुराए  वो   तो  हसी    ना       समझना                 सब समझाएँगे तुमको फिर  भी                           कातिल   है   सिर्फ़   कातिल  यही ना  समझना     नाम   अलहदा    किरदारो     के                         है     दास्ताँ   ये    पुरानी   नई    ना    समझना     अब जो करना तो ख़त्म कर ही देना                       खंजर   हो   गया    हूँ     वही    ना      समझना       मुमकिन  है ...

क्या है

अहले वफ़ा क्या है, पहले क्या था अब क्या है ये जो हम तुम मिल लेते है यूँ ही कभी, वरना दुनिया मे रखा क्या है आगाज़ इश्क़ अंज़ाम अदालत सज़ा-ए-उलफत दफ़ा क्या है जहर कड़वा है येकौन कहता है करो इश्क़ अभी जिंदगी मे तुमने चखा क्या है आओ सफ़र करते है समंदर में डूबकर डूबे किनारो पे तो फिर मज़ा क्या है लोग परेसां करते है करते रहेंगे छोड़ो उनकी रज़ा क्या है सज़ा क्या है लौट के ना आये जिन माओं के बच्चे उनसे क्या पूछो की कज़ा क्या है रहने दो झूठी ही सही एक उम्मीद को कुछ लोगो मे खोने को बचा क्या है

सोनम गुप्ता बेवफा हो गयी

जिंदगी मे शैख़ बस यही दो गम रह गये वफ़ा से खाली सोनम और नोटो से ATM रह गये कुछ ख़ाके मोदी की ठोकर कुछ सोनम के रह गये दीवाने दोनो के घायल ख़ाके बस जखम रह गये कोई जुर्म तहरीर तक़रीर IPC की दफ़ा हो गयी सुना है लोगो से सोनम गुप्ता बेवफा हो गयी लोगो की बाते और बातों में बाते बाते ना जाने कितनी बेवजा हो गयी सुना है लोगो से सोनम गुप्ता बेवफा हो गयी

किधर जाएँगे

दरख़्त्तो से होके अलग पत्ते किधर जाएँगे तेरे दर से ना गये तो रस्ते किधर जाएँगे है शिद्द्त ही नही की जिसके खातिर मर जाएँगे खोज मुख़्तसर है जिनकी वो मुसाफिर किधर जाएँगे मुख्तलिफ जान के भी हूँ सफ़र मे लोग सब जिधर जाएँगे मुझमे मेरे मैं ही नही चल के भी कहीं अब किधर जाएँगे तय है मर्ग-ए-सफ़र होगा दूर गम से अगर जाएँगे हैं गम के मारे सो जिंदा है दूर गम से किधर जाएँगे

याद-ए-रफ्त्गा

लोगो मे कुछ तो ढूढ़ता हूँ , जाने क्या अंदर नही रहता जो सुकूँ आ भी जाए तो फिर, सुकूँ अंदर नही रहता सीख ले हदें अपनी समन्दर , फिर समन्दर नही रहता क़ैद गिरहो में हो जाए फकीर , फिर कलंदर नही रहता ये चस्म- ए- कारीगिरी है , यूँ ही कोई सुंदर नही रहता शीशा गोया दिल तो रहे ,बहुत देर छू मंतर नही रहता दुनिया है वो शय जीत के भी, जहाँ सिकंदर नही रहता तो खुदा हाफ़िज़ ए साहिल, मेरी किस्ती में लंगर नही रहता छोड़ आए की छूट गये , ख्यालो से दूर मंज़र नही रहता साकी भूला दे याद-ए-रफ्त्गा , की दिल बंज़र नही रहता