याद-ए-रफ्त्गा
लोगो मे कुछ तो ढूढ़ता हूँ , जाने क्या अंदर नही रहता
जो सुकूँ आ भी जाए तो फिर, सुकूँ अंदर नही रहता
सीख ले हदें अपनी समन्दर , फिर समन्दर नही रहता
क़ैद गिरहो में हो जाए फकीर , फिर कलंदर नही रहता
ये चस्म- ए- कारीगिरी है , यूँ ही कोई सुंदर नही रहता
शीशा गोया दिल तो रहे ,बहुत देर छू मंतर नही रहता
दुनिया है वो शय जीत के भी, जहाँ सिकंदर नही रहता
तो खुदा हाफ़िज़ ए साहिल, मेरी किस्ती में लंगर नही रहता
छोड़ आए की छूट गये , ख्यालो से दूर मंज़र नही रहता
साकी भूला दे याद-ए-रफ्त्गा , की दिल बंज़र नही रहता
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