नवाब
हुए हम भी जवां तो देखा करते आए ज़माने को
करके इश्क़ लोग राहे-फ़ना में जलने से डरा करते हैं
एक हम थे तैयार बैठे रहे फ़ना होने को कबसे
जो याद ही ना आई किसी को कि ज़माने मे हम भी रहा करते है
मुझे प्यास भी मिली और दरिया भी, पर दर्द का सबब ये
जब गैर प्यास बुझाते हैं हम तमाशा देखा करते हैं
तबीयत से रो ही लें हालातों पर तो बोले अश्क अंदर ही पी लो इन्हे
कह दे ना ज़माना झूठा इतनी शर्म हम भी किया करते हैं
तलाशते रहे मौके नवाब उम्र भर कि सारे हसी कारवाँ गुज़र गये
हम कल भी रहे ख्याल में आज भी उन्ही मे जिया करते हैं
गुजरती रही जमीले-ए-जवानी और एक दिन गुजर ही गयी
अब तो कोई सीखा दे इस उम्र में उल्फ़त-ओ-गुनाह कैसे किया करते हैं
दे खुदा तू कज़ा या की दे बता मुझे,निकालने को दुश्मनी
जॅहा भर के दुश्मन मेरे...... तुझे क्या रिश्वत दिया करते है
Comments