मिलती नही

कह गये जो इश्क़ की आग मे जलने का मज़ा है
क्या  बताउ उन्हे  इधर  चिंगारी भी  जलती  नही
और   जलाने   की  चीज़    भी    मिलती    नही
दोस्त  मैने   तुमसे  एहसान  लिया की क्या लिया
अब   आँखे    नीदो   से   कभी    मिलती   नही
और    नीदे   आँखों    से   कभी   मिलती   नही
एक  रोज़  वो  भी  मिली  चौराहे  पर, क्या  कहे
बाते    भी   उनसे   बनाए   कोई   बनती    नही
और    नज़रे    हमसे    मिलाए    मिलती    नही 
जितनी  भी  दुनिया  देखी  है इतना ही समझा है
घर     से   अच्छी    रोटी    कही    बनती    नही
और  माँ  से  पहले   कोई  दुनिया  मिलती   नही

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