किधर जाएँगे

दरख़्त्तो से होके अलग पत्ते किधर जाएँगे

तेरे दर से ना गये तो रस्ते किधर जाएँगे


है शिद्द्त ही नही की जिसके खातिर मर जाएँगे
खोज मुख़्तसर है जिनकी वो मुसाफिर किधर जाएँगे


मुख्तलिफ जान के भी हूँ सफ़र मे लोग सब जिधर जाएँगे

मुझमे मेरे मैं ही नही चल के भी कहीं अब किधर जाएँगे


तय है मर्ग-ए-सफ़र होगा दूर गम से अगर जाएँगे

हैं गम के मारे सो जिंदा है दूर गम से किधर जाएँगे

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