परेसान

ऐसा नही की फ़िकरों से मैं तुम्हारी अन्जान हूँ,
कुछ है कारे-जहाँ बाकी अभी जिनसे परेसान हूँ.
शिकायत-ए-इख्तिलात वज़ा तुमाहरी दरम्यान हमारे,
है अभी हर साँस उधार अभी इन उधारो से परेसान हूँ.

मुर्सद मिला भी तो मुझे ऐसा मिला ज़माने में,
चलके रास्ते उसके अब मैं मंज़िलो से परेसान हूँ.
ना जाने क्यूँ रोशनी चुभने लगी है इन आखों को,
तुम अंधेरो से परेसान हो मैं उजालों से परेसान हूँ.

मुस्करा के जो भी मिला राहों में, मैने उसे अपना समझ लिया
दुश्मन लगने लगे है बेहतर की मैं दोस्तो से परेसान हूँ.
हसाता रहा जिन को मैं ता-उम्र,परवाह नही अस्को की मेरे उनको
हस्ते हैं मेरे पीछे वो, निभा के रिस्ते मैं रिस्तो से परेसान हूँ.

हक़ीकत यही की सब कुछ बदलता नही , बस लगता है
तुम जिस कल से परेसन थे , मैं उस आज से परेसान हूँ.


इख्तिलात- separation, मुर्सद-pioneer

Comments

Popular posts from this blog

बहरें और उनके उदाहरण

मात्रिक बहर

बहर