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Showing posts from 2020

चार लोग

मेरी माँ बचपन से कहती थी, ये मत कर, चार लोग क्या कहेंगे . मैं यही सोचता था ये साले चार लोग हैं कौन , ज़िन्होने  मेरी ज़िंदगी में धनिया बो दिया है.. फिर कुछ लोगो  कोे देख कर समझ आया  कहीं ये वही चार लोग तो  नही जो मिस्टर इंडिया बनके धनिया बो रहे हैं...... पहले हैं ,ये साराहाह वाले जो फेसबुक पे पोस्ट शेयर करते हैं . मेरा तो सच्चाई और अच्छाई  से भरोसा  उठ गया था भाई  . मुझे क्या पता था वो सारे सर्वगुन सम्पन्न  लोग मेरी फ्रेंड लिस्ट  में हैं . दुसरे , जो अपनी फेसबुक  प्रोफाईल  पिक पर पिक्चर गार्ड/ प्रोटेक्टर  का यूज़ करते हैं . अरे 70 हजार का फ़ोन चलाने  वालो  स्नैप शाट नामक चीजे भी होती है .ये वही लोग है जो ऐप्पल का फ़ोन लेते ही इसलिये हैं की बता सके ये एंड्राएड  से बेहतर क्यूँ हैं . इन लोगो  का तो ये भी कहना है  मख्खन शब्द का इजाद ही ऐप्पल  का टच चलाने के बाद हुआ . तीसरे ,वो ...जो आंग्ल भाषा  के हर अगले सेनटेन्श  में "like" शब्द  का प्रयोग करते हैं . अरे भाई तुम बिलकूल भी "cool" नही लगते li...

मकान

प्यार तेरा सरकारी मकान जैसा ही था ,ज़िंदगी  लगभग गुजर ही गयी, किराया तो नाम का था कीमत कहां थी उसकी. कीमत का अहसास उस दिन हुआ जब मकान छोडने का वक्त आया, ईट गारे से एक घर तो खड़ा लिया मैने पर जेहन से पीले रंग की दीवारे और हरे स्लेटी रंग का दरवाजा नहीं गया. कुछ देर के लिये ही सही पर वो मकान ही मेरा घर था .

चार लोग

मेरी माँ बचपन से कहती थी, ये मत कर, चार लोग क्या कहेंगे . मैं यही सोचता था ये साले चार लोग हैं कौन , ज़िन्होने  मेरी ज़िंदगी में धनिया बो दिया है.. फिर कुछ लोगो  कोे देख कर समझ आया  कहीं ये वही चार लोग तो  नही जो मिस्टर इंडिया बनके धनिया बो रहे हैं...... पहले हैं ,ये साराहाह वाले जो फेसबुक पे पोस्ट शेयर करते हैं . मेरा तो सच्चाई और अच्छाई  से भरोसा  उठ गया था भाई  . मुझे क्या पता था वो सारे सर्वगुन सम्पन्न  लोग मेरी फ्रेंड लिस्ट  में हैं . दुसरे , जो अपनी फेसबुक  प्रोफाईल  पिक पर पिक्चर गार्ड/ प्रोटेक्टर  का यूज़ करते हैं . अरे 70 हजार का फ़ोन चलाने  वालो  स्नैप शाट नामक चीजे भी होती है .ये वही लोग है जो ऐप्पल का फ़ोन लेते ही इसलिये हैं की बता सके ये एंड्राएड  से बेहतर क्यूँ हैं . इन लोगो  का तो ये भी कहना है  मख्खन शब्द का इजाद ही ऐप्पल  का टच चलाने के बाद हुआ . तीसरे ,वो ...जो आंग्ल भाषा  के हर अगले सेनटेन्श  में "like" शब्द  का प्रयोग करते हैं . अरे भाई तुम बिलकूल भी "cool" नही लगते li...

ड्रैकुला के बहाने

एलिजाबेटा ड्रैकुला की वाइफ थी। ड्रैकुला उसको बहुत प्यार करता था। एक बार ड्रैकुला को तुर्कियो के खिलाफ एक लड़ाई में जाना पड़ा । कुछ दिनों बाद खबर आती है , ड्रैकुला मर गया (जो कि गलत खबर होती है) । खबर सुनकर एलिजाबेटा सुसाइड कर लेती है। ड्रैकुला वापस आता है । भगवान को कोसता है और शैतान के साथ समझौता करता है कि वो उसे पिशाच बना दे जो दूसरों के खून पर जिंदा रहता है ताकि वो अपना बदला ले सके । कहानी फिक्शनल है लेकिन फेक न्यूज़ का एक बहुत अच्छा example भी । इस जमाने का सबसे घातक जहर है "फेक न्यूज़" । कोई त्रासदी भी आये तो हज़ार 2 हज़ार मरेंगे , पर फेक न्यूज़ तो हर रोज़ दंगे फसाद करवा रहा है। अगर नेहरू और गांधी (या कोई अन्य फ़ोटो)से रिलेटेड कोई फ़ोटो व्हाट्सएप्प पे वायरल हो जाये तो तो ये प्रश्न नही उठेगा की क्यों फ़ोटो पोस्ट की गई , पर लोग ये जरूर कहेंगे "ये गांधी है नंगी लड़कियों के साथ हमारा राष्ट्र पिता" । कुछ लोग इसे वेरीफाई करेंगे कुछ सच मान लेंगे । फिर फारवर्ड भी कर देंगे । इसी तरह हर एक जाति समुदाय वर्ग पार्टियों के अपने अपने ग्रुप बन गए है। सब अपने को श्रेष्ठ और दूसरों को गलत ब...

इतिहास

इतिहास दो तरह का हो सकता है । एक जो दिखाई देता है दूसरा वो जो देखा जा सकता है, अब ये इस बात पर निर्भर है कि हम उसे कैसे देखना चाहते हैं। लोगो के अपने अपने मत हो सकते हैं इतिहास के किसी घटना विशेष को लेकर । ये मत इतिहास को डायनमिक बनाते हैं, लेकिन इतिहास अगर डायनामिक है तो इतिहास कैसे ?ऐसा समझिये की कई सारे आभासी  ब्रह्मांड एक वास्तविक ब्रह्मांड के समानांतर  चल रहे हों , फिर भी एक बात तो निश्चित तौर पे कही जा सकती है कि घटना के घटने का कोई एक मूल कारण (उत्प्रेरक कई हो सकते हैं)अवश्य रहा होगा और ऐसा बिल्कुल भी जरूरी नही जो हम जानते हैं वही सत्य हो। इतिहास संजीविनी है तो षड्यंत्र भी । मार्ग है तो मार्ग का कांटा भी । इतिहास लिखा जा रहा है तो बनाया (डॉक्टर्ड) भी । इतिहास वर्तमान को रास्ता दिखाता है भविष्य की ओर का , फिर स्वतः कल्पना की जा सकती है कि उस भविष्य का भविष्य कैसा  होगा जिसका "इतिहास" इतिहास भी न हो।

मेरे सपनों वाला ब्रिज

बचपन की बात है ,जब मैं छोटा था । छोटा मतलब ये समझिये की आठ नौ साल का तब बहुत सारे  अजीब अजीब सपने आते थे , वैसे वो सपने अजीब नही थे ,सुंदर थे ,बहुत ही सुंदर ,पर क्या है कि जब हम बड़े हो जाते है तो हमें हर वो चीज़ अजीब ही लगती है जो हमारे  प्री डिफाइंड सिस्टम में डाउनलोडेड नही है ।  हमारे सिस्टम का फ़ायरवॉल उसे मालवेयर ही समझता है । अगर ये सॉफ्टवेयर्स इंस्टाल भी हो जाएं तो सिस्टम उन्हें हार्मफुल बता के हटा देता है। बहुत सारे तो नही पर एक सपना याद आता है , मैं सोचा करता था कि , मेरे सारे दोस्तो के घरों की छत एक दूसरे से ओवरब्रिज जैसे किसी चीज़ से कनेक्ट हो जाती तो कितना मज़ा आता , आइस पाइस खेलने का तो और मज़ा था । ब्रिज आने जाने का काम तो करता ही वहाँ ऊपर से सन राइज़ और सन सेट देखना भी कितना अच्छा लगता ।  सपने में जब बरसात होती तो मैं ब्रिज पर जाके ठंडी ठंडी हवा के साथ पानी की खुली बौछारों का मज़ा लेता था। भीगने के बाद तो चाय पीने का मज़ा भी और होता है,  अपने घर चाय पी ली तो फिर ब्रिज से होके दोस्त के यहाँ चले गए, वहाँ पकौड़ी खाने को मिल जाती थी ।  उस टाइम लाइट बहुत जा...

मेरा संघर्ष

मैंने कहा था स्वीपर से मार देते हैं, लेकिन उसने कहा नही साहब नवरात्र चल रहा है। पाप लगेगा , दो एक दिन और रुक जाते हैं फिर दवा डाल देंगे । रात में खा के सुबह परलोक। पर होनी को कुछ और ही मंजूर था ,उस दिन अगर मैं उसकी बातों में न आया होता तो आज मुझे अपने 1300 रुपये के jbl इयरफोन का गम ना मनाना पड़ता। चार दिन तो हुए थे लिए हुए । चूहों ने काट दिया । काट के इयरपीस भी ले गए ।पता नही सालों को कहां dj बजवाना था।सुबह अच्छा खासा छोड़ के गया था शाम को आफिस से आया तो अपना कटा हुआ ईरफ़ोन देख के दिल इंडिया की जीडीपी हो गया । उसी छड़ से ये दृण प्रतिज्ञा कर ली की कुछ भी हो अब इनका समूल नाश होगा। अब हमरी जिंदगी का एक्क मक़सद है , "सब चूहा लोग का मौत "। एक एक को रैट किल खिला खिला के मारेंगे।

दुःख और संघर्ष

हम में से ज्यादातर लोग दुख और संघर्ष को एक ही समझ लेते हैं, पर ऐसा बिल्कुल नही है।ऐसे में आज एक बात याद आती है।  संघर्ष जीवन का एक जरुरी अंग है ,जीवन की एक पर्यायवाची, संघर्ष इंसान को बेहतर बनाता है। सबके अलग अलग संगर्ष हैं।किसी का आईएएस बनने का , किसी का एक्टर बनने का, किसी का राइटर बनने का। ये कुछ बनने का ,करने का प्रोसेस ही संघर्ष है। दुःख ये है कि किसी अपने का असमय चले जाना, माँ का बच्चे से हमेशा के लिए अलग हो जाना। ये दुख है , इसकी छतिपूर्ति नही की जा सकती। इन्ही बातों को याद करते हुए आज फिर मै चूहों के साथ अपने संघर्ष को एक कदम आगे ले गया हूँ।चूहों से जंग आज भी जारी है ।JBl cs 100i ईयरफोन्स का जाना एक दुखद घटना थी। पर" चूहें हैं समान तो काटेंगे "वाला फ्रेज मैं अपने जीवन मे अब और आगे चरितार्थ नही होने दूँगा ।रैट किल अपना काम कर रहा है। पर लगता है कोई चुहिया मर गयी , सब चूहा लोग फैज़ल बन गया है।बहुते एग्रेसिव हो गया है । एहि सब के बीच में हम चूहा लोग का पाछे सोनी का नया MDR-EX1501P इयरफोन आर्डर किया है अउर जो पहलका गाना सुने उसका बोल लिखे हैं  साहिर लुधियानवी  ,गायक है...

इन लव विथ टोक्यो

रफ़ी साहब का एक गाना है। सिनेमा का नाम था लव इन टोक्यो । वैसे तो इस पिक्चर का हर गाना ही अच्छा है। पर दो गाने मुझे खास तौर पर पसंद आते हैं। पहला गाना है जो लता जी ने गाया ।" कोई मतवाला आया मेरे द्वारे", दूसरा गाना है "आजा रे आ ज़रा" । इस गीत में खूबियों की क्या बात की जाए। बहुत सारी हैं। सबसे पहला क्रेडिट जाता है शंकर जयकिशन साहब को , जिनकी म्यूजिक का मैं बहुत बड़ा फैन हूँ । अपने जमाने के हिसाब से बहुत ही आगे की और ज़बरदस्त म्यूजिक इस जोड़ी ने तैयार की। शंकर जैकिशन को यू समझिये की जैसे बाहुबली प्री एरा और बाहुबली पोस्ट एरा । ऐसा नही था कि शंकर जयकिशन के पहले अच्छी म्यूजिक नही दी जा रही थी लेकिन इन्होंने म्यूजिक का कैनवास बदल के रख दिया । भारतीय संगीत में ऑरकेस्ट्रा का लाया जाना शंकर जयकिशन की देन है। अब म्यूजिक में सिर्फ तबला और हारमोनियम ही नही थे बैकग्राउंड में चालीस चालीस वायलिन बज रहे होते थे ,आठ नौ टाइप के परकशन चल रहे थे, सेलो और पियानो जैसे अपारंपरिक वाद्य यंत्रों का यूज़ शंकर जयकिशन ने अपने संगीत में बख़ूबी किया । जब बाकि संगीतकार धुने बना रहे थे तो शंकर जयकिशन सिम...

बीमार होने में वो मज़ा न रहा

बीते दिनों की याद आते ही याद आता है कि जिंदगी मुश्किल थी पर लोग आसान थे, आज जिंदगी आसान है और लोग मुश्किल। न जाने ही कितने पहरे और सरहदें बना ली है अपने दरम्यां हमने । कोई रिश्ता सीधे मतलब का नही बल्कि और कहो तो मतलब के ही सब रिश्ते दिखाई देते हैं। अनाज गेंहू में तो मिलावट थी ही पर सब्र था कि ये अनाज खा के बीमार पड़ भी गए तो , चार जानने वाले धमक पड़ेंगे। कोई सर दबा देगा, कोई थर्मामीटर लेकर बैठ जायगा , कोई डॉक्टर बुला लेगा । जब ऐसा माहौल हो तो कौन बीमार नही पड़ना चाहेगा । बीमारी फिर बीमारी कहाँ रहती है। अपनापन ,दोस्ताना माहौल और प्यार की ताकत क्या होती है। ये  ऐसे वक़्त ही समझ  आता था। अगर ऐसा ही माहौल बना रहता तो शायद कैंसर का भी इलाज नही कराना पड़ता।  हा जी ये थोड़ा ज्यादा हो गया। पर इसे अतिशयोक्ति अलंकार ही समझ लीजिए । कहने के पीछे भावना ये है कि एक जमाना था, लोग अपने आस पास के लोगो की परवाह करते थे । इस प्रकार का मोरल सपोर्ट रहने पर आज की तरह लोग बीपी, हाइपर टेंशन और अवसाद की बीमारियों से ग्रस्त नही रहते थे। ये आपसी मेलजोल की भावना हमारे कल्चर की एक महान देन थी हमारे समाज को...

हार

ये नजरिये की बात हो सकती है पर मैं समझता हूं कि जिंदगी की खूबसूरती को जीत के वक़्त नही बल्कि हार के समय महसूस किया जा सकता है। सफलता और जीत का जीवन मे एक अलग स्थान है पर ये असफलता होती है जो हमें और बेहतर बनाती है। चीज़ों को देखने के प्रति हमारा नजरिया बदल देती है। हमें ज्यादा ह्यूमेन बनाती है।  जिस वक्त इंसान असफलताओ से घिरा होता होता है, वक़्त उसके लिए धीमा हो जाता है। उसके पास होता है तो सिर्फ वक़्त।ये वही वक़्त होता है जब प्रेम में असफल व्यक्ति गुलज़ार के लिखे गानों का भी मतलब समझने लगता है और कैरियर में असफल व्यक्ति विवेकानंद की जीवनी पड़ने लगता है। असफलता का एक गुण है कि वो हमें मानवीय संबंधों के उन पहलुओं को जानने और समझने के लिए मजबूर कर देती है जो हमारे साथ रहते हुए भी हमें दिखाई नही देते। नज़र का चश्मा और बेहतर हो जाता है।हार पीछे तो ले जाती है मगर और आगे ले जाने के लिए । ये समझने की नही आत्मसात करने की बात है।  हो सकता है कि आप भविष्य में एक बड़ा मुकाम हासिल करें, लक्सरी लाइफ एन्जॉय करें, बुर्ज खलीफा में फाइन डिनर करें, यूरोप घूमें पर अपने संघर्ष के दिनों में दिल्ली के उस 8*...

ग़ज़ल

मिरे जब से हैं बिगड़े हालात सुनिए जो हैं कुछ नही उनकी बेबात सुनिए की हो कायदे में रहें बातें जो हों ये भी क्या हुई बात हर बात सुनिए कहे जा रही है जो मन मे आ रहा है तो फिर क्या ये दुनिया की दिन रात सुनिए हमी खेल में हों कोई दूसरा न मज़ा फिर है क्या जो न शह मात सुनिए अविनाश कुमार "नवाब"

ग़ज़ल

ये दुनिया में भेड़चाल क्यों है सवाल है की सवाल क्यों है नही है जब तो कहो नही भी है हाल ये तो ये हाल क्यों है वो वस्ल की बात पे है ठिठकी न पूछो रुखसार लाल क्यों है चली ही जाती है इक कहानी वो साल हर एक साल क्यों है नाराज भी तुम होती नही हो नही मुझे भी मलाल क्यों है नही है जिनका खुदा है उनका मिसाल भी ये मिसाल क्यों है नवाब

ग़ज़ल

खिर्दो अकल नही कुछ बादाम खा रहे हैं गालिब मगर गधे ही बस आम खा रहे हैं आया समझ है कैसे मछली चढ़ी शज़र पे धोखा  मिला है  उल्टा  इल्जाम खा रहे हैं क्या  क्या ही बेचते  हैं जो शब्द बेचते हैं वो बेच  के  खुदा  का  पैगाम खा  रहे हैं कैसे कहे  उसे  हम झूठा  है आदमी  वो धोखा इसीलिए हम गुलफ़ाम  खा रहे है है मर्ज ये ही अब तो मिलना न हो सकेगा बस हम ज़हर  दवाई  के नाम खा रहे हैं दौलत पे बाप  दादा की ऐश चल रही है आजाद देश को अब हुक्काम खा रहे हैं हैं इस कदर अमादा  खाने को  लोग सारे बाबा जो ढोंग फतवों पर इमाम खा रहे हैं नवाब

ग़ज़ल

जख्म हालातों के भर जायेंगे क्या छोड़ आये हैं जो घर जाएंगे क्या कश्मकश में आजकल हर जिंदगी लोग हद से अब गुजर जाएंगे क्या माना की सबसे बहादुर हम नही तुम डराओगे तो डर जाएँगे क्या वो सलीके से है बातें कर रही माने की रिश्ते बिखर जाएंगे क्या दूर तुम भी हो नही हम भी नही फासले अपने मगर जाएंगे क्या

दीपावली और अंधेरे का अस्तित्व

दीपावली आ गयी मतलब अंधेरा मिटाने का टाइम आ गया। जब से राम अयोध्या से आये लोग अँधेरा मिटाये पड़े हैं। लेकिन अंधेरा वहीं है जहाँ पहले था।सही बात तो ये है की अँधेरा मिटाया ही नही जा सकता । जब कुछ भी नही रहा होगा अँधेरा तब ही रहा होगा, उजाला तो बाद में आया । पता नही बचपन से हमे ये क्यों सिखाया जाता है कि अँधेरे के बाद सवेरा आता है । ये बात ठीक है पर ये भी तो सही है सवेरा खत्म होते ही अँधेरा फिर वापस आता है। ये कोई नही बताता। अंधरे उजाले का कांसेप्ट जोकि हमेशा "सत्य पर विजय और असत्य की हार" में उद्धरत किया जाता है ,कुछ ठीक ठीक नही बैठता। क्योंकि उजाला आते ही अगर सत्य की विजय होती है तो वापस अँधेरा आते  ही असत्य की भी विजय हो जाएगी।समग्रता में इनका मतलब कुछ और ही होना चाहिए ।          बहुत सारे ऐसे सवाल है जिनके जवाब कभी नही मिलते , उजाला अपने साथ स्पष्टता लाता है पर हर सवाल का जवाब बिल्कुल स्पस्ट ही हो ये जरूरी नही। कुछ सवालों के जवाब अंधेरों में ही ढूढने पड़ते है। अंधेरे को खत्म करने से कहीं ज्यादा जरूरी है उसके वजूद को समझना। रोशनी का वजूद अंधेरे में जिंदा तो रह...

बाबाजी का सिम

लगभग 1 साल पहले मैं एक किराने की दुकान पर  कुछ समान लेने गया। तभी एक दूसरा ग्राहक दुकान वाले से अशोक का छोले मसाला मांगता है। उस समय उसके पास अशोक के छोले मसाले खत्म हो गए थे। तो उसने ग्राहक से कहा कि अशोक का नही है पतंजलि का है। मैं सुन के थोड़ा हैरान हुआ। क्योंकि अभी तक उनके मसालों के बारे में नही सुना था। मैंने दुकानदार से मज़ाक करते हुए कहा भैया कुछ ऐसा भी है जो बाबाजी बनाने का नही सोच रहे। दुकानदार ने भी हसते हुए कहा कि बाबाजी तो सब कुछ बना रहे हैं भैया। बस अभी तक पतंजलि का निरोध (कंडोम) ही नही आया है। वही आना बाकी है।पहले वनीला चॉकलेट फ्लेवर तो थे ही अब अश्वगंधा, मुलेठी , और चरणामृत के भी फ्लेवर आयेंगे।हम दोनों ने इस बात पर खूब ठहाका लगाया।  आज एक खबर पड़ी तो ये बात याद आ गयी। खबर ये है कि बाबाजी सिम लांच कर रहे हैं। पतंजलि के सिम का नाम पतंजलि स्वदेसी समृद्धि सिम कार्ड है। अब तो सचमुच लगता है । बाबाजी का निरोध तो आके रहेगा।

स्त्री

स्त्री मूवी देख के निम्नलिखित बातें समझ आयीं। पहली ये की सौ बातों की एक बात , लड़की अगर बोले तो मतलब वो काम करना है।  दूसरी ये की औरत अगर चुड़ैल भी है तो उसकी इज़्ज़त करो। राज और dk ने जब अपनी पहली फ़िल्म बनाई गो गोआ गॉन तो मै समझ गया था ये साले बहुत बड़े बकचोद हैं। इन दोनो का टैलेंट सही जगह निकल नही पा रहा। अब जाके टैलेंट निकला है लौंडो का ,स्त्री में। हालाँकि इस बार डायरेक्शन इनका नही है पर कहानी राज और dk की है।सुमित अरोरा  को भी बराबर क्रेडिट जाता है, उतने ही अच्छे डायलाग लिखने के लिए। मूवी देखकर ऐसा ही लगता है जैसे गांव के चाचा ताऊ कहानी सुना रहे हैं। पता नही हमें हॉलीवुड से क्या ओबसेशन है। अब तक की हर हॉरर मूवी हॉलीवुड के भूतों से ही इंस्पायर लगती है। एक तो साला उनके भूतों और इलेक्ट्रिसिटी का कांसेप्ट ही समझ नही आता।  आधी मूवी में तो लगता है खोपड़ी वाले बल्ब ही ऑन ऑफ कर रहे हैं। हर मूवी में दो चार सौ बल्ब न तोड़ लें तब तक उन बेचारो को इंसलटी फील होता है । अरे अपने देसी भूतो/चुड़ैलों में ही इतने अच्छे कांसेप्ट हैं। बाहर से कॉपी करने की क्या जरूरत है।इंडिया के भूतों को इलेक्ट्...

हिंदी

क्या हम हिंदी का सम्मान करते हैं? इस प्रश्न का जवाब है ।हाँ ,हम करते हैं और यह सत्य भी है।सत्य इसलिए की हमको बचपन से ही बताया गया पढ़ाया गया की हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा (जो की गलत है) है।हिंदी हमारी मातृभाषा है, हिंदी का सम्मान करना चाहिए।हमारे दिमाग में ये बात इतनी डाली गयी तो फिक्स हो गया है कि  हाँ,हिंदी तो बहुत सम्माननीय है।  पर जब ये प्रश्न खड़ा कर दिया जाए की हम हिंदी का कितना सम्मान करते हैं तब पता चलता है कि हम एक झूट को सच समझ कर जी रहे हैं। अब क्या जवाब हो सकता है ,इस प्रश्न का? हम हिंदी को थोड़ा कम सम्मान देते हैं, थोड़े कम से ज्यादा देते हैं या बहुत ज्यादा । क्या करते हैं हम हिंदी के साथ ।थोड़ा समझने की कोशिश करते हैं। किसी अन्य भाषा को सीखने में हिंदी का अपमान नही है। अन्य भाषा यथा आंग्ल भाषा जो की भारत में पहली प्रमुख भाषा है या दूसरी प्रमुख भाषा है या सभी भारतीय भाषाओं में सबसे प्रमुख है, इसमे थोड़ा कंफ्यूज़न है।अंगेज़ी को बोलने में हिंदी का कतई अपमान नही है। आप दिन रात बोलिये।कोई समस्या नही ।हिंदी का अपमान तब है जब आप मेट्रो(ज्यादातर यही देखा है) , प्लेन ,पार्क या कहीं...

जैक स्पैरो , सॉरी कप्तान जैक स्पैरो

महान कप्तान जैक स्पैरो , हम सब को माफ करना। दुनिया के सबसे बड़े समुद्री लुटेरे , जहाज़ों को लूटने वाले। आपने तो उस दिन ही दिल जीत लिया था जब आपने ईस्ट इंडिया कंपनी का जहाज़  लूटा। भाई का बदला लिया। साले अंग्रेज़ 200 साल हमको लूट के गए और आपने उनको लूट लिया।#respect          नाशपिटे यश राज वालों ने आपका rip off कर दिया , पर आपकी स्पिरिट को खत्म नही कर सकते वो। सब कुछ चोरी कर लिया , बैकग्राउंड स्कोर तक नही छोड़ा।आपने अंग्रेज़ो का काटा, ये आपका ही काट गए।        आज स्पैरो भैया की याद आ रही है।कप्तान भैया ब्लैक पर्ल विजेता थे ।भइया तो फ्लाइंग डच मैन भी चलाये थे। वही डेवी जोंस वाला, जो सूंड से हारमोनियम बजाता था। यद्यपि वो दारू के नशे में धूत रहते थे ,लेकिन दिमाग चाचा चौधरी जैसा तेज़।        मुझे बहुत दुख होता था जब यदा कदा उनकी रम खत्म हो जाया करती थी। और वो सवाल करते थे की मेरी रम हमेशा ही खत्म क्यों हो जाती है? "कप्तान भैया मासूम बकचोद थे, खुद ही पी के खत्म कर देते और फिर खुद ही पूछते की रम कहाँ है?" दुश्मन दूर से दिख जाए तो क...

ग़ज़ल

दिल में तुम न रखे न निकाले गए न अंधेरे गए न उजाले गए  झूठ वैसे तो हमने कहा कुछ नही बात कह दी मगर कुछ दबा ले गए छोड़ आये सवालों को पीछे थे हम आज मसले वही बस उछाले गए इतने चहरे हैं की कोई चहरा नही जिसके जो दिल में आया लगा ले गए दर्द है आज जो कल थी वो ही खुशी सौदा था भी यही सो निभा ले गए लोग कहते तो हैं पर समझते नही दर्द जिनके हैं उनसे ही पाले गए इल्म वाले मगर सच बता सकते थे झूठ लेकिन वो बेहतर बना ले गए नवाब

चौकीदार

चुनाव आने वाले हैं तो आएंगे जरूर वही हैं द्वारपाल ये बताएंगे जरूर   कहानियाँ सुनाते हैं ये करते कुछ नही कि बातें अपने मन की ये सुनाएंगे जरूर कही सुनी नही ये बात जानते हैं हम शहद में घोल वादे ये चटाएँगे जरूर खरीदते हैं लोग सपने ये जो बेचते जो घर ओ बार भी हैं बेचे जाएँगे जरूर इकॉनमी फ्रांस से भी आगे बढ़ गयी ब्रिटेन से भी जल्दी आगे जाएंगे जरूर तरक्की देश की हुई है चार साल में गरीबी मिट गयी यकीं दिलाएंगे जरूर हैं काम के जो मसले वो न छेड़ दे कोई की पाक वाला सुर ये फिर लगाएंगे जरूर कहाँ थे होने कम जो दाम तेल के बढ़े ये ग्लोबली समस्या है दिखाएंगे जरूर है रोजगार ही नही तो भूखे मर रहे पर देश है तरक्की पे बताएंगे जरूर नवाब

रंगबाज़ों का दर्द

बात जो भूलने में जमाने गए हम वही बात फिर दोहराने गए हम हो पहले ये हरगिज़ जरूरी नही उनके चक्कर में कितने न जाने गए डेढ़ फिट बॉडी से रूह बाहर गयी देखा जब वो दरोगा बुलाने गए हो गयी रूह जुदा जान ओ तन भी गए कूटे ऐसे ले जा करक़े थाने गए आग गलती से भी अब तो जलती नही जल गए आग में जो जलाने गए कह रही हड्डियाँ हैं ये हमसे सभी अब न जुड़ पाएंगी जो जुड़ाने गए धोये तबियत से ऐसे गए इस कदर लोग दर्ज़ी से हमको सिलाने गए सोचता हूँ खुदा क्या से क्या हो गया सोचकर उस गली में क्या जाने गए नाम लेना हसीना का है अब गुनाह कह के हम दीदी उनको बुलाने गए "नवाब"आ गयी वक़्त पे है अकल रंगबाजी में कितने फलाने गए नवाब

Tumbbad

With this movie , indian film making has definitely gained a certain level of maturity . I have lost my faith in horror cum thriller zone movies which are produced in india, in past all they do is cut copy paste. This movie is definitely original. They do not use sudden creepy sound effects or the old tricks of moving camera over the shoulder. The director completely relies  on the story to work and it works. The camera lenses are well used to portray the claustrophobic scenes . The production value is top notch , totally uplifts the movie. Most of the scene includes rain , the greens and a dark environment which works superbly . Director duo do not try to scare you through formula film making methods. They don't even try to do that ,it's the story and the environment which worked for them. Most of the scenes are designed in low light conditions but the contrast is high enough to attract your eye's attention towards the character. Actors have pulled there character successf...

दीपावली और अंधेरे का अस्तित्व

दीपावली आ गयी मतलब अंधेरा मिटाने का टाइम आ गया। जब से राम अयोध्या से आये लोग अँधेरा मिटाये पड़े हैं। लेकिन अंधेरा वहीं है जहाँ पहले था।सही बात तो ये है की अँधेरा मिटाया ही नही जा सकता । जब कुछ भी नही रहा होगा अँधेरा तब ही रहा होगा, उजाला तो बाद में आया । पता नही बचपन से हमे ये क्यों सिखाया जाता है कि अँधेरे के बाद सवेरा आता है । ये बात ठीक है पर ये भी तो सही है सवेरा खत्म होते ही अँधेरा फिर वापस आता है। ये कोई नही बताता। अंधरे उजाले का कांसेप्ट जोकि हमेशा "सत्य पर विजय और असत्य की हार" में उद्धरत किया जाता है ,कुछ ठीक ठीक नही बैठता। क्योंकि उजाला आते ही अगर सत्य की विजय होती है तो वापस अँधेरा आते  ही असत्य की भी विजय हो जाएगी।समग्रता में इनका मतलब कुछ और ही होना चाहिए ।          बहुत सारे ऐसे सवाल है जिनके जवाब कभी नही मिलते , उजाला अपने साथ स्पष्टता लाता है पर हर सवाल का जवाब बिल्कुल स्पस्ट ही हो ये जरूरी नही। कुछ सवालों के जवाब अंधेरों में ही ढूढने पड़ते है। अंधेरे को खत्म करने से कहीं ज्यादा जरूरी है उसके वजूद को समझना। रोशनी का वजूद अंधेरे में जिंदा तो रह...

चुनाव आयोग

     एक जमाना था जब इलेक्शन कमीशन ने घड़ी डिटर्जेंट का एड टिवी पर बैन कर दिया था क्योंकि एक चुनावी पार्टी का चुनाव चिन्ह चक्र था । बिहार में लालू का बोलबाला था और जंगलराज का टाइम था।इलेक्शन के टाइम पर किडनेपिंग, कत्ल और बूथ कैप्चरिंग बिहार में आम बात थी। बिहार में फेयर और पीसफुल चुनाव कराना मतलब ऐसा था कि पटना में कोई कहे बर्फ गिरी हो ।एक ऐसा वक़्त आया कई सालों के जंगलराज के बाद कि नीतीश की गवर्मेंट आयी बिहार में और ऐसा हो पाया जे एम लींगदोह की वजह से जो उस वक़्त इलेक्शन कमीशन के चीफ बनाये गए थे। उन्होंने बिहार में इलेक्शन के टाइम आंध्रा से पुलिस मंगवाई और कानून को हाथ में लेने वालो के खिलाफ शूट ऑन द साइट का आर्डर दे दिया। नतीजा सामने था।              2002 का जम्मू कश्मीर का नामुमकिन चुनाव भी इन्होंने सफलतापुर्वक कराया। अलगाववादियो, चरमपंथियों और आंतकवादियो का सामना करना अपने आप में चुनौतीपूर्ण था उसके बाद फेयर तरीके से शांतिपूर्ण चुनाव भी हो जाएं । एक आदमी से इतनी उम्मीद करना उम्मीदों की पराकाष्ठा थी।           ...

फेयर एंड लवली

फेयरनेस क्रीम के ऐड में एक बात बिल्कुल फेयर होती है और वो ये कि इनके एड फेयर तो बिल्कुल भी नही होते।पहले कंपनिया अपने एड में "गोरा" शब्द का यूज़ करती थी अब "निखार" शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसके पीछे भी एक कहानी है ।हमारा कोई भाई था जिसने इमामी के ऐड में कही शाहरुख खान की बातों को को दिल पे ले लिया और दिन रात घस घस के क्रीम लगाई लेकिन उसकी स्तिथि वही फिर से ढाक के तीन पात वाली ही रही तो भाई हमारा सेंटी होकर कोर्ट चला गया और 15 लाख का दावा कंपनी पे ठोक दिया। कोर्ट ने भाई का दर्द समझा और ये समझा की भाई को मेन्टल इंजरी हुई है ।कोर्ट ने फैसला उसके हक़ में दिया। ये एक ऐतिहासिक फैसला था। ये कंपनिया वादा करती हैं कि निखार आएगा और लोग समझते हैं कि क्रीम गोरा बना सकती है। । क्रीम वाले ऐड में युगांडा की बहन भी काम कर सकती थी लेकिन ये समझ नही आया कि यामी गौतम को एड में लेकर ये फेयर एंड लवली वाले उसमे कौन सा निखार लाना चाहते थे।  मुझे ऐसा लगता है कि गोरेपन की फिलॉसफी मृगतृष्णा या मरीचिका के कांसेप्ट से बिल्कुल मेल खाती है।रेगिस्तान में गर्मी के दिनों में मरीचिका को दूर से ऑब्ज...

डिजिटली yours मोदी जी

आप चाहें तो मोदी जी की बातों पे हस सकते हैं लेकिन फिर आपको ये नही पता कि मोदी जी असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी हैं। उन्होंने जो बातें बताई उसके पीछे एक कहानी है जिसके बारे में लोगो को पता नही। इसलिए लोग शायद उनकी बातो को सीरियसली नही ले रहे। मै वो कहानी आप लोगो को बताना चाहता हूँ। हुआ ये कि मोदी जी ने जब 1987 में डिजिटल कैमरे से आडवाणी जी की रंगीन फ़ोटो खिंच कर ईमेल से दिल्ली भेजी ,तो अगले दिन आडवाणी जी का एक्सप्रेशन था कि डूड ये क्या है? मेरी रंगीन फ़ोटो ! OMG , How is this even possible? आडवाणी जी तबसे सदमें में घूम रहे हैं और लोगो को आज तक ये लगता रहा कि प्रधानमंत्री की कुर्सी जाने से उनको गहरा सदमा लगा है। नही ऐसा बिल्कुल नही था। लेकिन हम आज जानेंगे कि ये ऐतिहासिक घटना संभव कैसे हुई? जैसा हम सबको मोदी जी के apolitical interview से पता चल गया है कि मोदी जी ओबामा के लंगोटिया यार है और मोदी जी उनसे तू तड़ाक करके बात करते हैं , हालाँकि ये अपने आप में एक अलग रिसर्च का टॉपिक है कि अंग्रेज़ी में तू तड़ाक कैसे की जा सकती है। बहरहाल हम जानते हैं कि ओबामा एक शक्तिशाली आदमी है और अमेरिका के सभी सुप...

पिताजी की औलादें

एक दिन ऐसे ही मैं , मेरा छोटा भाई पंकज और हमारे पिताजी बैठ के tv देख रहे थे। हम जब भी साथ बैठते हैं तो कोई न कोई डिस्कशन हो ही जाता है। पुराने अनुभवों से शिक्षा लेते हुए मैं शांति का दामन थाम लेता हूँ लेकिन मेरा भाई वो गरम दल का क्रांतिकारी प्रखर पुरूष है और पिताजी तो खैर पिताजी ही ठहरे, जिनका मानना है कि औलादें तो बाप दादा के सीने पे खो खो कब्बडी खेलने के लिए ही जन्म लेती हैं। उस दिन माहौल न ज्यादा गर्म था न ज्यादा ठंडा।  मैच चल रहा था और साथ में चल रहा था डिस्कशन किसी बात पर। मैंने कोल्ड ड्रिंक की एक पेटी मंगा रखी थी।कोल्ड ड्रिंक बोतल खोलने की बात आई तो ओपनर ही नही मिल रहा था। तो पंकज ने तत्परता का परिचय देते हुए तुरंत बोतल उठाई और दाँत के किनारों से बोतल फसा कर खटाक से खोल दी। इस तरह से बोतल खोलने वाली विद्या में मैं भी पूर्ण रूप से पारंगत था तो मैंने भी एक बोतल उठा ली लेकिन तब तक मेरा ध्यान पिताजी की तरफ गया तो मै क्या देखता हूँ की पिताजी पंकज को भस्म कर देने वाली नज़रो से घूर रहे थे। फिर मैंने पंकज की तरफ देखा । वो भी डिफेंसिव मोड में आ चुका था और वो आंखों से ही अपनी बात समझाने...

बिल्ली और पेड़

हमारे समाज की जो परिकल्पना कभी की गयी थी। वो समाज आज भी चला आ रहा है। अब ये समाज कितना सभ्य रह गया है या था , डिबेट का विषय है। बाबा साहब अम्बेडकर ने कहा था कि अगर हमारे समाज का प्रभावशाली हिस्सा अपनी अमानवीय सोच को पहचानकर उसे बदलने के लिए प्रेरित नही होगा, तो फिर पूरा समाज ही अमानवीय कहलायेगा और हममे से कोई भी सभ्य होने का दावा नही कर पाएगा। लेकिन हम अपने आप को एक सभ्य समाज का हिस्सा होने का दावा करते ही रहते हैं। क्यों करते हैं ?क्योंकि जब तक बिल्ली चूहे को पकड़ती रहती है इस बात से कोई फर्क नही पड़ता की बिल्ली का रंग काला है या सफेद। भीड़ और समाज में फर्क होता है। भीड़ को नियंत्रण में करने के लिए एक व्यस्था की जरूरत होती है। नियत्रित भीड़ को ही समाज कहते है।चूंकि भीड़ नियत्रण में है तो व्यवस्था की समीक्षा करने की जरूरत किसी को महसूस नही होती लेकिन इसकी जरूरत है। ये देखना जरूरी है कि इस बिल्ली रूपी व्यवस्था का रंग क्या है। ये सफेद है या फिर काली और अगर काली है तो कितनी है? और फिर ये भी देखना जरूरी है कि कहीं ये काली बिल्ली रास्ता तो नही काट रही। इंसान को सबसे श्रेष्ठ प्रजाति माना जाता ह...

आर्टिकल 15

आर्टिकल 15 एक महत्वपूर्ण सिनेमा है। मुझे डर था की दलितों के प्रति सहानभूति जगाने के लिए कहीं मूवी को ओवर ड्रामाटिक न बना दिया जाए और जनरल केटेगरी के लोगो को विलेन पर ऐसा हुआ नही। लोग कह रहे हैं मूवी एन्टी ब्राह्मण है, लेकिन मूवी में हीरो तो ब्राह्मण है जो कास्ट सिस्टम के अगेंस्ट जा कर लड़ता है और न्याय दिलाता है। शायद जो विरोध कर रहे हैं  उन्हें या तो सच घिनौना लगा या फिर वो अखबार नही पढ़ते क्योंकि मूवी में वही बात कही या दिखाई गयी है जिसकी खबर आये दिन सुनाई पड़ती है।  ये कहानी एक घटना पर बेस्ड है, लेकिन सिर्फ उसी पर आधारित नही है। कहानी में कई सच्ची घटनाओं से रिफरेन्स लिया गया है। चाहे वो गुजरात में दलितों को नंगा पीटना हो या फिर  एक प्राइमरी स्कूल में दलित के हाथ का खाना खाने से मना कर देना। जिन्हें फिर भी लगता है की मूवी एन्टी ब्राह्मण है तो उन्हें गटर में उतरने वाले लोगों से उनकी जाति पूछनी चाहिये। हैरानी की बात नही होगी की आंकड़े सिर्फ एक ही जाति विशेष का नाम लेंगे और निश्चित तौर पर वो कोई ऊँची जाति नही होगी। आज कास्ट की बात करिए तो लोग रिजर्वेशन पर डिस्कशन करने लगते ...

दिल की आवाज

आज यु tube पे दर्शन रावल का एक गाना 2 नंबर पर ट्रेंडिंग चल रहा है। बहुत जल्द ही नंबर एक पर भी आ जाएगा। जिनको म्यूजिक की समझ है या नही भी है तो थोड़ा ध्यान से  सुनने पर उन्हें तुरंत समझ आ जाएगा कि इस गाने की मेलोडी आज के गानो की नही है। मुझे भी ऐसा ही लगा की गाना सुना सुना तो लग रहा है,फिर मैंने गाने के नीचे दिए हुए क्रेडिट्स चेक किये। पता चला की ये गाना तो पाकिस्तानी सिंगर हक़ीदा कियानी के गाये हुए एक गाने "बूहे बरियाँ" से इन्सपायर है।यही नही थोड़ा रिसर्च करने पर ये भी पता लगा कि इस गाने को पाकिस्तान में क्लासिक का दर्जा भी हासिल है। लेकिन कमाल की बात ये कि दर्शन के इस गाने को सुनने के बाद मुझे जिस गाने की vibe आयी वो सांग बूहे बरियाँ नही कोई और ही था। ये सांग प्रीति जिंटा की मूवी" दिल है तुम्हारा " एल्बम का था, और सांग था "दिल लगा लिया है "हालांकि ये गाना भी बूहे बरियाँ के साथ 2002 में ही रिलीज हुआ लेकिन ये copied था बूहे बरियाँ से। लेकिन मैं जिस कहानी को बताने में इंटरेस्टेड हूँ, उसकी हिस्ट्री "दिल लगा लिया......" के साथ जुड़ी है। जब ये गाना आय...

Botanical Garden Walk

मुझे वो याद नही जो मुझे पढ़ाया गया , मुझे वो याद है जो मैंने सीखा मैं और पांडेय , मॉर्निंग वाक के लिए बोटैनिकल गार्डन जाते हैं। आज हमारे साथ अजीत भी आया। अजीत मेरे एक और दोस्त ज्ञानी का भतीजा है और KGMC में 3rd ईयर का स्टूडेंट है। चुपचाप वाकिंग करना बोरिंग हो जाता है और रोज रोज बात करने के लिए नया टॉपिक कहाँ से आये, तो आज वाकिंग करते समय एक ख्याल आया की क्यों न कल के लिए हम सभी एक एक पेड़ सेलेक्ट कर लें, उसके बारे में रिसर्च करेंगे और फिर उस पर डिस्कशन करेंगे। सभी को ये आईडिया पसंद आया । उक्त आईडिया के फ्लोट होने के तत्क्रम में ,पांडेय ने तुरंत अपना पेड़ सेलेक्ट कर लिया। उसका पेड़ था कैसिया फिस्टुला ।अजीत को मिला टेक्टोना ग्रांडिस और मेरे हिस्से जो पेड़ आया वो था अल्स्टोनिया स्कॉलरिश । हालाँकि पेड़ों का सिलेक्शन रैंडम था लेकिन मेरे हिस्से जो पेड़ आया, उसको लेकर मुझे थोडी मायूसी हुई क्योंकि मुझे उसमे कुछ खास नज़र नही आया। इंसानों में एक मेंटेलिटी होती  कि उनको बिना वजह ही कोई चीज़ अच्छी लग सकती या बुरी । उसके पीछे कोई लॉजिक नही होता, बस मन को लग जाता है ये अच्छा है तो अच्छा और वो बुरा है ...

ग्रैविटी एक खोज

आज देवदास बहुत दुखी और उदास थे । किसी से बात करना चाहते थे लेकिन किससे करते।चुन्नी बाबू ने तो बादलों की सवारी ले ली थी,उनको खुद का पता भी उन्हें मालूम नही था। बहुत सोचने के बाद देवदास को पीयूष बाबू की याद आयी जिनके साथ बैठ कर गम गलत किया जा सकता था। पीयूष बाबू बड़े आदमी थे। लोगों के इक्के चलते थे उनकी ट्रेन चलती थी। ये अलग बात थी की उनका खुद का ट्रैक कभी कभार गड़बड़ा जाता । देव का फ़ोन आने पर पीयूष बाबू मना न कर सके।देव बाबू बोले आ जाओ अर्जेंट है साथ में इंतज़ाम भी लाना। उधर पीयूष बाबू सोच में पड़ गए ,ऐसा क्या काम आन पड़ा देव बाबू को जो अर्जेंट बुला रहे हैं। पीयूष बाबू ने देवदास को इतना उदास न देखा था कभी।  "क्या हुआ देवदास ,आज तुम देवदास बने क्यों बैठे हो?"पीयूष बाबू ने देवदास से पूछा। नशे में धुत्त देवदास ने बड़ी मुश्किल से सम्हलते हुए कहा,"पीयूष बाबू पारो छोड़ के चली गयी ।" देवदास का इतना कहना था कि पीयूष बाबू माथा पकड़ के बैठ गए ,"कब हुआ ये ?क्यों चली गयी पारो? "पीयूष बाबू , मेरी गणित कमजोर थी ना, मै हिसाब ही नही लगा पाया। कब पारो राइट हैंड साइड से लेफ्...

JNU हिंसा v/s NRC हिंसा

CAA /NRC के विरोध पर लोगो ने बताया कि कुछ भी हो जाए हिंसा गलत है जो कि एक तरह से सही है ।योगी जी ने उत्तर प्रदेश में बहुत ही सराहनीय कदम उठाया, जो हिंसा के लिए जिम्मेदार हैं, उनसे ही वसूली की जाए ऐसा कानून बना दिया लेकिन मैं समझता हूँ थोड़ी बहुत हिंसा धर्मरक्षको और देशभक्तों के लिये अलाऊ कर देनी चाहिए ।                 JNU में जो हुआ बहुत अच्छा हुआ। कुछ लोग गमछा बांध के JNU में घुस गए और जम के हिंसा की। स्टूडेंट्स को मारा पीटा । वैसे मैं तो JNU के स्टूडेंट्स को स्टूडेंट्स मानता ही नही । ये सब साले देश के गद्दार हैं। पता नही सरकार क्या कर रही है? राष्ट्रपति JNU को देश की दूसरी सबसे बेस्ट यूनिवर्सिटी का अवार्ड दे रहे हैं, उस पर अव्वल कि सरकार देशद्रोही कन्हइया को आज तक जेल में नही ठूस पायी। ऐसा हो सकता है क्या ?कोई देशविरोधी नारे लगाए, सरकार को खुले में चैलेंज करे और फिर खुले में  घूमे, न्यूज़ चैनलों पर डिबेट करे।                 बहुत दुःख की बात है पिछले दिनों दीपिका पादुकोण भी उन गद्दारो से जा मिली।...

वो मनहूस दिन

आज मैं जिस बात को लेकर आप सब तमाम हज़रात की तवज्जो चाहूँगा, वो बताने से पहले आप लोगो को कुछ खास बाते जोकि मेरे बारे में है ,उनको बताना इस लिहाज़ से भी बहुत ज्यादा जरूरी समझता हूँ, क्योंकि यहाँ से मेरी जिंदगी जो अब तक जैसी चली आ रही थी उसकी कैफियत पर थोड़ी सी मिर्च मली जाएगी। इसके बाद चन्दा कुछ दूर किरन से और कुछ दूर बहार चमन से चली जाएगी। मैं जिस दौर में बड़ा हो रहा था वो हिंदी सिनेमा का सबसे बुरा दौर था। मुझे ये नही पता इस दौर के बॉलीवुड को किसने सिखाया लेकिन इस दौर के बॉलीवुड ने एक पूरी जेनरेशन को सिखाया कि ढंग से बर्बाद कैसे होते हैं।अगर उस वक़्त रास्ट्रीय सिनेमा नाम की कभी कोई चीज़ होती तो सभी ट्रक -टेम्पो ड्राइवर,रिक्शावाले, दूधवाले,पानवाले और गली के आशिक़ आंदोलन करके "दिलवाले " को रास्ट्रीय सिनेमा घोषित करवा देते। अजय देवगन ने" फूल और काँटे "के माध्यम से हमें सिखाया कि लड़कियां कैसे पटाई जाती हैं। लड़कियों को स्टॉक करो,उनका पीछा करो, हाथ की नस काट लो ,बिल्डिंग से कूदने की धमकी दो,जहर खा लो और खून से लेटर लिखना तो बहुतअ जरूरी था।         ऐसी मूवीज बनना आम था कि जहा...

CAB

      तो एक बार बीजेपी वाले ममता बनर्जी को गलत बता रहे थे जब वो बांग्लादेशियों को वेस्ट बंगाल में घुसा रही थी। आज बीजेपी वाले खुद ला रहे हैं। वक़्त वक़्त की बात है।उस समय ममता बनर्जी का जो पर्पज था आज उसी पर्पज को बीजेपी फॉलो कर रही है। हिन्दू मुस्लमान ,मानवता, सेकुलरिज्म ,आदि परम्परा, आदि संस्कृति और वसुधैव कुटुम्भकम को एक बार साइड भी रख दें , तब भी इस बिल के आने से दो प्रॉब्लम हैं।        पहली दिक्कत ये की आप के खुद के देश में जहां पापुलेशन का कोई इलाज नही और जिसकी वजह से तमाम परेशानियां हैं,बेरोजगारी फैली हुई है, जीडीपी गिर रहा है, रिसोर्सेज सीमित हैं। वहाँ आप बाहर से और लोगों को उठा के ले आ रहे हैं। ये लोग कहा रहेंगे, कहाँ जाएंगे, क्या करेंगे इसके बारे में आपकी क्या कार्य योजना है। कोई योजना है भी की नही? ये भी देखना होगा या सबको वोटर कार्ड थमा देना है ,काम खत्म।        दूसरा ये कि देश की सिक्योरिटी से भी कोम्प्रोमाईज़ होगा।रॉ ने भी इसपर कंसर्न ज़ाहिर किया है।कल की डेट में कोई भी हिन्दू बन के इस कैब की सवारी करते हुए भारत की स...

CAA /NRC

ये सच है कि बहुत लोग जाने बिना ही CAA का विरोध कर रहे हैं। किसी चीज़ का विरोध जिस भी वजह से करना हो,उसके बारे में क्लेरिटी होना बहुत जरूरी है, लेकिन लोगो के अंदर अगर क्लैरिटी नही है तो उसके लिए भी हमारे मुल्क के नेता ही जिम्मेदार हैं। नेता किसी भी पार्टी का हो , वो हमेशा वोट बैंक के बारे में पहले सोचता है। सत्ता पक्ष ने कैब को अपने वोट बैंक के हिसाब से देखा और विपक्ष ने कैब को अपने चश्मे से दिखाया।            CAB की आत्मा जितनी शशक्त और साफ हो सकती थी ,उसको लागू करने वालों में उतनी ही ज्यादा नैतिक बल की कमी दिखी। यहाँ कुछ बातों का जान लेना बहुत जरूरी है। CAA धर्म विरोधी या मुस्लिम विरोधी नही है और न ही संविंधान विरोधी है (लेकिन हो जाता है एक विशेष परिस्थिति में)। इसे आगे समझेंगे कैसे?             एक देश को अधिकार है कि वो बाहर से किन लोगो को अंदर लाना चाहता है। यदि सभी धर्मों के लोगो का स्वागत किया जाए तो बहुत बढ़िया  लेकिन यदि किसी धर्म विशेष के लोगों के लिए रोक भी लगायी जाती है तो उस देश को ,ये कह के की ये" वसुधैव कुट...