फेयर एंड लवली

फेयरनेस क्रीम के ऐड में एक बात बिल्कुल फेयर होती है और वो ये कि इनके एड फेयर तो बिल्कुल भी नही होते।पहले कंपनिया अपने एड में "गोरा" शब्द का यूज़ करती थी अब "निखार" शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसके पीछे भी एक कहानी है ।हमारा कोई भाई था जिसने इमामी के ऐड में कही शाहरुख खान की बातों को को दिल पे ले लिया और दिन रात घस घस के क्रीम लगाई लेकिन उसकी स्तिथि वही फिर से ढाक के तीन पात वाली ही रही तो भाई हमारा सेंटी होकर कोर्ट चला गया और 15 लाख का दावा कंपनी पे ठोक दिया। कोर्ट ने भाई का दर्द समझा और ये समझा की भाई को मेन्टल इंजरी हुई है ।कोर्ट ने फैसला उसके हक़ में दिया। ये एक ऐतिहासिक फैसला था।
ये कंपनिया वादा करती हैं कि निखार आएगा और लोग समझते हैं कि क्रीम गोरा बना सकती है। । क्रीम वाले ऐड में युगांडा की बहन भी काम कर सकती थी लेकिन ये समझ नही आया कि यामी गौतम को एड में लेकर ये फेयर एंड लवली वाले उसमे कौन सा निखार लाना चाहते थे। 
मुझे ऐसा लगता है कि गोरेपन की फिलॉसफी मृगतृष्णा या मरीचिका के कांसेप्ट से बिल्कुल मेल खाती है।रेगिस्तान में गर्मी के दिनों में मरीचिका को दूर से ऑब्जर्व करने वाला आदमी ये समझता है की कुछ दूरी पर तालाब या पानी का श्रोत है लेकिन जैसे जैसे आदमी नज़दीक पहुँचता है वो स्रोत उससे और दूर चला जाता है।इंसान भटकता रहता है उस पानी की तलाश में मगर पानी तो कभी था ही नही ।ठीक उसी तरह यहाँ पर भी एक मरीचिका है और उस मरीचिका का नाम है, गोरापन ।अच्छा अब एक और शब्द है निखार ,तो ये निखार वास्तव में है क्या  ?इसको अगर समझा जाय तो यूँ समझ सकते हैं कि आदमी और उसके गोरेपन को हासिल करने के चाहत की बीच की दूरी है, निखार। लोगो को लगता है निखार वाले रास्ते पर थोड़ी थोड़ी दूरी तय करके एक दिन गोरापन हासिल किया जा सकता है। जैसा की प्रचार में बोलते है न "5 हफ़्तों में बेदाग साफ सुथरी त्वचा"।खैर गोरे तो लोग आज तक नही बन पाए लेकिन बेवकूफ बनने में उन्हें कोई ऐतराज़ नही । अच्छा जब कंपनी को लगा अरे वाह यहाँ के लोग तो कुछ भी मान लेते हैं। पत्थर को भगवान मान लेते हैं।  नदी को देवी मान लेते हैं फिर चाहे भले ही उसमें मलमूत्र और कूड़ा कचरा बहाते रहें और तो और आतंकी को नेता भी मान लेते हैं। ये सोचकर कंपनी ने कहा क्यों न एक काम किया जाय ।हम अपनी क्रीम को एक ट्यूब से निकाल कर दूसरे ट्यूब में डाल देते हैं और उसको कुछ नाम दे देते हैं।एक का नाम लवली है तो दूसरे को हैंडसम कह देंगे और फिर उनको बोलेंगे कि ये वाली क्रीम ही मर्दों के लिए है।तुम अब तक मिथ्या में जी रहे थे। ये लो ये मर्दों वाली क्रीम लगाओ इससे तुम्हे मोक्ष की प्राप्ति होगी, इससे इतनी लाइट निकलेगी कि तुम्हारे जीवन के सब अंधकार मिट जाएंगे । Fashion tv की दो तीन मॉडल्स तुम्हारी गर्लफ्रैंड बन जाएंगी। इंटरव्यू के पहले दिन ही तुमको कंपनी का सीईओ बना दिया जाएगा। तुम्हारे चेहरे से इतनी लाइट निकलेगी इतनी लाइट निकलेगी कि दो चार सोलर पैनल लगा दो तो तीन चार शहरों की बिजली की समस्या यूँ ही खत्म हो जाएगी। अच्छा एक महत्वपूर्ण बात और जब कंपनी ने बताया तब जाके ही समझ आया की ये क्रीम तो मर्दों को छुप छुप के लगानी थी नही तो हमारे चचा खुले मे लगा के घूम रहे थे। पहली बार जिंदगी में ये अहसास हुआ कि क्रीम का भी जेंडर हो सकता है।ये तो कहो की हिजड़ो की आबादी कम है , इसलिए किसी कंपनी वाले को इसमे मार्केट नज़र नही आया। ये भी अगर समाज में इक्वल कैपेसिटी में होते तो 3rd जेंडर वाली क्रीम भी देखी जा सकती थी और इस संभावना से इनकार नही किया जा सकता।
भारत में गोरेपन का चूतियापा अलग लेवल पर ही चल रहा है। इस बात को दो लोगो ने बहुत ही अच्छे तरीके से समझा। एक साउथ इंडिया के डायरेक्टर्स ने और दूसरा चाइना ने । अब साउथ के लोकल लोग जैसे भी दिखने में हो लेकिन फिल्मो में heronies का कलर और साथ साथ उस फ़िल्म में जितनी भी लड़कियां हैं सब गोरी ही नज़र आती हैं। हाँ हीरो चाहे कितना भी मोटा काला हो लोगो को चलता है।लेकिन लड़की का कलर दूध से 19 नही होना चाहिए। फ़िल्म हिट करानी है तो लड़की गोरी चाहिए क्योंकि जनता को गोरा रंग ही चाहिए।
लोगो की इस प्यास को चाइना ने भी समझा और सदियों से चली आ रही इस मृगतृष्णा को बुझाया गया ओप्पो- वीवो के चाइनीज़ स्मार्टफोन्स से।अब हर वो प्राणी जिसको गोरा बनने की चाह थी सिर्फ गोरा ही नही बन रहा था बल्कि उसकी त्वचा भी पाँच दस साल के बच्चो जैसी लग सकती थी। ये सोने पे सुहागा वाली घटना थी।
ये अलग बात थी कि इन स्मार्टफोन्स के द्वारा भारतीय जनता को उनके अंदर स्वयं के रंग को लेकर जो कुंठा विद्यमान थी , उससे मुक्ति दिलाई गई औऱ यही नही तमाम सोशल मीडिया साइट्स की DP पर गर्व से उनकी खुद की फ़ोटो लगाने की आत्मशक्ति भी उन्हें प्रदान की गई लेकिन हर भारतीय जो सोशल मीडिया पर है ,उसके ऊपर देश भक्त बनने का भी तो प्रेशर है। अब देशभक्त बनने के दो तरीके हैं । पहला तरीका ये जो कि थोड़ा मुश्किल है ,आप अपना काम जो भी आप करते हैं ईमानदारी से कर सकते हैं लेकिन चूंकि भारतीय इस शब्द के बहुत used  to नही हैं तो दूसरा रास्ता ज्यादा prefer करते हैं। दूसरा रास्ता ये है कि आप पाकिस्तान मुर्दाबाद या फिर चाइना का विरोध कर सकते हैं। चाइना के विरोध का मतलब चाइनीज गुड्स का विरोध करना है। क्यों करना है?क्योंकि सरकार कहती है। सरकार खुद भी तो चाइना से व्यापारिक कारोबार बन्द कर सकती है। लेकिन नही करती, वो अपील करती है हमारी जनता से कि तुम करो । कुछ कुछ वैसा ही जैसे सरकार तम्बाकू और अल्कोहल के साथ करती है। धूम्रपान और अल्कोहल के खिलाफ प्रचार तो करती है लेकिन इनको बैन नही करती क्योंकि ईश्वर अंतिम सत्य हो सकता है लेकिन पैसा सबसे बड़ा सत्य है।और हम जो हाथ में यहाँ ओप्पो वीवो लिए बैठे हुए हैं, चाइना के खिलाफ पोस्ट शेयर करना शुरू कर देते हैं। क्योंकि सिर्फ फेयरनेस क्रीम वाली कंपनी ही नही हमारी सरकारें भी जानती हैं की हम कुछ भी मान लेते हैं।

नवाब

Comments

Popular posts from this blog

बहरें और उनके उदाहरण

मात्रिक बहर

बहर