हिंदी



क्या हम हिंदी का सम्मान करते हैं? इस प्रश्न का जवाब है ।हाँ ,हम करते हैं और यह सत्य भी है।सत्य इसलिए की हमको बचपन से ही बताया गया पढ़ाया गया की हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा (जो की गलत है) है।हिंदी हमारी मातृभाषा है, हिंदी का सम्मान करना चाहिए।हमारे दिमाग में ये बात इतनी डाली गयी तो फिक्स हो गया है कि  हाँ,हिंदी तो बहुत सम्माननीय है।  पर जब ये प्रश्न खड़ा कर दिया जाए की हम हिंदी का कितना सम्मान करते हैं तब पता चलता है कि हम एक झूट को सच समझ कर जी रहे हैं। अब क्या जवाब हो सकता है ,इस प्रश्न का? हम हिंदी को थोड़ा कम सम्मान देते हैं, थोड़े कम से ज्यादा देते हैं या बहुत ज्यादा । क्या करते हैं हम हिंदी के साथ ।थोड़ा समझने की कोशिश करते हैं। किसी अन्य भाषा को सीखने में हिंदी का अपमान नही है। अन्य भाषा यथा आंग्ल भाषा जो की भारत में पहली प्रमुख भाषा है या दूसरी प्रमुख भाषा है या सभी भारतीय भाषाओं में सबसे प्रमुख है, इसमे थोड़ा कंफ्यूज़न है।अंगेज़ी को बोलने में हिंदी का कतई अपमान नही है। आप दिन रात बोलिये।कोई समस्या नही ।हिंदी का अपमान तब है जब आप मेट्रो(ज्यादातर यही देखा है) , प्लेन ,पार्क या कहीं भी अंग्रेज़ी साहित्य को सिर्फ इसलिए पढ़े ताकि दुनिया को लगे आप बहुत ज्यादा ज्ञानी ,कूल और हैपनिंग हैं, और आप मानते हों की हिंदी साहित्य को पढ़ने से उपरोक्त वर्णित गुण आपके अंदर कदापि भी नही आ सकते । या किसी ने आपको हिंदी साहित्य पड़ते देख लिया तो जज करना न स्टार्ट कर दे। "लगता है इसको इंग्लिस तो नही आती।" तब है हिंदी का अपमान ।
हिंदी का अपमान तब भी है , जब आंग्लभाषायी (जिन्हें हिंदी भी आती है) लोगो के बीच आपको हिंदी बोलने में शर्म आती है। लोग क्या सोचेंगे? 
हिंदी , अंग्रेज़ी या कोई अन्य भाषा ,ये सब रास्ते हैं। मंज़िल नही। मंज़िल पर पहुचने के बहुत सारे रास्ते हो सकते हैं। कोई एक रास्ता जानता है, कोई दो, कोई दो से भी ज्यादा। पर मतलब तो डेस्टिनेशन पर पहुचने से है। भाषा एक माध्यम है ।स्वयं में ज्ञान का आधार नही। आजकल लोग अपने बच्चो को इंग्लिश मीडियम में इसलिये पढ़ाना चाहते है क्यों की बच्चा तेज़ निकल जाएगा, और हिंदी मीडियम में पढ़ा तो गधा ही रहेगा। बच्चे का विकास हिंदी मीडियम में तो कभी नही हो सकता। 
यहां पर जावेद अख्तर साहब की एक बात याद रही है की प्रतिभा या टैलेंट जो है ,वो एक दरिया की तरह है , वो रुक नही सकता। वो पहाड़ो को कांट छांट कर अपना रास्ता बना ही लेता है। उसको जहाँ पहुचना है, पहुच जाता है। भारत ने तो अंग्रेज़ी बोलने वाले भी प्रदानमंत्री देखे हैं और हिंदी बोलने वाले भी। बाकी मुझे तो इतना ज्ञान नही। अगर दुनिया तमाम के लोग सोचते हैं की इंग्लिश मीडियम ही सही है तो सही होगा।
हिंदी का सम्मान भले ही न कर सके हम पर इतना सम्मान तो उसको दे ही सकते हैं की " हिंदी संम्माननिय है" ये कहने का नाटक बन्द कर दें।

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