CAA /NRC



ये सच है कि बहुत लोग जाने बिना ही CAA का विरोध कर रहे हैं। किसी चीज़ का विरोध जिस भी वजह से करना हो,उसके बारे में क्लेरिटी होना बहुत जरूरी है, लेकिन लोगो के अंदर अगर क्लैरिटी नही है तो उसके लिए भी हमारे मुल्क के नेता ही जिम्मेदार हैं। नेता किसी भी पार्टी का हो , वो हमेशा वोट बैंक के बारे में पहले सोचता है। सत्ता पक्ष ने कैब को अपने वोट बैंक के हिसाब से देखा और विपक्ष ने कैब को अपने चश्मे से दिखाया।
           CAB की आत्मा जितनी शशक्त और साफ हो सकती थी ,उसको लागू करने वालों में उतनी ही ज्यादा नैतिक बल की कमी दिखी। यहाँ कुछ बातों का जान लेना बहुत जरूरी है। CAA धर्म विरोधी या मुस्लिम विरोधी नही है और न ही संविंधान विरोधी है (लेकिन हो जाता है एक विशेष परिस्थिति में)। इसे आगे समझेंगे कैसे?
            एक देश को अधिकार है कि वो बाहर से किन लोगो को अंदर लाना चाहता है। यदि सभी धर्मों के लोगो का स्वागत किया जाए तो बहुत बढ़िया  लेकिन यदि किसी धर्म विशेष के लोगों के लिए रोक भी लगायी जाती है तो उस देश को ,ये कह के की ये" वसुधैव कुटुम्बकम" वाली या स्वामी विवेकानंद की धरती है,जज करना या विशेष धर्म विरोधी कहना ठीक नही। क्योंकि उस देश द्वारा किसी को नागरिकता दी ही जा रही है ,किसी  से छीनी नही जा रही ।
खैर CAB में अब तक भी कोई बहुत परेशानी वाली बात नही थी।
          परेशानी का सबब तब बना जब असम में NRC लगने की वजह से लगभग 19 लाख लोगों की  सिटीजनशिप छीन गयी।  लेकिन ऐसा भी नही था कि इन लोगो के लिए घर वापसी के सारे दरवाजे बन्द हो गये। दुनिया की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी में ट्रिब्यूनल और कोर्ट के दरवाजे अब भी खुले थे। असम में NRC के मारो ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट में केस चल रहा था। ये उलेक्खनीय है कि अभी तक कोई हो हल्ला , चीख पुकार या दंगा नही हो रहा था। हिन्दू मुस्लिम सब केस लड़ रहे थे, तभी जन्म हुआ कैब( CAB)का । हिंदुओं के लिए कैब , साँप सीढ़ि के खेल में उस सीढ़ी की तरह साबित हुआ जिसने हिंदुओ को सीधे 99 पे पहुँचा दिया । अब अमेंडमेंट बिल को एक्ट बनना था ,उसके बाद हिन्दू 100 पर,लेकिन मुसलमानो के लिए वही कैब  एक कोबरा साँप बन के उभरा , जिसने मुस्लमान को ऐसा काटा की वो 1 पे जा पहुँचा। उसे सब कुछ फिर से स्टार्ट करना था।
          देखा जाए तो ये एक डिस्क्रिमिनेशन है। ये आर्टिकल 14 का वायलेसन है जो जाति धर्म रंग या किसी अन्य आधार पे भेद भाव नही करता । लेकिन सत्ता पक्ष बहुत आसानी से साबित कर सकता है कि CAA आर्टिकल 14 का violation नही करता क्योंकि , आर्टिकल 14 के दो टेस्ट हैं। उनमें एक टेस्ट उसे रिज़नेबल क्लासिफिकेशन का अधिकार देता है। अब रिज़नेबल क्लासिफिकेशन क्या है?
         इस चीज़ को हम संविंधान के तहत दिए गए रिजर्वेशन से  समझ सकते हैं। जैसे संविंधान इक्वलिटी की बात तो करता है लेकिन रिजर्वेशन के रूप में एक  तरह का डिस्क्रिमिनेशन भी करता है, लेकिन ये डिस्क्रिमिनेशन एक पॉजिटिव डिस्क्रिमिनेशन है,जिसे हज़ारो सालों से शोषित जातियों के ऊपर हुए शोषण के कारण पीछे रह जाने की वजह से उनके उपलिफ्टमेंट के लिए दिया गया।
          सत्ता पक्ष भी यही लॉजिक यूज़ करते हुए और तीन देशों के minorities  को उनके देश मे उनपर हुए अत्त्याचार को रिज़नेबल क्लासिफिकेशन का आधार बनाते हुए अपने देश मे सिटीजनशिप देने का आधार बनायेगा और इस तरीके से सरकार को संविंधान के विरुद्ध भी नही जाना  होगा।
      "  मैं अगर   CAA को आसान शब्दों में डिफाइन करू तो ये कह सकता हूं कि CAA एक मासूम बच्चा था। असम में जाके उसे NRC की हवा लग गयी। तबसे उसकी तबियत नासाज़ चल रही है।"
         हालाँकि CAA से आसाम एकॉर्ड जरूर टूटेगा। क्योंकि जिन बांग्लादेशी घुसपैठियों (हिन्दू और मुसलमान दोनों) की वजह से NRC लागू हुई थी , उन सभी लोगो (सिर्फ हिंदुओ को)को तो भारत सरकार  भारतीय नागरिक बना देगी। जिसका असम के लोग विरोध कर रहे हैं और शायद असमी होने की वजह से अर्णब गोस्वामी भी। भक्ति और मातृभूमि की सेवा का धर्म संकट खड़ा हो गया है।
        इस कानून में लाए गए नए संशोधनों और उसकी वजह से उठती लोकतांत्रिक माँगो के बीच विपक्ष की छटपटाहट और सत्ता पक्ष जो लोकतंत्र का चोला पहने अधिनायकवाद का बिगुल बजा रहा है,को एक साथ देखे जाने की जरूरत है। अगर हम सबको अलग अलग देखेंगे तो उन लोगो के लिए रास्ता और आसान हो जाएगा जो भीड़ को गुमराह और भड़का कर अपना उल्लू सीधा करना जानते हैं। अफवाहों को सच बनाने में
सबसे बड़ा योगदान है IT सेल का है । इसलिए किसी भी मीम को शेयर करने से पहले उसका सच जान ले।

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