ग्रैविटी एक खोज



आज देवदास बहुत दुखी और उदास थे । किसी से बात करना चाहते थे लेकिन किससे करते।चुन्नी बाबू ने तो बादलों की सवारी ले ली थी,उनको खुद का पता भी उन्हें मालूम नही था। बहुत सोचने के बाद देवदास को पीयूष बाबू की याद आयी जिनके साथ बैठ कर गम गलत किया जा सकता था। पीयूष बाबू बड़े आदमी थे। लोगों के इक्के चलते थे उनकी ट्रेन चलती थी। ये अलग बात थी की उनका खुद का ट्रैक कभी कभार गड़बड़ा जाता ।
देव का फ़ोन आने पर पीयूष बाबू मना न कर सके।देव बाबू बोले आ जाओ अर्जेंट है साथ में इंतज़ाम भी लाना। उधर पीयूष बाबू सोच में पड़ गए ,ऐसा क्या काम आन पड़ा देव बाबू को जो अर्जेंट बुला रहे हैं।
पीयूष बाबू ने देवदास को इतना उदास न देखा था कभी।
 "क्या हुआ देवदास ,आज तुम देवदास बने क्यों बैठे हो?"पीयूष बाबू ने देवदास से पूछा।
नशे में धुत्त देवदास ने बड़ी मुश्किल से सम्हलते हुए कहा,"पीयूष बाबू पारो छोड़ के चली गयी ।"
देवदास का इतना कहना था कि पीयूष बाबू माथा पकड़ के बैठ गए ,"कब हुआ ये ?क्यों चली गयी पारो?
"पीयूष बाबू , मेरी गणित कमजोर थी ना, मै हिसाब ही नही लगा पाया। कब पारो राइट हैंड साइड से लेफ्ट हैंड साइड चली गयी। "
भरी आंखों से देव ने पीयूष बाबू की तरफ देखा।पीयूष बाबू को कहीं जाना था मगर देव बाबू की हालत देख कर उनसे जाया न गया।
क्या कहूँ पीयूष बाबू मेरी जिंदगी तो द्विघातीय समीकरण(quadratic equation) की वो चर राशि (x)हो गयी है जिसके दो हल निकलते हैं। एक आभासी है,दूसरा वास्तविक।
"मै समझा नही देव"
समझना क्या है पीयूष बाबू ,एक तरफ पारो है जिसको पाना चाहता हूँ लेकिन वो इमेजिनरी सॉल्यूशन है । दूसरी तरफ चन्द्रमुखी है जो रियल तो है लेकिन उसकी चाहत नही।
          "तो प्रॉब्लम क्या है देव , तुम्हारे पास कम से कम एक रियल सलूशन तो है,उसको क्यों नही एक्सेप्ट कर रहे।"
"पीयूष बाबू, न जाने इस दिल को उसी से क्यों प्यार होता है  जो इमेजिनरी है, मिल नही सकता। जैसे मेरी पारो और पारो ही क्यों आपका भी तो 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी का सपना है। आप भी तो एक सपने में जी रहे हैं ।आप क्यों नही रियलिटी एक्सेप्ट कर लेते कि ग्रोथ डाउन है। आप नही कर पाएँगे लेकिन फिर इसमें आपकी भी कोई गलती नही है पीयूष बाबू।रियल्टी होती ही चन्द्रमुखी जैसी है। ये ऐसा सच है जिसको लोग एक्सेप्ट नही करना चाहते। क्योंकि वहाँ पे लोगों का दोगलापन जाहिर हो जाता है।    वैसे भी चन्द्रमुखी की दो राते उधार हैं हम पर। लगता है मरने के बाद ही चन्द्रमुखी का कर्ज़ उतर पायेगा हमसे। क्योंकि अपनी जिंदगी तो हम जी चुके पीयूष बाबू अब तो बस धड़कनों का लिहाज़ है।वो भी देखिए कब तक रहता है। आज न जाने क्यों चुन्नी बाबू की बहुत याद आ रही है। चुन्नी बाबू होते तो कहते ये "द "बड़ा पेचीदा है बंधू।  "द "से दो हल तो मिले पर "द" से दुनिया का दोगलापन भी दिखा। "द" से दर्द भी होता है। एक चन्द्रमुखी का दर्द है तो एक मेरा ।अब बर्दास्त नही होता। "द" से कहीं दूर छोड़ आओ हमे पीयूष बाबू। "द" से दम घुटता है इस दुनिया में।"
देव की बातें सुन पीयूष बाबू अंदर से हिल गए, माहौल थोड़ा गंभीर हो गया ,उन्हें समझ न आया की क्या कहें।
           लेकिन फिर उन्होंने बात बदलते हुए कहा,"देव मैं तुम्हारा दर्द समझ सकता हूँ। लेकिन अभी भी सब कुछ ठीक हो सकता है। कहाँ तुम गणित में उलझे हो , खुद सोचो अगर आंइस्टीन गणित के भरोसे बैठा रहता तो क्या ग्रैविटी की खोज कर पाता।"
ये क्या कह दिया पीयूष बाबू आपने, आपको पता नही क्या!
"झूठ बोलना पाप है,नदी किनारे साँप है......"
         क्या हुआ देव?मैंने कुछ गलत कहा क्या?
गलत नही पीयूष बाबू,अन्याय ही कर दिया आपने, ग्रैविटी की खोज आइंस्टीन ने नही बल्कि चुन्नी बाबू ने की थी।
         "चुन्नी बाबू! तुम ठीक तो हो देव? आजकल दारू के साथ गांजा भी मारने लगे हो क्या? एक बार को न्यूटन ही बोल देते तब भी मान लेता मैं " पीयूष बाबू देव का उपहास उड़ाते हुए बोले।
"यही तो आप समझे नही । काश आपने चुन्नी बाबू की फिलॉसफी सुनी होती। चुन्नी बाबू कहते थे कि झूठ सफेद हो सकता है तो सच काला भी। आज देखिए सब सच हो रहा है।आज समझ आता है कि उनकी बातों में कितना वजन था, कितनी ग्रैविटी थी । हो न हो ये ग्रैविटी उन्होंने ही खोजी होगी।"
           "इस हिसाब से ग़ालिब में क्या कमी थी, उनको भी बोल दीजिये की ग्रैविटी के अन्वेषक थे। देव बाबू ये साइंस की बातें हैं आप नही समझेंगे। इन बातों को समझने के लिए एक चार्टेड अकाउंटेंट की जरूरत होती है।आपको पता भी है ग्रैविटी की खोज कैसे हुई । एक दिन भगवान शंकर आइन्सटीन के सपने में आये, उन्होंने बताया की बेटा तुम कल भाँग पीना। आइन्सटीन ने वैसा ही किया । भाँग पीने के बाद जैसे ही वो बिस्तर पे लेटा उसको लगने लगा की वो जमीन में धसा जा रहा है जैसे कोई गहरी खाई हो। तब जाके उसे लगा की हाँ,कुछ ऎसी अदृश्य लाइन्स ऑफ फ़ोर्स तो जरूर है, जिसकी वजह से चीज़ें धरती की ओर आकर्षित होती हैं। इन लाइन ऑफ फ़ोर्स को भाँग खा के ही महसूस किया जा सकता है और इस प्रकार खोज हुई ग्रैविटी की ।"
         "चलिए मान लिया की ग्रैविटी की खोज आइन्सटीन ने की थी, लेकिन मै ये नही मानता की ये सब कुछ गणित की जानकारी के बगैर सम्भव है। आखिर भाँग का सेवन कितनी मात्रा में करना है,इसका कैलकुलेशन कैसे करेंगे। मान लीजिये भाँग का सेवन ज्यादा हो गया होता तो, ग्रैविटी की जगह  वार्म होल की भी खोज हो सकती थी या फिर टाइम ट्रेवल। बहुत हद तक सम्भव है कि हस्तर भी मिल जाता।आप मैथ्स को इम्पोर्टेंस नही देते लेकिन मैं इसका  महत्व बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ। आज अगर मेरी गणित अच्छी होती तो मैं अपने जीवन में उन्ही गुणकों (coefficients)का समावेश करता जिससे मेरे द्विघातीय समीकरण का विवित्तकर(D) जीरो होता और तब मेरा एक और सिर्फ एक ही रियल सॉल्यूशन होता ,पारो"
इतना कहकर देव बाबू पारो का नाम लेते लेते फिर से पैमाने में डूब गए।
पीयूष बाबू किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए थे। उनके पास देव बाबू के सवालों का कोई जवाब न था। उन्होंने कोई स्वीकरोक्ति न की लेकिन शायद मन ही मन वो गणित के महत्व को समझ गए थे।

नवाब

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