चुनाव आयोग

     एक जमाना था जब इलेक्शन कमीशन ने घड़ी डिटर्जेंट का एड टिवी पर बैन कर दिया था क्योंकि एक चुनावी पार्टी का चुनाव चिन्ह चक्र था । बिहार में लालू का बोलबाला था और जंगलराज का टाइम था।इलेक्शन के टाइम पर किडनेपिंग, कत्ल और बूथ कैप्चरिंग बिहार में आम बात थी। बिहार में फेयर और पीसफुल चुनाव कराना मतलब ऐसा था कि पटना में कोई कहे बर्फ गिरी हो ।एक ऐसा वक़्त आया कई सालों के जंगलराज के बाद कि नीतीश की गवर्मेंट आयी बिहार में और ऐसा हो पाया जे एम लींगदोह की वजह से जो उस वक़्त इलेक्शन कमीशन के चीफ बनाये गए थे। उन्होंने बिहार में इलेक्शन के टाइम आंध्रा से पुलिस मंगवाई और कानून को हाथ में लेने वालो के खिलाफ शूट ऑन द साइट का आर्डर दे दिया। नतीजा सामने था।
             2002 का जम्मू कश्मीर का नामुमकिन चुनाव भी इन्होंने सफलतापुर्वक कराया। अलगाववादियो, चरमपंथियों और आंतकवादियो का सामना करना अपने आप में चुनौतीपूर्ण था उसके बाद फेयर तरीके से शांतिपूर्ण चुनाव भी हो जाएं । एक आदमी से इतनी उम्मीद करना उम्मीदों की पराकाष्ठा थी।
             गोधरा कांड के बाद दोबारा चुनाव कराने की माँग पर रोक लगाकर लींगदोह ने सीधे सीधे मोदी से टक्कर ली। गोधराकांड के बाद मोदी चाहते थे की विधानसभा को उसके कार्यकाल से पहले  भँग कर इलेक्शन करवाये जाएं। जाहिर सी बात थी ये वक़्त  बी जे पी के लिए सबसे सुनहरा वक़्त था। माहौल में अराजकता थी। लोगो में गुस्सा था। उनके अंदर नफरत का ज्वालामुखी भभक रहा था। लोगो की आंखों में खून था उन्हें केसरिया रंग ही दिखता।मोदी ने लींगदोह पर जिनके पूरे कार्यकाल में एक पैसे का भी आरोप नही लगा था,ये आरोप लगाया कि वो एक ईसाई हैं इसलिए वो चुनाव देरी से कराकर सोनिया गांधी(ईसाई) का समर्थन कर रहे हैं।विडम्बना तो ये थी कि गवर्नर इस इलेक्शन को होने से रोकें लेकिन इन बिगड़े हालातों में भी वो मोदी के साथ खडे नज़र आये। स्टेट में कौमी दंगे हो रहे हैं और गवर्नर इलेक्शन को सपोर्ट कर रहे थे।
             जो सही था वो करना जरूरी था, इस बात को लींगदोह ने समझा जो उस समय चुनाव आयोग के चीफ थे। उन्होंने चुनाव देरी से कराये जाने की बात कही।बात सुप्रीम कोर्ट तक गयी। सुप्रीम कोर्ट ने फिर से न्याय के प्रति लोगो की आस्था का सम्मान किया। फैसला लींगदोह के पक्ष में हुआ। लींगदोह द्वारा लिए गए फैसलो ने भारतीय संविधान की अस्मिता को मरने से बचाया जो की आज के परिदृश्य में परिलक्षित नही होता।उनका मानना था कि पॉलिटिशियन्स देश में कैंसर की तरह हैं और इनका कोई भी इलाज़ नही। 
            आज के संदर्भ में भी ये बात बिल्कुल सही लगती है। जब आज़म खान जैसे नेता चुनावी भाषण में एक महिला के अन्तःवस्त्र का कलर बताते हैं और फिर ये भी कहते हैं कि राजनीति का स्तर कितना गिर गया है। क्या इनकी खुद की कही बात इनके कानो तक जाती है? योगी और मायावती वोट के लिए हिन्दू मुसलमान की राजनीति करते हैं। परन्तु सबसे बड़ी विडम्बना ये कि इलेक्शन कमीशन इनको कुछ नही कहता। मजबूरन सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ता है कि चुनाव आयोग को अब जाग जाना चाहिये। मोदी जी की बायोपिक रिलीज हो रही थी, नमो tv लांच हो रहा था। आचार सहिंता की धज्जियां उड़ रही थी और चुनाव आयोग सो रहा था। वहाँ भी सुप्रीम कोर्ट को फटकार लगानी पड़ी। आखिर जो काम सुप्रीम कोर्ट को करना पड़ा वो चुनाव आयोग क्यों नही कर रहा था? भारत का संविधान आयोग को आर्टिकल 324 के अंतर्गत शक्तियां प्रदान करता है ताकि फेयर और शांतिप्रिय चुनाव सम्पन्न कराया जा सके।उनका प्रयोग EC के द्वारा क्यों नही किया गया।
            ऐसा नही है की आज ही ये शक्तियां आयोग को मिली या आयोग हमेशा से कमजोर रहा। हालांकि एक वक़्त पर था लेकिन उन हालातों को बदला एक और मजबूत इरादों वाले व्यक्ति ने ,उनका नाम था टी एन शेषन । शेषन के बारे में ये कहा जाता था कि नेता या तो भगवान से डरते हैं या फिर शेषन से। जब लोग सुबह उठकर नास्ता कर रहे थे तो शेषन नास्ते में पॉलिटिशियन्स को खा रहे थे। शेषन के आने से पहले चुनाव आयोग सरकार की कठपुतली की तरह काम करता था। यहाँ तक की ऑफिसियल पत्राचार के लिफाफों पर भी चुनाव आयोग , भारत सरकार लिखा होता था। शेषन ने चुनाव आयोग को सरकार का हिस्सा मानने से पूरी तरह इनकार कर दिया। 2 अगस्त 1993 को शेषन ने 17 पेज का एक आदेश निकाला कि जब तक भारत सरकार चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नही दे देती तब तक देश में चुनाव नहीं होंगे। नेताओं की उल्टी प्रतिक्रिया आना स्वाभाविक था। शेषन ने कहा ही नही किया भी और पश्चिम बंगाल का चुनाव रोक दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रणब मुखर्जी को इस्तीफा देना पड़ गया। इसी तरह 1995 में हुआ बिहार का चुनाव देश के इतिहास में चला सबसे लंबा चुनाव साबित हुआ।तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू को विपक्ष से कम शेषन से ज्यादा खतरा हो गया। चार चरणों में चुनाव हुआ और चारो बार चुनाव की तारीख बदली लेकिन चुनाव हुआ तो शेषन की शर्तो पर जिसकी शक्ति उनको देता था हमारा संविधान। शेषन ने वोटर कार्ड को चुनाव के लिए आवश्यक बनाया। कहने की बात नही है नेताओ का क्या हाल हुआ होगा।इसलिए नेता उनको पागल कुत्ता भी कहते थे। एक आदमी द्वारा लिया एक महत्वपूर्ण कदम बहुत से लोगो के जीवन पर प्रभाव डालता है। लींगदोह को" छोटा शेषन' भी कहा जाता है। शायद वो शेषन की ईमानदारी थी जिसने लींगदोह को प्रेरित किया होगा।इन जैसे ईमानदार लोगो की वजह से चुनाव आयोग भारतीय राजनीति के मध्य अपनी गरीमा को बचाये रख सका।
          चुनाव आयोग ही वो कड़ी है जिससे गुजर के एक निष्पक्ष, जनता के लिए काम करने वाली और जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार का चयन किया जा सके। हमारी आबादी बहुत ज्यादा है और विविधता भी। हमको कोई भगवान नही बचा सकता कम से कम मैं तो यही मानता हूँ।  हमे कोई अगर एकजुट रखकर और खुद को मार काट के खपा जाने से बचा सकता है तो वो है हमारा संविधान । संविधान सही हाथों में रहे ये जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है। चुनाव आयोग की गरिमा पर प्रश्न नही उठना चाहिए।किसी भी परिस्थिति में।

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