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Showing posts from 2017

है मुहब्बत ना ही कोई आसार है

है मुहब्बत ना ही कोई आसार है जिंदगी यूँ है कि जैसे रविवार है तैर आगों के दरिया में ग़ालिब मगर जिंदगी से हमें तो बहुत प्यार है कुछ नही है पता जाना भी है कहाँ जाने को भीड़ सारी पर तैयार है हमसे पूछो न तबियत हमारी कोई वो जो देखें नही समझो बेकार है खुश हैं हम ये हमारी गलतफहमी है पर छोड़ो ये भी तो अच्छा आजार है दिल दवा दारू क्या और चाहिए उस गली में इन्ही का तो बाजार है पूछो मत किस तरह है कटी जिंदगी बस कटा और कटने का आसार है है तुम्हे जो यकीं बाहें जन्नत हैं वो कुछ नही है अभी बस तू बीमार है ये खुमारी भी तेरी होनी है ख़तम चीज़ कहता जिसे आजकल प्यार है जो रकीबो ने माँगी दुआ मौत की बदले मेरे उन्ही के कटे तार हैं समझा मैं जो नही बातें मतलब की ये यार  बन बैठा उनका मेरा यार है जिंदगी चल  रही  थोड़ी थोड़ी सही थोड़ा थोड़ा मगर क्या ही बेकार है मीटर 212 212 212 212 नवाब

जलकुंभी

जलकुंभी बुरे ख्याल पानी मे जलकुंभी की तरह होते हैं। एक ख्याल ,दो और बुरे ख्यालों को पैदा करता है । अगले ख्याल फिर चार और पैदा कर देते हैं। एक सिरीज़ प्रारंभ हो जाती है। एक छोटा सा लगने वाला बुरा ख्याल , ख्यालो और सवालों की अनन्त जलकुंभी फैला देता है। जलकुंभिया रोज अपनी जड़ें मजबूत करती चली जाती हैं। पानी का बहाव रुकने लगता है। पानी मे सड़न की शुरुवात हो जाती है। ये सड़न गलन जलकुंभियों के लिए खाद का काम करते हैं। जलकुंभिया इतनी फैल जाती है कि ढूढ़ने से भी जलकुंभी का प्रारम्भ और अंत नही मिलता। मस्तिष्क सवालों का जवाब भी तैयार करता है पर जवाबों में भी ये जलकुंभिया उलझी रहती हैं। स्पष्ट कुछ भी नज़र नही आता। जवाब भी एक नया सवाल खड़ा करते नज़र आता है। इन सवालों जवाबो से निपटने की ट्रेनिंग कोई नही देता। जिंदगी एक अच्छी प्रशिछक है पर उसकी फीस बहुत ज्यादा है । इसका कोर्स भी कभी खत्म नही होता। चूंकि ये जिंदगी है तो इस पर कोई रूल्स रेगुलेशन भी नही हैं, ये अपने हिसाब से मार पीट के सिखाती है। ऐसा नही है कि इस समस्या का कोई अल्टरनेट सोल्यूशन नही है , हज़ारो सालों से बहुत से लोग आए । बहुत अच्छे अच्छे लोग ...

फैसला जो भी हो इस दिल का

2122 1122 1122 22 फैसला जो भी हो इस दिल का बताया जाए दिल नही इतना भी हर रोज जलाया जाए हो गुनाह उसका या मेरा मगर हाकिम को जब सुनानी हो सजा मुझको बुलाया जाए कायदा है वो सुनाता कायदे से हमको आइना उसको भी मगर कुछ दिखाया जाए हिज़्र की बात पे मुझसे वो लिपट जाते थे आज आलम है की नाता ही छुड़ाया जाए आग से है जो मुहब्बत तो वफ़ा में अपनी आशियाँ खुद का ही अब खुद से जलाया जाए हैं मिले धोखे ,वफ़ा भी तो लोगो मे होगी हौसला दिल को मगर क्यूँ न दिलाया जाए अविनाश कुमार "नवाब"

वो था कमज़र्फ

वो था कमज़र्फ आफताब हो गया मैं होके अच्छा भी खराब हो गया बेहतरी थी किसमे मैं क्या जनता मिला जो सख्स अहबाब हो गया वो क्या जगा था मुझमें इस  तरह की नींदों का आना ख़्वाब हो गया जहाँ था कभी  झीलों का  शहर सुना पानी वहाँ सुरखाब हो गया

न मोहब्बत है ना ििनतज़ार है

ना मोहब्बत है ना  इंतज़ार है जिंदगी है कि जैसे रविवार है तू आग  दरिया में तैर ग़ालिब हमें  जिंदगी से  बहुत प्यार है जाना है कहाँ कुछ पता  नही जाने को भीड़ मगर तैयार  है हमसे न  पूछो तबियत हमारी वो देखें नही समझो बेकार है हम खुश हैं  ये गलतफहमी है पर छोड़ो ये अच्छा आजार है दिल  दवा  दारू  क्या चाहिए उनकी गली में  यही बाजार है जितने हैं गली मुहल्ले में लौंडे कमजर्फों को तुझी से प्यार है है कटी  की जिंदगी पूछो  मत कटा  है कटने  का आसार  है तुम्हे यकीं बाहों  में जन्नत  का कुछ नही  ये  जन्नती बुखार है खुमारी  ये  भी  उतरेगी  कल चीज़ जिसे  कहते  हो प्यार है रकीबों ने  की दुआ  मौत  की रकीब  मर  रहे  चम्तकार   है नही  समझा आंखों  की बातें आज मेरा  यार उनका यार है जिंदगी चल  रही  थोड़ी थोड़ी थोड़ा थोड़ा  सबका  उधार  है नवाब

न किया हाँ कहने के बाद

ना किया हां कहने के बाद क्या हो जाने क्या के बाद घुल रहा है क्या फ़िकर में क्या रहे घुलने के बाद हैं सवाल अपनी जग़ह क्या हो हल मिलने के बाद मैं था कुछ और पहले हूँ कुछ और जलने के बाद जिंदगी है गयी जाने किधर दर से तेरे चलने के बाद तू मुझको लेने फिर से आये गिरता हूँ सम्हलने के बाद था मुंतज़िर मैं जाने किसका होने से पहले होने के बाद

पहली ग़ज़ल जो मैंने मीटर में लिखी

पहली ग़ज़ल जो मैंने मीटर में लिखी क्या हुआ दिल क्या हुआ मुझको बता कोई आया याद क्या मुझको बता 2122 2122 212 दिल लगाने का हुनर जब था नही दिल लगाया क्यूँ ये दिल मुझको बता इस भरी सी बज़्म में उसका जिकर है चला तो क्यूँ चला मुझको बता ख़ाब मेरे ख़ाब भी मेरे नही सोचता है ख़ाब क्या मुझको बता गिर्या भी है बहते बहते बह गया था रुका तू किस लिये मुझको बता

ठीक था निभा

ठीक था निभा  रस्में जहाँ  पागल हुआ हूँ हो रहा जहाँ और बोले मै  पागल हुआ हूँ 212 1222 1222 122 212  1222 1222 122 बात होती है खत्म चली हो कहीं से ठहरी है कहानी जहां मै वही पल हुआ हूँ हो कोई भी क्यूँ गुनाहगार मेरी मौत का मैं तुझे चाहता था खुद का कातिल हुआ हूँ तुम जो इंतज़ार की बात करते हो तो सुनो मैं आज था पहले  इंतज़ार में कल हुआ हूँ मैं मरूँ और मर ही जाऊं ऐसा भी  नही है ऐसी चार मौतों  से रोज ही घायल हुआ हूँ ख्याल क्या क्या ना आते कर गुजरने  को क्या क्या ही जाने कर रहा पागल हुआ  हूँ 2122 2122 122 2 2122 2122 याद का काम  है आना सो  चली  आती है बरसना चाहता हूं यादों  का बादल हुआ हूँ

ऐसे ही हैं हालात की बस

222 212 122 कौन आया मेरे मन ऐसे ही हैं हालात की बस पूछो मत क्या है बात की बस  जो सब कहते सुन लेते हैं अपनी है खत्म बात की बस तेरे खातिर कभी खुद से ही लड़ते हैं जज्बात की बस दिन का उजियारा दिन की खातिर रातों में करते रात की बस लिख पढ़ सब होशियार हुए करते धरते  जात की बस वो जो ना करनी थी  उसको कर दी है उसने बात की बस वो इश्क़ भी हमसे करता है तो करता है बातें बात की बस रहने दो छोड़ो हाल मेरा हमदर्दी ये खैरात की बस

होकर भय से भयभीत नही

ये कविता परंपरागत फारसी बहर में नही है । परंतु बहर के मानकों को ध्यान में रखते हुए लिखी गयी है इस बहर में भी कई शोरा ने लिखा है। मुझे इस बहर की लय अच्ची लगी ।वैसे तो ये वीर रस की कविता है। उर्दू छंद की दृष्टि से ये रुबाई हो सकती है। मुझे ऐसा लगा कि ये मीटर वीर रस की कविताओं के लिए बहुत उपयुक्त है। मापनी 22 22 22 22 होकर भय से भयभीत नही  अब भय से आगे चलना होगा । हो प्रदीप्त अब अग्नि दीप या जुगनू सा जलना होगा ।। घनघोर तिमिर जब छायेगा और छलिया जाल बिछाएगा । छलके जाए ना छलिया फिर छलिये को छल से छलना होगा ।। कल की खातिर आज चलो गर नही चले तो कल ना होगा । है ढाल व्याध का मेरा भय भय त्यज शस्त्र में ढलना होगा ।। संघर्ष बहुत भीषण होगा रक्त से रंजित कण कण होगा । या तो मैं मारा जाऊंगा या फिर शत्रुदल ना होगा ।।

कठिन है पर सफर तो है

मापनी 1212 1212 कठिन है पर सफ़र तो है नहीं है कुछ सफर तो है छोटा सही एक ख़ाब है चलने को एक डगर तो है हवा हवा नही रही हवा में कुछ ज़हर तो है चलो चलें मेरे यहाँ खुली हवा नहर तो है असर में भी असर नही असर में कुछ कसर तो है तेरा नही है गम हमे कलम तो है बहर तो है जो कह रहे भला बुरा उन्हें भी पर फ़िकर तो है है लाश जैसे चल रही कहने को ये शहर तो है मिटा दो तुम मिटा दे हम हा दिल में एक रबर तो है मिले मिले कि ना मिले ये सोच हर पहर तो है जो सब लिखें वो क्यूँ लिखूं नवाब कुछ मगर तो है अविनाश कुमार 'नवाब'

शरारों शरारों जी जलती ख़बर है

122 122 122 122 शरारों शरारों सी जलती खबर है तुम्हे हो कि ना हो सभी को मगर है जो जाँ दे रहे हम वफ़ा में अभी भी हमें बेवफाई की उनकी खबर है दरारों से क्यों रोशनी आ रही है कहो रोशनी से अंधेरो का घर है है खेले ये दुनिया यूँ दिल से जो मेरे न जाने उसे दिल क्या आया नजर है हो आयीं बहारें कभी इस चमन में अभी जो हैं बागों में जलते शज़र हैं अविनाश कुमार"नवाब" इशारों इशारों में दिल लेने वाले

है कहानी कह रही

है कहानी कह रही कि नया लिखो हो न पाया जो बयां वो बयां लिखो दर्द ओ गम खुशियां हैं सबके ही वही जिंदगी को तुम धुआँ  धुआँ  लिखो आग बुझाने को एक आग लगा दी दलदल के बाद गहरा कुआँ लिखो उसने पर्दे हटा दिए खिड़कियों से हुआ हैै माहौल तुम ख़ुशनुमा लिखो लोग थे बदनाम रातों को कर दिया ये बदनामी है खामा खां लिखो जब कभी तुम मिरी दास्ताँ लिखो मजबूरी  ही उसका उनवां लिखो

ऐसा भी वक़्त दुनिया का रहा है

ऐसा भी वक़्त दुनिया का रहा है समंदर भी हो जब दरिया रहा है तेरे नाम से ग़ज़ल इक लिख रहे हैं बहर में धोखा काफिया रहा है जाने महफ़िल में क्या कह रहे हैं गुबारे दिल ग़ज़ल में आ रहा है नशा बदनाम क्यूँ है जो अगर है होश में भी खराब इंसाँ रहा है हमें रुख्सत भी कर तो जिंदगी यूँ की माँ से मिलने बच्चा जा रहा है अविनाश कुमार "नवाब" 1222 1222 122

तुम मिले हो मैं मिला हूँ

2122  2122 2122 212 तुम मिले हो मैं मिला हूँ पर क्या शायद हम मिले चल रहे जाने किधर हैं क्या पता संगम मिले हो तेरी मजबूरियां कुछ हैं मेरी मजबूरियां दे दगा मजबूरियों को क्यूँ ना अब हम तुम मिले देख दुनिया कह रही क्या लोग इसके कह रहे कब तलक हो सिलसिला ये कुछ हमें मरहम मिले आंधियों का दौर है और चल रही हैं आंधियां कुछ जो ठहरे आंधियां तो दम में थोड़ा दम मिले कश्मकश की आशिक़ी क्या कश्मकश की जिंदगी उम्र तेरे साथ की ज्यादा नही तो कम मिले अविनाश कुमार "नवाब"

हमे दिल देने की

122 122 122 122 हमे दिल देने की सजा दे रहा है वो कबसे मुझे बेवजा दे रहा है जिसे दिल से भेजी दुआ जा रही है मुझे बदले में वो क़ज़ा दे रहा है कैसी कश्मकश में डाले है मुझको ना तो हाँ कहे ना रजा दे रहा है नही खुश है वो भी मुझे देखके यूँ न जाने उसे क्या मज़ा दे रहा है ग़मे दिल ओ गिर्या बेरुखी मायूसी मिटा के हमे वो अफज़ा दे रहा है

ग़मे दिल छोड़

ग़मे दिल छोड़ तू मेरा शौक देख 1222 1222 2122 हटा मोमिन तेरा ,मेरा जौक देख कभी आ ,बैठ ,चाय पी कुछ बात कर समय गुजरा जहाँ ,मिरा वो चौक देख  मसाले मिर्च सा तीखा हो चला हूँ कैसे कैसे लगे हैं ,मुझको छौक देख जला तो आग से ज्यादा ही जलूँगा चाहे तो आग में मुझको झौंक देख बहरे करीब 

दिल दर्द का हो जब से

दिल दर्द  का हो जबसे उनवां चला है हम भी चले हैं दिल  जहां चला है क्या ही रखें यादें बीते  दिनों  की जलती हुई यादों से धुआँ चला है क्यूँ जिक्र भी आये बातों में उसका अभी तक तो जिक्र तन्हा चला है तू  रूठा  है किसी और बात  को पता भी  बातों  का कहाँ चला है कुछ  नही है अपने  दरम्यां  क्यों कैसा ये  दौर  ए  दरम्यां चला  है मुझे रुख़सत करने  तुम न आयीं जमीं भी चली   आसमां  चला है एक  दिन वही  सालों  पहले  का जियें फिर दिल से अरमां चला  है तुम्हें क्या समझें न समझे खुद को कुछ नही तो ये हो तजुर्मा चला है ख़ुद के  ख्वाब ही  न जगा दे  कहीं दिल चुपके दबे पावँ सहमा चला है अविनाश कुमार "नवाब"

जिक्र जब मेरा किसी ने यूँ

जिक्र जब मेरा किसी ने यूँ चलाया होगा आंख भर आयी होगी दर्द बढ़ आया होगा ठीक से भी मना करते तो न बनता हमसे फायदा सब ने इसी तर्ह उठाया होगा हैं हमी एक दिवाने तो नही दुनिया में ढूढ़ के ही हाँ खुदा कोइ तो पाया होगा मर्तबा कितने खयालों में ही गुजरी होगी बात को फिर भी मगर होंठ न लाया होगा वस्ल की बात पे यादें मिरी आयी होंगी रंग कुछ और भी रुखसार पे आया होगा मस्ती खाना है हुआ सबके लिए दिल मेरा खेल कर दिल से लोगो को मज़ा आया होगा 2122 1122 1122 22 होके मजबूर

करना था क्या ही कर भला

करना था क्या ही कर भला बैठे बन वही फिर से सिलसिला बैठे आज तो कर दे इंतहां साकी अबकी दिल ही न हौसला बैठे फिर शराफत से हो भला ही क्या जब बुराई का फैसला बैठे किस तरह जिंदगी जिया जाए हर तरफ पैरों आबला बैठे करके कुछ याद थे चले घर से आके मंजिल पे सब भुला बैठे जान किस किस को दें बताएं क्या सब बना हमसे फासला बैठे अहले दुनिया भी फैसले दे यूँ पढ़के कबसे न जाने ला बैठे अविनाश कुमार "नवाब" 2122 1212 22 फिर छिड़ी रात

मेरे जब से बिगड़े हालात सुनिए

मेरे जब से हैं बिगड़े हालात सुनिए जो हैं कुछ नही उनकी बेबात सुनिए की हो कायदे में रहें बातें जो हों ये भी क्या हुई बात हर बात सुनिए शहर में चुनाओ के परचे हैं बटते होने को है वादों की बरसात सुनिए सिखाते हैं कुर्बानी क्या है हमे जो तड़पते से मुर्ग़े के जज्बात सुनिए कहे जा रही है जो मन मे आ रहा है तो फिर क्या ये दुनिया की दिन रात सुनिए हमी खेल में हों कोई दूसरा न मज़ा फिर है क्या जो न शह मात सुनिए 122 122 122 122

कुछ न कुछ

जो चल रहा भीतर में तेरे क्या है कुछ न कुछ तेरी नज़र में राज का पर्दा है कुछ न कुछ जब कुछ नही है बात तो है बात क्यूँ मगर कहता नही तू बात छुपाता है कुछ न कुछ यूँ ही नही है टूटा वो बिखरा नही है यूँ गहरी तो होगी शाजिश लगता है कुछ न कुछ किस बात का बहाना जहां है बना रहा हर दूसरी ही बात बहाना है कुछ न कुछ सम्भालते भी जिंदगी तो किस तरह से हम कुछ हो अगर भी जाये तो रहता है कुछ न कुछ 221 2121 1221 212 मैं जिंदगी का साथ

तुम्हारे ही रास्तों पे चल देखते हैं

तुम्हारे ही रस्तों पे चल देखते हैं तो किरदार भी फिर बदल देखते हैं कहीं देख ले वो हमें देखते न राहों एक चलता कतल देखते है हैं किरदार कितने तिलस्मी यहाँ पर तिल्समे टूटे तो असल देखते हैं बुने रूह के कपड़े हर्फ़ से तो हो गलती न कोई खलल देखते हैं जरूरी नही सच भी सच के लिए हो चलो सच से आगे निकल देखते हैं समझते हैं हम की समझते हैं खुद को नजरिया भी थोड़ा बदल देखते हैं जां देने का दावा तो करते सभी हैं करे कौन पहले पहल देखते हैं हवा कैद कर ली तेरे सिम्त की है हवा पी के जन्नत अहल देखते हैं मुहब्बत निशानी रहे ताज की हम कटे दस्त रूह ए महल देखते हैं मुनाफ़िक़त उन्हें क्या बताए वो पूछें आईने न क्यूँ वो शक्ल देखते हैं हूँ कहने को रूठा नही तो नही मै खफा होके तुझमे दखल देखते हैं पता है वफ़ा का दोनों को ही अपनी जुदा हो लें फिर क्या ही कल देखते हैं थे परवाह में हम सभी की उमर भर आयी बारी अपनी अजल देखते हैं जाने लौट ही आये गुजरा वो बचपन चलो सीढ़ियों से  फिसल देखते हैं बड़े होते मजबूर होंगे वो लोग जो खेतों में जलती फसल देखते हैं 122 122 122 122

क्या करूँ क्या न करूं

क्या करू क्या ना करूँ तू अब बता मुझको भी दे खो चुका कबका यहाँ मेरा पता मुझको भी दे दर्द मेरा भी वही है दर्द तेरा भी वही मैं भी हूँ तेरी तरह थोड़ा जता मुझको भी दे बन के बेहतर जग मिलेगा जग भला होगा भी क्या गर खता से तू मिले करने खता मुझको भी दे दिन न ही कोई गया जब याद में शामिल न तू लौट जाना फिर मगर तू आ सता मुझको भी दे 2122 2122 2122 212

मात्रिक बहर

एक बहर जिसे मात्रिक बहर भी कहते हैं ,हिन्दी गजलकारों ने ज्यादा प्रयोग किया है।  २२ २२ २२ २२ २२२ २२२ २२२ २२२ २२२२ २२२२ २२२२ २२ इत्यादि। विशेष-१) 🌷🌷🌷 जिन बहरों का अन्तिम रुक्न 22 हो उनमें 22 को 112 करने की छूट हासिल है। २) सभी बहरों के अन्तिम रुक्न में एक 1(लघु) की इज़ाफ़त (बढ़ोत्तरी)  करने की छूट है। किन्तु यदि सानी मिसरे में इज़ाफ़त की गयी है तो गज़ल के हर सानी मिसरे में इज़ाफ़त करनी होगी.जबकि उला मिसरे के लिए कोई प्रतिबन्ध नहीं है. जिसमें चाहे करें और जिसमें चाहें न करें। ३) दो बहरें १-२१२२-११२२-२२ और २-२१२२-१२१२-२२ के पहले रुक्न २१२२ को ११२२ किसी भी मिसरे मे करने की छूट हासिल है। ४) मात्रिक बहरों २२ २२ २२ २२ इत्यादि  जिसमें सभी गुरु हैं ,में - (क- ). किसी भी (२)गुरु को दो लघु (११) करने की छूट इस शर्त के साथ हासिल  है कि यदि सम के गुरु (२) को ११किया गया है तो सिर्फ सम को ही करें और यदि विषम को तो सिर्फ विषम को। मतलब यह कि या तो विषम- पहले,तीसरे,पाचवें,सातवें,नौवे आदि में सभी को या जितने को मर्जी हो २ को ११ कर सकते हैं। या फिर सिर्फ सम -दूसरे,चौथे...

खबर है कि खबर

खबर है की खबर को ही दबाया जा रहा होगा नही मोआमला है बस बनाया जा रहा होगा बगैर अपने भी महफ़िल में समा रँगी हुआ होगा इधर शम्मा उधर दिल को जलाया जा रहा होगा समझता है नही वो भी समझता हूँ नही मै भी होगा यूँ रोयेंगे इक दिन न रोया जा रहा होगा की जीते जी न जी पाये पता क्या मरने पे भी हो निकल जब जाँ रही होगी बुलाया जा रहा होगा 1222 1222 1222 1222

मेरी माँ बचपन से कहती थी

मेरी माँ बचपन से कहती थी, ये मत कर, चार लोग क्या कहेंगे . मैं यही सोचता था ये साले चार लोग हैं कौन , ज़िन्होने मेरी ज़िंदगी में धनिया बो दिया है.. फिर कुछ लोगो कोे देख कर समझ आया कहीं ये वही चार लोग तो नही जो मिस्टर इंडिया बनके धनिया बो रहे हैं...... पहले हैं ,ये साराहाह वाले जो फेसबुक पे पोस्ट शेयर करते हैं . मेरा तो सच्चाई और अच्छाई से भरोसा उठ गया था भाई . मुझे क्या पता था वो सारे सर्वगुन सम्पन्न लोग मेरी फ्रेंड लिस्ट में हैं . दुसरे , जो अपनी फेसबुक प्रोफाईल पिक  पर पिक्चर गार्ड/ प्रोटेक्टर का यूज़ करते हैं . अरे 70 हजार का फ़ोन चलाने वालो स्नैप शाट नामक चीजे भी होती है .ये वही लोग है जो ऐप्पल का फ़ोन लेते ही इसलिये हैं की बता सके ये एंड्राएड से बेहतर क्यूँ हैं . इन लोगो का तो ये भी कहना है मख्खन शब्द का इजाद ही ऐप्पल का टच चलाने के बाद हुआ . तीसरे ,वो ...जो आंग्ल भाषा के हर अगले सेनटेन्श में "like" शब्द का प्रयोग करते हैं . अरे भाई तुम बिलकूल भी "cool" नही लगते like अब तो अंग्रेज भी हिन्दी सिखने लगे . तू भी बोल ले . चौथे, ये मेरी समझ से परे हैं . मतलब राम रहीम जैसो...

किस किस को ढूढ़िए की बताइए आप कौन हैं

यहाँ हैं वो भी नही जो हैं कुछ आप कौन हैं  बना के रखो फासला नज़दीक लोगो से भी  इस्से पहले की पूछे वो तुम पूछो आप कौन हैं

कौम ए दिल फ़िगार

कौम ए दिल फ़िगार पुर तक्क़बूर ए ताज मिस्ले इश्क़ ओ मोहब्बत मुनव्वर ए ताज शान ए हिन्द कर माफ तुझको रुस्वा किया नही काबिल हैं आज तेरे तस्सवुर ए ताज

एक पत्र मेरी बेटी के लिए

एक पत्र मेरी बेटी के लिए बेटी तू मुझे अच्छा इंसाँ बनाती है गर आंखे किसी जिस्म पे   कहीं ठहर जाती है तेरा होना कुछ याद दिलाता है नजरें झुका लूं तू याद दिलाती है मुझे तेरी मुस्कुराहट के   काबिल बनना है बेहतर से आगे   एक कदम और चलना है दुनिया हो क्यूँ बेहतर   मुझे तू बताती है बेटी तू मुझे अच्छा इंसाँ बनाती है तू हो रही बड़ी   तो पूछे न कोई तेरी जाती क्या है हो तेरी अभिव्यक्ति अपनी पूछे क्यूँ कोई इंग्लिश आती क्या है मैं बस लिखता हूँ मेरी कलम तू चलाती है बेटी तू मुझे अच्छा इंसाँ बनाती है तेरी भी हो दुनिया मे जगह जो सबकी हो रहे तू है ये वो और वहाँ की   कोई क्यूँ कहे तू मेरा आईना मेरी कमियाँ दिखाती है बेटी तू मुझे अच्छा इंसाँ बनाती है हो शायद कभी   कुछ ऐसा मुमकिन नही तू चलना फिर भी कभी डरना नही है डराना काम दुनिया का सो डराती है बेटी तू मुझे अच्छा इंसाँ बनाती है

जबाँ गर्म है

जबाँ गर्म है  कहने दो  नही तो सम्हल जाएगी ज़रा वक़्त गुजरा तो  मेरी बात बदल जाएगी मेरी शक्लो सूरत से है वाकिफ सीरत से नही सीरते जहाँ ये की शक्लो सूरत बदल जाएगी ये वो मोहब्बत तो नही की साथ कल जाए वक़्त बदला नही की मोहब्बत बदल जाएगी हूँ उसकी चाल से वाकिफ़ मगर खामोश भी गर चला अभी तो उसकी चाल बदल जाएगी ये तेरी कहानियों में नाम अलग अलग क्यूँ हैं क्या नाम बदलने से कहानी बदल जाएगी जिंदगी है रोज़ वही तो जिंदगी क्या है ख्याल अच्छा है पर क्या जिंदगी बदल जाएगी हम हैं कैद और वहाँ हैं जहाँ कोई पाबंदी नही क्या तुम्हारी कैद मेरी कैद से बदल जाएगी

शौक

शौक ग़मे दिल छोड़ तू मेरा शौक देख हटा मोमिन तेरा  मेरा जौक देख कभी आ बैठ चाय पी कुछ बात कर समय गुजरा जहाँ मिरा वो चौक देख मसाले मिर्च सा तीखा हो चला हूँ कैसे कैसे लगे हैं मुझको छौक देख जला तो आग से ज्यादा ही जलूँगा चाहे तो आग में मुझको झौंक देख

एक नया मर्द

एक नया मर्द हाथ पकड़ो इसका । पकड़ते क्यूँ नही । हाँ अब पैर भी पकड़ो । टब में पानी भर लिए हो कि नही। खेतामल अपनी अम्मा की तरफ देख के ,हाँ में सर हिलाता है। फिर देख क्या रहा है? जल्दी कर। खेतामल कुछ झिझकता है, अपनी माँ की तरफ देख के बोलता है,तू ही कर ले अम्मा। किस बात का मर्द है रे तू । तेरे अंदर ही कमी लगती है। दो लड़कियां जनवा चुका है। तेरा बाप आज जिंदा होता तो उसको ही चढ़वा देती तेरी औरत पर। हरामजादा था पर मर्द था तेरा बाप । जवानी में हरामी ने महरीन तक की लड़की को भी नही छोड़ा। मर्द बन , खत्म कर काम । अम्मा ने दबी हुई मगर एक एक शब्द को चबाते हुए अपनी बात कही। अम्मा हाथ न लगाऊंगा, अजीब लगता है। घासलेट ला ,जला देते हैं। पगला गया है खेता, सारा गांव बुलायेगा । लड़कीं की रोने चीखने से सब इक्कठा हो जायेंगे। तुझसे कुछ न हो पायेगा । जा जाके जीता को बुला, सीख कुछ अपने भाई से । अपनी दो लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया। तुझसे एक नही सम्भल रही। खेतामल, जीतमल को बुला लाता है। क्या हुआ अम्मा काहे बुला रही है ,कहते हुए जीतमल कमरे में घुसता है।पर कमरे में घुसते ही वो सारा माजरा समझ जाता है की अम्मा ने क्...

जगह दिल लगाने की चीज़

जगह दिल लगाने की चीज़ अब दुनिया ना रही कभी अहले वक़्त ना रहा कभी दुनिया ना रही कर सुपुर्द ए खाक दुनिया एक काम कर वाइज वैसे भी काम आये ऐसी काम की दुनिया ना रही चले ढूढने इंसाँ तो मिले कई लोग दुनिया में कहूँ की लोग ही मिले ऐसी भी दुनिया ना रही कौन सी शय कब आ जाये कह नही सकते हमेशा हुए फ़ना सब हमेशा की दुनिया ना रही जहाँ देखी लम्बी कतारे देखी और कतारे देखी कतारों में ही रही दुनिया दुनिया दुनिया ना रही गर भेज मुझको जहन्नम तो कर दोस्तों को भी जहाँ साले ये रहे वहाँ किसी की दुनिया ना रही ऐसा नही की बात होती नही होती है पर यू नही की ना हो बातें तो समझो अपनी दुनिया ना रही तुमने जो देखा सच है तो थोड़ा और सच देखो अब ये सच वही झूठ है जिसमें दुनिया ना रही अविनाश कुमार

कर ली है फिर से पर वो मोहब्बत नहीं आती

कर ली है फिर से पर वो मोहब्बत नहीं आती इश्क़ तो आता है इश्क़ में राहत नहीं आती चुप हूँ तो समझो ना ये कुछ कहना नहीं आता है बात कोई वरना क्या नफरत नहीं आती क्यूँ बन गया हूँ मै काफिर तू जानता तो होगा तू है खुदा जिनका उन्हें चाहत नही आती कुछ होश में गर कह दिया तो माफ भी करना मैं जो नशे में होता ये आफत नही आती मीठी बातों का है शहर धोखा न खाना तुम खूँखार हैं सब कीस को वहशत नहीं आती बातों के लहजों में बातें है बातों में नही करनी हैं कैसे बातें ये आदत नही आती फिर देख आऊं गलियों को जिनसे था राब्ता कितने दफा गुजरा मै पर हिम्मत नही आती ये जिंदगी आसाँ नहीं इसका सफर गोया मजबूर कर जब तक न दे फुर्सत नहीं आती अशआर लिखना की हसीना को मनाना हो साकिन नही आता कभी हरकत नही आती मीटर २१२२ २१२२ २१२२ २१२ 

चार दीवार एक छत कर बैठा हूँ

चार दीवार एक छत कर बैठा हूँ घर बना के भी मै बेघर बैठा हूँ उम्र हुइ बर्बाद बस तेरे पीछे बेग़ैरत हूँ फिर तिरे दर बैठा हूँ रोज मिलते तो हैं वो मिलते नहीं कबसे मिलने मैं उन्हें पर बैठा हूँ बाटने मुझको जमाना क्यूँ लगा मैं जमाने से थोड़ा डर बैठा हूँ मन्दिरो मस्जिद कहाँ तक ले फिरें सब जला के मैं बराबर बैठा हूँ जो अभी मजबूर हूँ तो समझा लो वैसे तो मैं सब समझकर बैठा हूँ बैठा हूँ नाराज़ कोई तो पूछे क्यूँ बैठा हूँ मैं ऐसे गर बैठा हूँ अविनाश कुमार "नवाब" मीटर २१२२ २१२२ २१२ 

बहरें और उनके उदाहरण

बहरें और उनके उदाहरण आठ बेसिक अरकान: फ़ा-इ-ला-तुन (2-1-2-2) मु-त-फ़ा-इ-लुन(1-1-2-1-2) मस-तफ़-इ-लुन(2-2-1-2) मु-फ़ा-ई-लुन(1-2-2-2) मु-फ़ा-इ-ल-तुन (1-2-1-1-2) मफ़-ऊ-ला-त(2-2-2-1) फ़ा-इ-लुन(2-1-2) फ़-ऊ-लुन(1-2-2) *** फ़ारसी मे 18 बहरें: 1.मुत़कारिब(122x4) चार फ़ऊलुन 2.हज़ज(1222x4) चार मुफ़ाईलुन 3.रमल(2122x4) चार फ़ाइलातुन 4.रजज़:(2212) चार मसतफ़इलुन 5.कामिल:(11212x4) चार मुतफ़ाइलुन 6 बसीत:(2212, 212, 2212, 212 )मसतलुन फ़ाइलुऩx2 7तवील:(122, 1222, 122, 1222) फ़ऊलुन मुफ़ाईलुन x2 8.मुशाकिल:(2122, 1222, 1222) फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन 9. मदीद : (2122, 212, 2122, 212) फ़ाइलातुन फ़ाइलुनx2 10. मजतस:(2212, 2122, 2212, 2122) मसतफ़इलुन फ़ाइलातुनx2 11.मजारे:(1222, 2122, 1222, 2122) मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुनx2 सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में. 12 मुंसरेह :(2212, 2221, 2212, 2221) मसतफ़इलुन मफ़ऊलात x2 सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में. 13 वाफ़िर : (12112 x4) मुफ़ाइलतुन x4 सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में. 14 क़रीब ( 1222 1222 2122 ) मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में. 15 सरीअ (2212 2212 2221) मस...

बहर

बहर की यदि बात करें तो फ़ारसी के ये भारी भरकम शब्द जैसे फ़ाइलातुन, मसतफ़ाइलुन या तमाम बहरों के नाम आप को याद करने की ज़रूरत नही है। ये सब उबाऊ है इसे दिलचस्प बनाने की कोशिश करनी है।  आप समझें कि संगीतकार जैसे गीतकार को एक धुन दे देता है कि इस पर गीत लिखो.. गीतकार उस धुन को बार-बार गुनगुनाता है और अपने शब्द उस मीटर / धुन / ताल में फिट कर देता है बस.. गीतकार को संगीत सीखने की ज़रूरत नहीं है उसे तो बस धुन को पकड़ना है। ये तमाम बहरें जिनका हमने ज़िक्र किया ये आप समझें एक किस्म की धुनें हैं। आपने देखा होगा छोटा सा बच्चा टी.वी पर गीत सुनके गुनगुनाना शुरू कर देता है वैसे ही आप भी इन बहरों की लय या ताल कॊ पकड़ें और शुरू हो जाइये। हाँ बस आपको शब्दों का वज़्न करना ज़रूर सीखना है जो आप उदाहरणों से समझ जाएंगे।  हम शब्द को उस आधार पर तोड़ेंगे जिस आधार पर हम उसका उच्चारण करते हैं। शब्द की सबसे छोटी इकाई होती है वर्ण। तो शब्दों को हम वर्णों मे तोड़ेंगे।  वर्ण वह ध्वनि हैं जो किसी शब्द को बोलने में एक समय में हमारे मुँह से निकलती है और ध्वनियाँ केवल दो ही तरह की होती हैं या तो...