चार दीवार एक छत कर बैठा हूँ

चार दीवार एक छत कर बैठा हूँ
घर बना के भी मै बेघर बैठा हूँ
उम्र हुइ बर्बाद बस तेरे पीछे
बेग़ैरत हूँ फिर तिरे दर बैठा हूँ
रोज मिलते तो हैं वो मिलते नहीं
कबसे मिलने मैं उन्हें पर बैठा हूँ
बाटने मुझको जमाना क्यूँ लगा
मैं जमाने से थोड़ा डर बैठा हूँ
मन्दिरो मस्जिद कहाँ तक ले फिरें
सब जला के मैं बराबर बैठा हूँ
जो अभी मजबूर हूँ तो समझा लो
वैसे तो मैं सब समझकर बैठा हूँ
बैठा हूँ नाराज़ कोई तो पूछे
क्यूँ बैठा हूँ मैं ऐसे गर बैठा हूँ
अविनाश कुमार "नवाब"
मीटर २१२२ २१२२ २१२ 

Comments

Popular posts from this blog

बहरें और उनके उदाहरण

मात्रिक बहर

बहर