वो था कमज़र्फ
वो था कमज़र्फ आफताब हो गया
मैं होके अच्छा भी खराब हो गया
बेहतरी थी किसमे मैं क्या जनता
मिला जो सख्स अहबाब हो गया
वो क्या जगा था मुझमें इस तरह
की नींदों का आना ख़्वाब हो गया
जहाँ था कभी झीलों का शहर
सुना पानी वहाँ सुरखाब हो गया
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