फैसला जो भी हो इस दिल का

2122 1122 1122 22

फैसला जो भी हो इस दिल का बताया जाए
दिल नही इतना भी हर रोज जलाया जाए

हो गुनाह उसका या मेरा मगर हाकिम को
जब सुनानी हो सजा मुझको बुलाया जाए

कायदा है वो सुनाता कायदे से हमको
आइना उसको भी मगर कुछ दिखाया जाए

हिज़्र की बात पे मुझसे वो लिपट जाते थे
आज आलम है की नाता ही छुड़ाया जाए

आग से है जो मुहब्बत तो वफ़ा में अपनी
आशियाँ खुद का ही अब खुद से जलाया जाए

हैं मिले धोखे ,वफ़ा भी तो लोगो मे होगी
हौसला दिल को मगर क्यूँ न दिलाया जाए

अविनाश कुमार "नवाब"

Comments

Popular posts from this blog

बहरें और उनके उदाहरण

मात्रिक बहर

बहर