तुम्हारे ही रास्तों पे चल देखते हैं

तुम्हारे ही रस्तों पे चल देखते हैं
तो किरदार भी फिर बदल देखते हैं

कहीं देख ले वो हमें देखते न
राहों एक चलता कतल देखते है

हैं किरदार कितने तिलस्मी यहाँ पर
तिल्समे टूटे तो असल देखते हैं

बुने रूह के कपड़े हर्फ़ से तो
हो गलती न कोई खलल देखते हैं

जरूरी नही सच भी सच के लिए हो
चलो सच से आगे निकल देखते हैं

समझते हैं हम की समझते हैं खुद को
नजरिया भी थोड़ा बदल देखते हैं

जां देने का दावा तो करते सभी हैं
करे कौन पहले पहल देखते हैं

हवा कैद कर ली तेरे सिम्त की है
हवा पी के जन्नत अहल देखते हैं

मुहब्बत निशानी रहे ताज की हम
कटे दस्त रूह ए महल देखते हैं

मुनाफ़िक़त उन्हें क्या बताए वो पूछें
आईने न क्यूँ वो शक्ल देखते हैं

हूँ कहने को रूठा नही तो नही मै
खफा होके तुझमे दखल देखते हैं

पता है वफ़ा का दोनों को ही अपनी
जुदा हो लें फिर क्या ही कल देखते हैं

थे परवाह में हम सभी की उमर भर
आयी बारी अपनी अजल देखते हैं

जाने लौट ही आये गुजरा वो बचपन
चलो सीढ़ियों से  फिसल देखते हैं

बड़े होते मजबूर होंगे वो लोग
जो खेतों में जलती फसल देखते हैं


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