कर ली है फिर से पर वो मोहब्बत नहीं आती

कर ली है फिर से पर वो मोहब्बत नहीं आती
इश्क़ तो आता है इश्क़ में राहत नहीं आती
चुप हूँ तो समझो ना ये कुछ कहना नहीं आता
है बात कोई वरना क्या नफरत नहीं आती
क्यूँ बन गया हूँ मै काफिर तू जानता तो होगा
तू है खुदा जिनका उन्हें चाहत नही आती
कुछ होश में गर कह दिया तो माफ भी करना
मैं जो नशे में होता ये आफत नही आती
मीठी बातों का है शहर धोखा न खाना तुम
खूँखार हैं सब कीस को वहशत नहीं आती
बातों के लहजों में बातें है बातों में नही
करनी हैं कैसे बातें ये आदत नही आती
फिर देख आऊं गलियों को जिनसे था राब्ता
कितने दफा गुजरा मै पर हिम्मत नही आती
ये जिंदगी आसाँ नहीं इसका सफर गोया
मजबूर कर जब तक न दे फुर्सत नहीं आती
अशआर लिखना की हसीना को मनाना हो
साकिन नही आता कभी हरकत नही आती

मीटर २१२२ २१२२ २१२२ २१२ 

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