होकर भय से भयभीत नही
ये कविता परंपरागत फारसी बहर में नही है । परंतु बहर के मानकों को ध्यान में रखते हुए लिखी गयी है इस बहर में भी कई शोरा ने लिखा है। मुझे इस बहर की लय अच्ची लगी ।वैसे तो ये वीर रस की कविता है। उर्दू छंद की दृष्टि से ये रुबाई हो सकती है। मुझे ऐसा लगा कि ये मीटर वीर रस की कविताओं के लिए बहुत उपयुक्त है।
मापनी 22 22 22 22
होकर भय से भयभीत नही
अब भय से आगे चलना होगा ।
हो प्रदीप्त अब अग्नि दीप
या जुगनू सा जलना होगा ।।
घनघोर तिमिर जब छायेगा
और छलिया जाल बिछाएगा ।
छलके जाए ना छलिया फिर
छलिये को छल से छलना होगा ।।
कल की खातिर आज चलो
गर नही चले तो कल ना होगा ।
है ढाल व्याध का मेरा भय
भय त्यज शस्त्र में ढलना होगा ।।
संघर्ष बहुत भीषण होगा
रक्त से रंजित कण कण होगा ।
या तो मैं मारा जाऊंगा
या फिर शत्रुदल ना होगा ।।
मापनी 22 22 22 22
होकर भय से भयभीत नही
अब भय से आगे चलना होगा ।
हो प्रदीप्त अब अग्नि दीप
या जुगनू सा जलना होगा ।।
घनघोर तिमिर जब छायेगा
और छलिया जाल बिछाएगा ।
छलके जाए ना छलिया फिर
छलिये को छल से छलना होगा ।।
कल की खातिर आज चलो
गर नही चले तो कल ना होगा ।
है ढाल व्याध का मेरा भय
भय त्यज शस्त्र में ढलना होगा ।।
संघर्ष बहुत भीषण होगा
रक्त से रंजित कण कण होगा ।
या तो मैं मारा जाऊंगा
या फिर शत्रुदल ना होगा ।।
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