करना था क्या ही कर भला
करना था क्या ही कर भला बैठे
बन वही फिर से सिलसिला बैठे
आज तो कर दे इंतहां साकी
अबकी दिल ही न हौसला बैठे
फिर शराफत से हो भला ही क्या
जब बुराई का फैसला बैठे
किस तरह जिंदगी जिया जाए
हर तरफ पैरों आबला बैठे
करके कुछ याद थे चले घर से
आके मंजिल पे सब भुला बैठे
जान किस किस को दें बताएं क्या
सब बना हमसे फासला बैठे
अहले दुनिया भी फैसले दे यूँ
पढ़के कबसे न जाने ला बैठे
अविनाश कुमार "नवाब"
2122 1212 22
फिर छिड़ी रात
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