दिल दर्द का हो जब से

दिल दर्द  का हो जबसे उनवां चला है
हम भी चले हैं दिल  जहां चला है

क्या ही रखें यादें बीते  दिनों  की
जलती हुई यादों से धुआँ चला है

क्यूँ जिक्र भी आये बातों में उसका
अभी तक तो जिक्र तन्हा चला है

तू  रूठा  है किसी और बात  को
पता भी  बातों  का कहाँ चला है

कुछ  नही है अपने  दरम्यां  क्यों
कैसा ये  दौर  ए  दरम्यां चला  है

मुझे रुख़सत करने  तुम न आयीं
जमीं भी चली   आसमां  चला है

एक  दिन वही  सालों  पहले  का
जियें फिर दिल से अरमां चला  है

तुम्हें क्या समझें न समझे खुद को
कुछ नही तो ये हो तजुर्मा चला है

ख़ुद के  ख्वाब ही  न जगा दे  कहीं
दिल चुपके दबे पावँ सहमा चला है

अविनाश कुमार "नवाब"

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