कुछ न कुछ
जो चल रहा भीतर में तेरे क्या है कुछ न कुछ
तेरी नज़र में राज का पर्दा है कुछ न कुछ
जब कुछ नही है बात तो है बात क्यूँ मगर
कहता नही तू बात छुपाता है कुछ न कुछ
यूँ ही नही है टूटा वो बिखरा नही है यूँ
गहरी तो होगी शाजिश लगता है कुछ न कुछ
किस बात का बहाना जहां है बना रहा
हर दूसरी ही बात बहाना है कुछ न कुछ
सम्भालते भी जिंदगी तो किस तरह से हम
कुछ हो अगर भी जाये तो रहता है कुछ न कुछ
221 2121 1221 212
मैं जिंदगी का साथ
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